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सूचना के अधिकार के शुल्क में 10 गुना वृद्धि के विरोध में आरटीआई एक्टिविस्ट

सूचना अधिकार प्रकोष्ठ ने विधि विभाग को प्रस्ताव भेजा है कि सूचना के अधिकार के शुल्क में 10 गुना वृद्धि की जाए. प्रकोष्ठ के इस प्रस्ताव का आरटीआई एक्टिविस्ट जमकर विरोध कर रहे हैं और मामले की शिकायत सोनिया गांधी और राहुल गांधी से करने की बात कर रहे हैं.

Chief Minister Kamal Nath
मुख्यमंत्री कमलनाथ
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Published : Feb 6, 2020, 4:40 PM IST

Updated : Feb 6, 2020, 8:09 PM IST

भोपाल। प्रशासन में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए कांग्रेस की यूपीए सरकार ने देश की जनता को सूचना के अधिकार की सौगात दी थी लेकिन मध्यप्रदेश में इसी अधिकार को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है जबकि प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार सत्ता पर काबिज है. दरअसल सूचना अधिकार प्रकोष्ठ ने विधि विभाग को प्रस्ताव भेजा है कि सूचना के अधिकार के शुल्क में 10 गुना वृद्धि की जाए. प्रकोष्ठ के इस प्रस्ताव का आरटीआई एक्टिविस्ट जमकर विरोध कर रहे हैं और इस मामले की शिकायत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से करने की बात कह रहे हैं. वहीं इस मामले में कांग्रेस ने सफाई देते हुए कहा कि भले ही कोई किसी तरह का प्रस्ताव भेजे लेकिन हमें उम्मीद है कि कमलनाथ सरकार इसमें फीस वृद्धि नहीं करेगी.

सूचना के अधिकार के शुल्क में 10 गुना वृद्धि के विरोध में आरटीआई एक्टिविस्ट


सूचना के अधिकार प्रकोष्ठ ने विधि विभाग को प्रस्ताव भेजा है कि सूचना के अधिकार में 10 रूपए के शुल्क को बढ़ाकर 100 रूपए कर दिया जाए. हालांकि इस मामले में अभी विधि विभाग की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.


सूचना अधिकार प्रकोष्ठ के इस प्रस्ताव पर मध्यप्रदेश के आरटीआई एक्टिविस्ट विरोध में उतर आए हैं. जाने-माने आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे का कहना है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ कांग्रेस के सिद्धांतों के विपरीत पारदर्शिता लाने वाले कानून को कुचल रहे हैं. कमलनाथ इसलिए मुख्यमंत्री बने हैं, क्योंकि 15 साल हमने भाजपा के कुशासन से आरटीआई की मदद से संघर्ष किया. कमलनाथ को जनता ने इसलिए मुख्यमंत्री बनाया कि वह कांग्रेस के विचारों का समर्थन करते थे लेकिन आज जनता पर प्रहार करने के लिए मुख्यमंत्री कमलनाथ विपक्ष और जिन के कारनामे आरटीआई से उजागर हुए थे, उनकी मदद कर रहे हैं.


कांग्रेस प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा का कहना है कि सुझाव और विचार भेजना सबका अधिकार है, निर्णय लेना सरकार का अधिकार है. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मध्य प्रदेश की सरकार सूचना आयोग और आरटीआई के मामले में पारदर्शिता रखेगी. उसमें आर्थिक समस्या आम जनमानस को नहीं आने दी जाएगी. क्योंकि जब कानून हमने बनाया है, तो न्यूनतम 10 रूपए फीस रखी गई थी. वह जस की तस रखी जाएगी. जिन्होंने भी प्रस्ताव भेजा है, उनकी अपनी सोच होगी लेकिन इस मामले में अंतिम निर्णय तो मुख्यमंत्री कमलनाथ को ही लेना है.

भोपाल। प्रशासन में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए कांग्रेस की यूपीए सरकार ने देश की जनता को सूचना के अधिकार की सौगात दी थी लेकिन मध्यप्रदेश में इसी अधिकार को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है जबकि प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार सत्ता पर काबिज है. दरअसल सूचना अधिकार प्रकोष्ठ ने विधि विभाग को प्रस्ताव भेजा है कि सूचना के अधिकार के शुल्क में 10 गुना वृद्धि की जाए. प्रकोष्ठ के इस प्रस्ताव का आरटीआई एक्टिविस्ट जमकर विरोध कर रहे हैं और इस मामले की शिकायत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से करने की बात कह रहे हैं. वहीं इस मामले में कांग्रेस ने सफाई देते हुए कहा कि भले ही कोई किसी तरह का प्रस्ताव भेजे लेकिन हमें उम्मीद है कि कमलनाथ सरकार इसमें फीस वृद्धि नहीं करेगी.

सूचना के अधिकार के शुल्क में 10 गुना वृद्धि के विरोध में आरटीआई एक्टिविस्ट


सूचना के अधिकार प्रकोष्ठ ने विधि विभाग को प्रस्ताव भेजा है कि सूचना के अधिकार में 10 रूपए के शुल्क को बढ़ाकर 100 रूपए कर दिया जाए. हालांकि इस मामले में अभी विधि विभाग की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.


सूचना अधिकार प्रकोष्ठ के इस प्रस्ताव पर मध्यप्रदेश के आरटीआई एक्टिविस्ट विरोध में उतर आए हैं. जाने-माने आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे का कहना है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ कांग्रेस के सिद्धांतों के विपरीत पारदर्शिता लाने वाले कानून को कुचल रहे हैं. कमलनाथ इसलिए मुख्यमंत्री बने हैं, क्योंकि 15 साल हमने भाजपा के कुशासन से आरटीआई की मदद से संघर्ष किया. कमलनाथ को जनता ने इसलिए मुख्यमंत्री बनाया कि वह कांग्रेस के विचारों का समर्थन करते थे लेकिन आज जनता पर प्रहार करने के लिए मुख्यमंत्री कमलनाथ विपक्ष और जिन के कारनामे आरटीआई से उजागर हुए थे, उनकी मदद कर रहे हैं.


कांग्रेस प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा का कहना है कि सुझाव और विचार भेजना सबका अधिकार है, निर्णय लेना सरकार का अधिकार है. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मध्य प्रदेश की सरकार सूचना आयोग और आरटीआई के मामले में पारदर्शिता रखेगी. उसमें आर्थिक समस्या आम जनमानस को नहीं आने दी जाएगी. क्योंकि जब कानून हमने बनाया है, तो न्यूनतम 10 रूपए फीस रखी गई थी. वह जस की तस रखी जाएगी. जिन्होंने भी प्रस्ताव भेजा है, उनकी अपनी सोच होगी लेकिन इस मामले में अंतिम निर्णय तो मुख्यमंत्री कमलनाथ को ही लेना है.

Intro:भोपाल। प्रशासन में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने देश की जनता को सूचना के अधिकार की सौगात दी थी। लेकिन मध्यप्रदेश में इसी अधिकार को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है।जबकि प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार सत्ता पर काबिज है। दरअसल सूचना अधिकार प्रकोष्ठ ने विधि विभाग को प्रस्ताव भेजा है कि सूचना के अधिकार के शुल्क में 10 गुना वृद्धि की जाए। प्रकोष्ठ के इस प्रस्ताव का आरटीआई एक्टिविस्ट जमकर विरोध कर रहे हैं और इस मामले की शिकायत सोनिया गांधी और राहुल गांधी से करने की तैयारी कर रहे हैं। वहीं इस मामले में कांग्रेस का कहना है कि भले ही कोई किसी तरह का प्रस्ताव भेजे। लेकिन हमें उम्मीद है कि कमलनाथ सरकार इसमें फीस वृद्धि नहीं करेगी।


Body:दरअसल सूचना के अधिकार प्रकोष्ठ ने विधि विभाग को प्रस्ताव भेजा है कि सूचना के अधिकार में अभी जो 10 रूपए का शुल्क लिया जाता है। उसे बढ़ाकर 100 रूपए कर दिया जाए। हालांकि इस मामले में अभी विधि विभाग ने कोई निर्णय नहीं लिया है और ना ही सरकार ने इस पर कोई फैसला किया है।लेकिन मध्यप्रदेश के आरटीआई एक्टिविस्ट इस निर्णय के विरोध में उतर आए हैं। इस निर्णय को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई और प्रशासन में पारदर्शिता के विरुद्ध बताते हुए सोनिया गांधी से शिकायत की बात कह रहे हैं।

इस मामले में जाने-माने आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे का कहना है कि मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री कमलनाथ कांग्रेस के सिद्धांतों के विपरीत पारदर्शिता लाने वाले कानून को कुचल रहे हैं। कमलनाथ इसलिए मुख्यमंत्री बने हैं, क्योंकि 15 साल हमने भाजपा के कुशासन से आरटीआई की मदद से संघर्ष किया। कमलनाथ को जनता ने इसलिए मुख्यमंत्री बनाया कि वह कांग्रेस के विचारों का समर्थन करते थे।लेकिन आज जनता पर प्रहार करने के लिए मुख्यमंत्री कमलनाथ विपक्ष और जिन के कारनामे आरटीआई से उजागर हुए थे, उनकी मदद कर रहे हैं। भाजपा और नौकरशाही ने पहले ही आरटीआई को कमजोर किया. अब मुख्यमंत्री कमलनाथ भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की इस प्रस्ताव पर चुप्पी हमें स्वीकार है।इस मामले में हम सोनिया गांधी और राहुल गांधी को अवगत कराएंगे कि जो आरटीआई कानून अपने देश को दिया था, आज कमलनाथ उस कानून को कुचल रहे हैं। कमलनाथ की आरटीआई विरोधी मानसिकता का इलाज किया जाए।


Conclusion:वहीं इस मामले में मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा का कहना है कि सुझाव और विचार भेजना सबका अधिकार है, निर्णय लेना सरकार का अधिकार है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मध्य प्रदेश की सरकार सूचना आयोग और आरटीआई के मामले में पारदर्शिता रखेगी। उसमें आर्थिक समस्या आम जनमानस को नहीं आने दी जाएगी। क्योंकि जब कानून हमने बनाया है, तो न्यूनतम 10 रूपए फीस रखी गई थी।वह जस की तस रखी जाएगी। जिन्होंने भी प्रस्ताव भेजा है,उनकी अपनी सोच होगी। निर्णय अंतिम तौर पर मुख्यमंत्री कमलनाथ को लेना है और हमें उम्मीद है कि जो फीस है, वह जस की तस रहेगी।

बाइट - अजय दुबे - आरटीआई एक्टिविस्ट।
बाइट - दुर्गेश शर्मा - प्रवक्ता मप्र कांग्रेस।
Last Updated : Feb 6, 2020, 8:09 PM IST
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