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आखिर बच्चे क्यों उठाते हैं आत्महत्या जैसा बड़ा कदम, जानिए मनोचिकित्सक रूमा भट्टाचार्य की जुबानी - Suicide after exam case mp

आत्महत्या का ख्याल आते ही रूह कांप जाती है. आखिरकार कोई इंसान आत्महत्या क्यों और किन परिस्थितियों में करता है और इसे कैसे रोका जा सकता है, ईटीवी भारत से बताया मनोचिकित्सक रूमा भट्टाचार्य ने.

Psychiatrist Uma Bhattacharya explains measures to prevent suicide
रोकी जा सकती है बच्चों की आत्महत्या
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Published : Jul 13, 2020, 3:39 PM IST

Updated : Jul 13, 2020, 4:33 PM IST

भोपाल। अभिभावकों की बच्चों से अधिक अपेक्षाएं उन्हें डिप्रेशन में डाल रही हैं, परीक्षा परिणामों के बाद हमेशा ही आत्महत्या के मामले बढ़े हैं. मनोचिकित्सकों के अनुसार ऐसे मामलों में अभिभावक अपने बच्चों की तुलना अधिक क्षमता वाले बच्चों से कर रहे हैं, जिससे वे तनाव में आकर आत्महत्या के लिए प्रेरित हो रहे हैं. ऐसे बच्चों को परिवार, स्कूल और सामाजिक स्तर पर समर्थन नहीं मिलता है. आत्महत्या का शब्द जेहन में आते ही रूह कांप जाती है. आखिरकार कोई आत्महत्या किन परिस्थितियों में करता है, यह जानने और परीक्षा परिणामों के बाद आत्महत्या रोकने के उपायों पर ईटीवी भारत ने मनोचिकित्सक रूमा भट्टाचार्य ने खास बातचीत की.

रोकी जा सकती है बच्चों की आत्महत्या

स्ट्रेस होता है सबसे बड़ा कारण
मनोचिकित्सक रूमा भट्टाचार्य ने बताया की परीक्षा इम्तिहान जो हर इंसान हर छात्र के जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. विशेषकर बोर्ड एग्जाम जैसे 10वीं और 12वीं इन एग्जाम का अपना एक महत्व होता है. इनमें सफल असफल होना छात्र की साल भर की मेहनत पर निर्भर होता है और जब रिजल्ट मनमाफिक और अच्छा नहीं आता तो कई छात्र आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं. लेकिन हर फेल होने वाला बच्चा आत्महत्या नहीं करता इसका मतलब जो छात्र स्ट्रेस को नहीं झेल पाते चुनौतियों को हैंडल नहीं कर पाते उनमें पहले से ही मानसिक परेशानियों के लक्षण देखने को मिलते हैं, वो ऐसे कदम उठाते हैं.

अभिभावकों की भी काउंसलिंग जरूरी
रूमा भट्टाचार्य ने बताया की मानसिक परेशानियों के कारण बच्चों का मन पढ़ाई लिखाई और कामकाज में नहीं लगता, इन का रूटीन सही नहीं होता और ये अपनी परेशानी पेरेंट्स या टीचर को नहीं बता पाते. इनमें बहुत ज्यादा गुस्सा और चिड़चिड़ापन पाया जाता है. यह एकदम उदास रहते हैं अगर यह लक्षण बच्चों में पाए जाते हैं तो पहले ही इनकी काउंसलिंग और ट्रीटमेंट होना बहुत जरूरी है. साथ ही स्कूल, कोचिंग, अभिभावकों की काउंसलिंग कर भी बच्चों की आत्महत्या रोका जा सकता है.

अवसाद से मुक्ति बेहतर विकल्प
बच्चे डिप्रेशन या अवसाद या घबराहट से ग्रसित होते हैं यही बच्चे स्ट्रेस को हैंडल नहीं कर पाते, जिससे उनको निराशा होती है और वह सोचते हैं कि जिंदगी जीने का कोई मतलब नहीं है. मर जाना बेहतर है और वह आत्महत्या का मना लेते हैं. रूमा भट्टाचार्य कहती हैं की छात्रों को यह समझना होगा कि एक नाकामी जीवन में सब कुछ नहीं होती, वहीं अभिभावकों को भी समझना होगा की मात्र मेरिट सब कुछ नहीं होती है.

भोपाल। अभिभावकों की बच्चों से अधिक अपेक्षाएं उन्हें डिप्रेशन में डाल रही हैं, परीक्षा परिणामों के बाद हमेशा ही आत्महत्या के मामले बढ़े हैं. मनोचिकित्सकों के अनुसार ऐसे मामलों में अभिभावक अपने बच्चों की तुलना अधिक क्षमता वाले बच्चों से कर रहे हैं, जिससे वे तनाव में आकर आत्महत्या के लिए प्रेरित हो रहे हैं. ऐसे बच्चों को परिवार, स्कूल और सामाजिक स्तर पर समर्थन नहीं मिलता है. आत्महत्या का शब्द जेहन में आते ही रूह कांप जाती है. आखिरकार कोई आत्महत्या किन परिस्थितियों में करता है, यह जानने और परीक्षा परिणामों के बाद आत्महत्या रोकने के उपायों पर ईटीवी भारत ने मनोचिकित्सक रूमा भट्टाचार्य ने खास बातचीत की.

रोकी जा सकती है बच्चों की आत्महत्या

स्ट्रेस होता है सबसे बड़ा कारण
मनोचिकित्सक रूमा भट्टाचार्य ने बताया की परीक्षा इम्तिहान जो हर इंसान हर छात्र के जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. विशेषकर बोर्ड एग्जाम जैसे 10वीं और 12वीं इन एग्जाम का अपना एक महत्व होता है. इनमें सफल असफल होना छात्र की साल भर की मेहनत पर निर्भर होता है और जब रिजल्ट मनमाफिक और अच्छा नहीं आता तो कई छात्र आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं. लेकिन हर फेल होने वाला बच्चा आत्महत्या नहीं करता इसका मतलब जो छात्र स्ट्रेस को नहीं झेल पाते चुनौतियों को हैंडल नहीं कर पाते उनमें पहले से ही मानसिक परेशानियों के लक्षण देखने को मिलते हैं, वो ऐसे कदम उठाते हैं.

अभिभावकों की भी काउंसलिंग जरूरी
रूमा भट्टाचार्य ने बताया की मानसिक परेशानियों के कारण बच्चों का मन पढ़ाई लिखाई और कामकाज में नहीं लगता, इन का रूटीन सही नहीं होता और ये अपनी परेशानी पेरेंट्स या टीचर को नहीं बता पाते. इनमें बहुत ज्यादा गुस्सा और चिड़चिड़ापन पाया जाता है. यह एकदम उदास रहते हैं अगर यह लक्षण बच्चों में पाए जाते हैं तो पहले ही इनकी काउंसलिंग और ट्रीटमेंट होना बहुत जरूरी है. साथ ही स्कूल, कोचिंग, अभिभावकों की काउंसलिंग कर भी बच्चों की आत्महत्या रोका जा सकता है.

अवसाद से मुक्ति बेहतर विकल्प
बच्चे डिप्रेशन या अवसाद या घबराहट से ग्रसित होते हैं यही बच्चे स्ट्रेस को हैंडल नहीं कर पाते, जिससे उनको निराशा होती है और वह सोचते हैं कि जिंदगी जीने का कोई मतलब नहीं है. मर जाना बेहतर है और वह आत्महत्या का मना लेते हैं. रूमा भट्टाचार्य कहती हैं की छात्रों को यह समझना होगा कि एक नाकामी जीवन में सब कुछ नहीं होती, वहीं अभिभावकों को भी समझना होगा की मात्र मेरिट सब कुछ नहीं होती है.

Last Updated : Jul 13, 2020, 4:33 PM IST
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