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Ashad amavasya 2021: पेड़ लगाओ किस्मत चमकाओ! - Ashad amavasya 2021

वृक्ष के बिना जीवन की कल्पना असंभव है. कुछ वृक्ष ऐसे हैं जो सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं. इनमें से कुछ पितृ दोष को भी कम करते हैं. माना जाता है कि इनमें पितृों का निवास है.

Ashaad amavasya 2021
आषाढ़ अमावस्या 2021
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Published : Jul 8, 2021, 7:12 AM IST

Updated : Jul 9, 2021, 8:50 AM IST

भोपाल। प्रकृति से मानव का संबंध नया नहीं बल्कि बहुत पुराना है. वृक्ष हमारे समाज और धर्म में विशेष स्थान रखते हैं. हरेक वृक्ष का अपने में एक गुण समेटे है, तभी तो हमारे धर्म ग्रंथ भी इनकी सेवा का मंत्र देते हैं. यही वजह है कि आषाढ़ अमावस्या को पितरों के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए दान पुण्य के साथ ही वृक्षारोपण की बात भी कही जाती है. या यूं कह सकते हैं कि अपने पितरों को खुश करने के कई में से ये एक उपाय है. 9 जुलाई के दिन आषाढ़ अमावस्या है. ज्योषिशास्त्र के अनुसार, इस दिन पितरों को खुश करने के लिए हमें कई तरह का उपाय करना चाहिए. माना जाता है कि इन्हें घर के बाहर लगाएं तो पितृ दोष से मुक्ति मिलती है.

तुलसी के पौधे

तुलसी के पौधे का औषधीय और धार्मिक कार्यों में बहुत महत्वपूर्ण है. मान्यता है कि तुलसी के पौधे का संबंध सीधे बैकुंठ धाम से है. अमावस्या के दिन पितरों के नाम पर तुलसी का पौधा लगाने से उन्हें मुक्ति मिलती है. तुलसी के पौधे को मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है. हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे से कई आध्यात्मिक बातें जुड़ी हैं. भगवान विष्णु को तुलसी बेहद प्रिय है.

पीपल का वृक्ष

पीपल को सनातन धर्म में बहुत ही पवित्र माना गया है. इस दिन पीपल का पेड़ लगाने और इसके पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाया जाता है. जिनकी कुडंली में गुरु चाडांल योग है, तो उन्हें अमावस्या के दिन पीपल का पेड़ जरूर लगाना चाहिए. पीपल के पेड़ की पूजा यहां धर्म का सबसे पुराना रूप है. भारतीय संस्कृति में पेड़ों में प्राण बसते हैं. इन्हें वन देवता के रूप में पूजा जाता था. आज भी वन देवता की कहीं-कहीं पूजा होती है. वेदों में भी पीपल के पेड़ को पूजनीय कहा गया है. इसके मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और अग्रभाग में शिव का वास बताया गया है. स्कंद पुराण में कहा गया है कि पीपल के मूल में विष्णु, तनों में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत भगवान निवास करते हैं

अशोक का वृक्ष

अमावस्या के दिन अशोक का वृक्ष लगाने से पितरों के शोक-संताप दूर होते हैं. इससे उनको खुशियां मिलती हैं. अशोक का शब्दिक अर्थ है, किसी प्रकार का शोक न होना. जिस कारण यह वृक्ष जिस जगह पर लगा होता है. वहां पर सभी कार्य पूर्णतः निर्बाध रूप से सम्पन्न होते है. हिंदू धर्म के मांगलिक कार्यों में अशोक के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है. कहा जाता है इस पेड़ पर प्राकृतिक शक्तियों का विशेष प्रभाव रहता है.

बेल का वृक्ष

बेल का पेड़ भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है. अमावस्या के दिन इस पौधे को लगाने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. कहा जाता है कि पार्वती के पसीने से हुई थी इस वृक्ष की उत्पत्ति और हर भाग में देवियों का वास माना जाता है· बिल्व यानी बेल के वृक्ष का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. यह अर्थ,धर्म और मोक्ष प्रदान करने वाला होता है. बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में स्कंद पुराण में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपने ललाट से पसीना पोंछकर फेंका तो उसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ. इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में कात्यायनी वास करती हैं. पूर्व में इसे ही श्रीफल कहा जाता था.

बरगद का वृक्ष

पौराणिक मान्यता के अनुसार, बरगद के वृक्ष को काफी पवित्र माना गया है. अमावस्या के दिन बरगद लगाने से पितरों को शांति मिलती है. इस दिन इसके नीचे बैठकर भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. परिवार में खुशियों का आगमन होगा. बरगद का वृक्ष एक दीर्घजीवी विशाल वृक्ष है , हिन्दू परंपरा में इसे पूज्य माना जाता है. इसकी भी कहानी बड़ी रोचक है. कहा जाता है कि यक्षों के राजा मणिभद्र से वटवृक्ष उत्पन्न हुआ. जिस प्रकार पीपल को विष्णु जी का प्रतीक माना जाता है , उसी प्रकार बरगद को शिव जी माना जाता है. यह प्रकृति के सृजन का प्रतीक है, इसलिए संतान के इच्छित लोग इसकी विशेष पूजा करते हैं. यह बहुत लम्बे समय तक जीवित रहता है , अतः इसे "अक्षयवट" भी कहा जाता है.

भोपाल। प्रकृति से मानव का संबंध नया नहीं बल्कि बहुत पुराना है. वृक्ष हमारे समाज और धर्म में विशेष स्थान रखते हैं. हरेक वृक्ष का अपने में एक गुण समेटे है, तभी तो हमारे धर्म ग्रंथ भी इनकी सेवा का मंत्र देते हैं. यही वजह है कि आषाढ़ अमावस्या को पितरों के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए दान पुण्य के साथ ही वृक्षारोपण की बात भी कही जाती है. या यूं कह सकते हैं कि अपने पितरों को खुश करने के कई में से ये एक उपाय है. 9 जुलाई के दिन आषाढ़ अमावस्या है. ज्योषिशास्त्र के अनुसार, इस दिन पितरों को खुश करने के लिए हमें कई तरह का उपाय करना चाहिए. माना जाता है कि इन्हें घर के बाहर लगाएं तो पितृ दोष से मुक्ति मिलती है.

तुलसी के पौधे

तुलसी के पौधे का औषधीय और धार्मिक कार्यों में बहुत महत्वपूर्ण है. मान्यता है कि तुलसी के पौधे का संबंध सीधे बैकुंठ धाम से है. अमावस्या के दिन पितरों के नाम पर तुलसी का पौधा लगाने से उन्हें मुक्ति मिलती है. तुलसी के पौधे को मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है. हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे से कई आध्यात्मिक बातें जुड़ी हैं. भगवान विष्णु को तुलसी बेहद प्रिय है.

पीपल का वृक्ष

पीपल को सनातन धर्म में बहुत ही पवित्र माना गया है. इस दिन पीपल का पेड़ लगाने और इसके पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाया जाता है. जिनकी कुडंली में गुरु चाडांल योग है, तो उन्हें अमावस्या के दिन पीपल का पेड़ जरूर लगाना चाहिए. पीपल के पेड़ की पूजा यहां धर्म का सबसे पुराना रूप है. भारतीय संस्कृति में पेड़ों में प्राण बसते हैं. इन्हें वन देवता के रूप में पूजा जाता था. आज भी वन देवता की कहीं-कहीं पूजा होती है. वेदों में भी पीपल के पेड़ को पूजनीय कहा गया है. इसके मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और अग्रभाग में शिव का वास बताया गया है. स्कंद पुराण में कहा गया है कि पीपल के मूल में विष्णु, तनों में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत भगवान निवास करते हैं

अशोक का वृक्ष

अमावस्या के दिन अशोक का वृक्ष लगाने से पितरों के शोक-संताप दूर होते हैं. इससे उनको खुशियां मिलती हैं. अशोक का शब्दिक अर्थ है, किसी प्रकार का शोक न होना. जिस कारण यह वृक्ष जिस जगह पर लगा होता है. वहां पर सभी कार्य पूर्णतः निर्बाध रूप से सम्पन्न होते है. हिंदू धर्म के मांगलिक कार्यों में अशोक के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है. कहा जाता है इस पेड़ पर प्राकृतिक शक्तियों का विशेष प्रभाव रहता है.

बेल का वृक्ष

बेल का पेड़ भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है. अमावस्या के दिन इस पौधे को लगाने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. कहा जाता है कि पार्वती के पसीने से हुई थी इस वृक्ष की उत्पत्ति और हर भाग में देवियों का वास माना जाता है· बिल्व यानी बेल के वृक्ष का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. यह अर्थ,धर्म और मोक्ष प्रदान करने वाला होता है. बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में स्कंद पुराण में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपने ललाट से पसीना पोंछकर फेंका तो उसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ. इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में कात्यायनी वास करती हैं. पूर्व में इसे ही श्रीफल कहा जाता था.

बरगद का वृक्ष

पौराणिक मान्यता के अनुसार, बरगद के वृक्ष को काफी पवित्र माना गया है. अमावस्या के दिन बरगद लगाने से पितरों को शांति मिलती है. इस दिन इसके नीचे बैठकर भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. परिवार में खुशियों का आगमन होगा. बरगद का वृक्ष एक दीर्घजीवी विशाल वृक्ष है , हिन्दू परंपरा में इसे पूज्य माना जाता है. इसकी भी कहानी बड़ी रोचक है. कहा जाता है कि यक्षों के राजा मणिभद्र से वटवृक्ष उत्पन्न हुआ. जिस प्रकार पीपल को विष्णु जी का प्रतीक माना जाता है , उसी प्रकार बरगद को शिव जी माना जाता है. यह प्रकृति के सृजन का प्रतीक है, इसलिए संतान के इच्छित लोग इसकी विशेष पूजा करते हैं. यह बहुत लम्बे समय तक जीवित रहता है , अतः इसे "अक्षयवट" भी कहा जाता है.

Last Updated : Jul 9, 2021, 8:50 AM IST
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