भोपाल| मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में रंग प्रयोगों के प्रदर्शन पर आधारित साप्ताहिक श्रृंखला 'अभिनयन' में आज शुभजीत हलधर, कोलकता के बंगाली जात्रा शैली में 'शीतला मंगल एवं भवानी' का प्रसारण संग्रहालय के यूट्यूब चैनल पर किया गया.
बंगाली जात्रा-
बंगाल में श्री चैतन्य देव के भक्ति आंदोलन के समय से इस जात्रा का प्रचलन हुआ था. उसके बाद जिन-जिन देशों में बंगाली समुदाय के लोग निवास करते हैं, उन सभी जगहों में जात्रा फैल गई. जब इसका प्रचलन हुआ तब देवी देवताओं के नामों के प्रचार के लिए संगीत के जरिए एक जगह से दूसरी जगह जाकर जात्रा की जाती थी.
जात्रा में सभी किरदार पौराणिक होते हैं और सारी कहानियां देवी-देवताओं पर आधारित होती हैं. ज्यादातर कहानियों में यह दर्शाया जाता है कि कैसे धरती पर किसी देवी या देवता के पूजन का प्रचलन शुरु हुआ.
देवी शीतला माता पर आधारित प्रस्तुति
बहुत साल पहले की बात है जब नहुष नाम के एक राजा हुआ करते थे, जिन्होंने लड़के की कामना से एक यज्ञ का आयोजन किया था. उनके गलत मंत्रोच्चारण से एक भयानक स्त्री प्रकट हो गई जो दिखने में बदसूरत और डरावनी थी, जिसको धूमावती नाम दिया गया. यज्ञ में मौजूद सभी देवता धूमावती के इस भयानक रूप से डर रहे थे.
तब ब्रह्मदेव ने धूमावती को आदेश दिया कि वह रूप सरोवर में जाकर अपना रूप बदलकर आएं. धूमावती ब्रह्मदेव के आदेश का पालन करते हुए अपना रूप बदलने के बाद एक खूबसूरत स्त्री के रूप में उनके सामने मौजूद हुईं. ब्रह्मदेव ने अपने कमंडल के शीतल जल से उनको आशीर्वाद दिया जिसके बाद उनका नाम शीतला पड़ा.
देवी भवानी की स्तुति
देवी भवानी की प्रार्थना में बताया गया कि जो दिव्य शक्ति हैं, सभी शक्ति का आधार हैं. वह अपनी इच्छा के अनुसार खुद को अन्य देवी अवतार में बदल सकती हैं. वह स्वयं प्रकृति हैं और हमारा पालन-पोषण करती हैं. वह मां हैं, भगवान शिव की पत्नी हैं, उन्होंने महिषासुर को मारने के लिए और उसके राक्षस से दुनिया को बचाने के लिए देवी दुर्गा का अवतार लिया है. दुर्गा के अनेक रुप हैं, लेकिन प्रकाश एक है. ऐसी दुर्गा की पूजा से सभी दुख दूर हो जाते हैं. रंग कर्म से जुड़े शुभजीत हलधर ने कई सालों तक नाटकों का निर्देशन भी किया है.