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झाबुआ विधानसभा उपचुनाव: कांग्रेस के लिए अपने ही बन रहे सिर दर्द, जयस ने बढ़ाई परेशानी

झाबुआ विधानसभा सीट पर जल्द ही उपचुनाव हो सकता है. विधानसभा चुनाव में अपनी परंपरागत झाबुआ सीट खोने के बाद कांग्रेस खोई जमीन तलाश रही है, लेकिन उसके सपने पर गुटबाजी और जयस की पानी फेर सकता है.

झाबुआ उपचुनाव
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Published : Sep 9, 2019, 11:48 PM IST

भोपाल। झाबुआ-रतलाम सीट से भाजपा के जीएस डामोर के सांसद बनने के बाद झाबुआ विधानसभा सीट रिक्त हो गई है. झाबुआ विधानसभा सीट पर जल्द ही उपचुनाव होने की संभावना है. ऐसी स्थिति में कांग्रेस, बीजेपी से झाबुआ सीट हथिया कर अपनी सीटों की संख्या 115 करना चाहती है.

कांग्रेस कार्यकर्ताओं का दावा

जयस बन रहा चुनौती
झाबुआ विधानसभा सीट पर जहां कांग्रेस के लिए अपने ही पार्टी के नेताओं की गुटबाजी का सामना करना पड़ रहा है तो वहीं जय आदिवासी युवा संगठन 'जयस' भी ताल ठोकता नजर आ रहा है. ऐसे में सूबे में कांग्रेस की सरकार होने के बाद भी झाबुआ उपचुनाव कांग्रेस के लिए कठिन चुनौती बनकर सामने आ रहा है.

विक्रम भूरिया को जीएम डामोर ने दी थी मात
दरअसल, साल 2018 के अंत में हुए विधानसभआ चुनाव में झाबुआ सीट पर कांग्रेस को हाल मिली थी. पार्टी के पूर्व सांसद कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रम भूरिया को बीजेपी के जीएम डामोर ने हरा दिया था. कांग्रेस अपनी परंपरागत सीट करीब 10 हजार वोटों से हार गई थी.

इस वजह से विधानसभा चुनाव में मिली थी हार
इसका बड़ा कारण कांग्रेस के जेवियर मेडा का निर्दलीय चुनाव में उतरना भी था, उन्होंने करीब 35 हजार वोट हासिल किए थे. इससे साफ जाहिर है कि अगर जेवियर मेडा निर्दलीय ताल नहीं ठोकते तो ये सीट कांग्रेस के पास होती. इसके बाद लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जीएम एस डामोर को फिर से अपना प्रत्याशी बनाया और उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया को भी हरा दिया.

दो दिग्गज कर रहे फिर से दावेदारी
हालांकि इस हार से कमलनाथ को यह राहत मिली कि वह अब मध्यप्रदेश विधानसभा में अपनी एक सीट बढ़ा सकते हैं, लेकिन अब सीट बढ़ाने के लिए कमलनाथ को दो चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. एक तरफ जहां कांतिलाल भूरिया और जेवियर मेडा विधानसभा सीट पर फिर से दावेदारी कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ जय आदिवासी युवा संगठन 'जयस' भी ताल ठोकता नजर आ रहा है.

हल नहीं निकाला तो सपना हो सकता है चकनाचूर
ऐसे हालात में अगर कांग्रेस अपने ही जिला संगठन की गुटबाजी से पार नहीं पा पाई और जयस को नहीं मना पाई तो कांग्रेस का एक सीट बढ़ाने का सपना चकनाचूर भी हो सकता है. इन चुनौतियों को लेकर मध्य प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष प्रकाश जैन का कहना है कि जो अनुसूचित जनजाति समुदाय है, उसमें सबको अपनी बात कहने का अपने अधिकारों पर चर्चा करने का अधिकार है.

'समन्वय के साथ हासिल करेंगे जीत'
प्रकाश जैन ने कहा कि जहां तक सवाल गुटबाजी का है, तो ऐसी कोई स्थिति अभी नहीं है. वहां पूरी कांग्रेस समन्वय के साथ काम कर रही है. वहां जिले भर के तमाम कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रदेश अध्यक्ष मुख्यमंत्री कमलनाथ को आश्वस्त किया है कि हम सब एकजुट हैं और समन्वय के साथ जीत हासिल करके देंगे.

भोपाल। झाबुआ-रतलाम सीट से भाजपा के जीएस डामोर के सांसद बनने के बाद झाबुआ विधानसभा सीट रिक्त हो गई है. झाबुआ विधानसभा सीट पर जल्द ही उपचुनाव होने की संभावना है. ऐसी स्थिति में कांग्रेस, बीजेपी से झाबुआ सीट हथिया कर अपनी सीटों की संख्या 115 करना चाहती है.

कांग्रेस कार्यकर्ताओं का दावा

जयस बन रहा चुनौती
झाबुआ विधानसभा सीट पर जहां कांग्रेस के लिए अपने ही पार्टी के नेताओं की गुटबाजी का सामना करना पड़ रहा है तो वहीं जय आदिवासी युवा संगठन 'जयस' भी ताल ठोकता नजर आ रहा है. ऐसे में सूबे में कांग्रेस की सरकार होने के बाद भी झाबुआ उपचुनाव कांग्रेस के लिए कठिन चुनौती बनकर सामने आ रहा है.

विक्रम भूरिया को जीएम डामोर ने दी थी मात
दरअसल, साल 2018 के अंत में हुए विधानसभआ चुनाव में झाबुआ सीट पर कांग्रेस को हाल मिली थी. पार्टी के पूर्व सांसद कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रम भूरिया को बीजेपी के जीएम डामोर ने हरा दिया था. कांग्रेस अपनी परंपरागत सीट करीब 10 हजार वोटों से हार गई थी.

इस वजह से विधानसभा चुनाव में मिली थी हार
इसका बड़ा कारण कांग्रेस के जेवियर मेडा का निर्दलीय चुनाव में उतरना भी था, उन्होंने करीब 35 हजार वोट हासिल किए थे. इससे साफ जाहिर है कि अगर जेवियर मेडा निर्दलीय ताल नहीं ठोकते तो ये सीट कांग्रेस के पास होती. इसके बाद लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जीएम एस डामोर को फिर से अपना प्रत्याशी बनाया और उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया को भी हरा दिया.

दो दिग्गज कर रहे फिर से दावेदारी
हालांकि इस हार से कमलनाथ को यह राहत मिली कि वह अब मध्यप्रदेश विधानसभा में अपनी एक सीट बढ़ा सकते हैं, लेकिन अब सीट बढ़ाने के लिए कमलनाथ को दो चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. एक तरफ जहां कांतिलाल भूरिया और जेवियर मेडा विधानसभा सीट पर फिर से दावेदारी कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ जय आदिवासी युवा संगठन 'जयस' भी ताल ठोकता नजर आ रहा है.

हल नहीं निकाला तो सपना हो सकता है चकनाचूर
ऐसे हालात में अगर कांग्रेस अपने ही जिला संगठन की गुटबाजी से पार नहीं पा पाई और जयस को नहीं मना पाई तो कांग्रेस का एक सीट बढ़ाने का सपना चकनाचूर भी हो सकता है. इन चुनौतियों को लेकर मध्य प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष प्रकाश जैन का कहना है कि जो अनुसूचित जनजाति समुदाय है, उसमें सबको अपनी बात कहने का अपने अधिकारों पर चर्चा करने का अधिकार है.

'समन्वय के साथ हासिल करेंगे जीत'
प्रकाश जैन ने कहा कि जहां तक सवाल गुटबाजी का है, तो ऐसी कोई स्थिति अभी नहीं है. वहां पूरी कांग्रेस समन्वय के साथ काम कर रही है. वहां जिले भर के तमाम कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रदेश अध्यक्ष मुख्यमंत्री कमलनाथ को आश्वस्त किया है कि हम सब एकजुट हैं और समन्वय के साथ जीत हासिल करके देंगे.

Intro:भोपाल। झाबुआ रतलाम सीट से भाजपा के जी एस डामोर के सांसद बनने के बाद झाबुआ विधानसभा सीट रिक्त हो गई है। झाबुआ में जल्दी ही उपचुनाव संभावित है।ऐसी स्थिति में कांग्रेस बीजेपी की सीट हथिया कर अपनी सीटों की संख्या 115 करना चाहती है। लेकिन झाबुआ विधानसभा सीट पर जहां कांग्रेस के लिए अपने ही पार्टी के नेताओं की गुटबाजी का सामना करना पड़ रहा है। तो जय आदिवासी युवा संगठन 'जयस' भी ताल ठोकता नजर आ रहा है ऐसे में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने के बाद भी झाबुआ उपचुनाव कांग्रेस के लिए कठिन चुनौती बनकर सामने आ रहा है ।


Body:दरअसल झाबुआ में कांग्रेस में एक तरफ दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया है, जिनके बेटे विक्रम भूरिया विधानसभा चुनाव में बीजेपी के जी एस डामोर से इसलिए हार गए थे। क्योंकि कांग्रेस के जेवियर मेडा निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर खड़े हो गए थे और करीब 35 हजार वोट हासिल करने में कामयाब रहे थे।कांग्रेस की परंपरागत मानी जाने वाली यह सीट कांग्रेस महज दस हजार वोटों से हार गई थी। वोटों के अंतर से साफ है कि अगर जेवियर मेडा मैदान में नहीं होते तो यह सीट बीजेपी की नहीं, बल्कि कांग्रेस की सीट होती। फिर लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जहां जी एस डामोर को फिर से अपना प्रत्याशी बनाया, तो कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया उन से हार गए।हालांकि इस हार से कमलनाथ को यह राहत मिली कि वह अब मध्यप्रदेश विधानसभा में अपनी एक सीट बढ़ा सकते हैं।लेकिन इस सीट बढ़ाने के लिए कमलनाथ को दो चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ जहां कांतिलाल भूरिया और जेवियर मेडा विधानसभा सीट पर फिर से दावेदारी कर रहे हैं. तो दूसरी तरफ जय आदिवासी युवा संगठन 'जयस' भी ताल ठोकता नजर आ रहा है। अगर कांग्रेस अपने ही जिला संगठन की गुटबाजी से पार नहीं पा पाई और जयस को नहीं मना पाई, तो कांग्रेस का एक सीट बढ़ाने का सपना चकनाचूर हो सकता है।


Conclusion:इन चुनौतियों को लेकर मध्य प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष प्रकाश जैन का कहना है कि जो अनुसूचित जनजाति समुदाय है। उसमें सबको अपनी बात कहने का अपने अधिकारों पर चर्चा करने का अधिकार है। कोई अपनी बात नहीं करें, इसके लिए पूरे समाज को तो नहीं रोका जा सकता है।जहां तक सवाल गुटबाजी का है, तो ऐसी कोई स्थिति अभी नहीं है। वहां पूरी कांग्रेस समन्वय के साथ काम कर रही है। वहां जिले भर के तमाम कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रदेश अध्यक्ष मुख्यमंत्री कमलनाथ को आश्वस्त किया है कि हम सब एकजुट हैं और समन्वय के साथ जीत हासिल करके देंगे।
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