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श्रावण की पूर्णिमा-अंतिम सोवमार पर पड़ने से रक्षा बंधन का बढ़ा महत्वः पंडित राजेश दुबे

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Published : Aug 1, 2020, 10:51 AM IST

इस बार श्रावण के अंतिम सोमवार को रक्षा बंधन मनाया जाएगा. इससे इसका महत्व और भी बढ़ गया है. राखी का ऐतिहासिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रीय महत्त्व भी हैं. पंडित राजेश दुबे ने ईटीवी भारत से बातचीत में रक्षा बंधन के महत्व को बताया है.

File photo
फाइल फोटो

भोपाल। श्रावण के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की तिथि पर 3 अगस्त को रक्षाबंधन मनाया जाएगा. इस बार श्रावण के अंतिम सोमवार को रक्षाबंधन का पर्व पड़ रहा है, जिससे इसका महत्व और भी बढ़ गया है. इस दिन भाई की लंबी उम्र और सुख समृद्धि की कामना के साथ बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र या राखी बांधती हैं. राखी का ऐतिहासिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रीय महत्त्व भी है. पंडित राजेश दुबे ने ईटीवी भारत से बातचीत में रक्षाबंधन के सामाजिक महत्व के बारे में विस्तार से बताया.

पंडित ने बताया सामाजिक महत्व

पंडित राजेश दुबे ने बताया कि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में जो पूर्णिमा की तिथि आती है, उसे रक्षाबंधन के रूप में सनातन धर्म पद्धति के अनुसार मनाया जाता है. सनातन धर्म में चार वेद हैं, चार वर्णाश्रम हैं और इसी प्रकार से चार पर्वों को मनाने की परंपरा है. कहा जाता है कि ब्राह्मणों का पर्व रक्षाबंधन है, दशहरे का पर्व क्षत्रियों का है, दीपावली का पर्व वैश्यों का है और उसके पश्चात होली का पर्व शूद्रों द्वारा मनाया जाता है.

पंडित का कहना है कि रक्षाबंधन इन दिनों एक ही दिन मनाया जाता है, लेकिन सनातन काल और सनातन धर्म कि यदि सैद्धांतिक बातों को देखें तो उसके अनुसार यह जो पर्व है. श्रावण पूर्णिमा से लेकर जन्म अष्टमी तक मनाया जाता है और इस प्रकार इस पर्व का विषय जो है, वह इस प्रकार है कि जो आज वर्तमान परिपेक्ष्य में मनाते हैं, यह परिपेक्ष्य सामाजिक हो गया है. इस दिन बहन अपने भाई को रोचना लगाती है, जिसके बाद उसके हाथ में रक्षा सूत्र बांधती है. इस दौरान भाई अपनी बहन को जीवन में आने वाली किसी भी समस्या से रक्षा करने का वचन देते हैं.

इसी प्रकार यदि देखें तो सनातन धर्म के पर्व के अनुसार जब वर्षा ऋतु होती है, तब ब्राह्मण राज दरबार में और प्रजा के बीच में रक्षा सूत्र लेकर घर घर जाते थे और घर-घर जाकर रक्षा सूत्र बांधते हैं. इस के प्रतिफल में लोग उन्हें भेंट देते हैं. वस्त्र, द्रव्य, अन्न का पशुओं का दान करते हैं. इसी प्रकार उसके पीछे चतुर्मास के अंदर उनकी आजीविका का कोई प्रश्न न खड़ा हो, इस सिद्धांत को प्रतिपादित किया जाता है. रक्षाबंधन पर्व हमारे आत्मीय बंधन को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ हमारे भीतर सामाजिकता का भी विकास करता है.

भोपाल। श्रावण के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की तिथि पर 3 अगस्त को रक्षाबंधन मनाया जाएगा. इस बार श्रावण के अंतिम सोमवार को रक्षाबंधन का पर्व पड़ रहा है, जिससे इसका महत्व और भी बढ़ गया है. इस दिन भाई की लंबी उम्र और सुख समृद्धि की कामना के साथ बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र या राखी बांधती हैं. राखी का ऐतिहासिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रीय महत्त्व भी है. पंडित राजेश दुबे ने ईटीवी भारत से बातचीत में रक्षाबंधन के सामाजिक महत्व के बारे में विस्तार से बताया.

पंडित ने बताया सामाजिक महत्व

पंडित राजेश दुबे ने बताया कि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में जो पूर्णिमा की तिथि आती है, उसे रक्षाबंधन के रूप में सनातन धर्म पद्धति के अनुसार मनाया जाता है. सनातन धर्म में चार वेद हैं, चार वर्णाश्रम हैं और इसी प्रकार से चार पर्वों को मनाने की परंपरा है. कहा जाता है कि ब्राह्मणों का पर्व रक्षाबंधन है, दशहरे का पर्व क्षत्रियों का है, दीपावली का पर्व वैश्यों का है और उसके पश्चात होली का पर्व शूद्रों द्वारा मनाया जाता है.

पंडित का कहना है कि रक्षाबंधन इन दिनों एक ही दिन मनाया जाता है, लेकिन सनातन काल और सनातन धर्म कि यदि सैद्धांतिक बातों को देखें तो उसके अनुसार यह जो पर्व है. श्रावण पूर्णिमा से लेकर जन्म अष्टमी तक मनाया जाता है और इस प्रकार इस पर्व का विषय जो है, वह इस प्रकार है कि जो आज वर्तमान परिपेक्ष्य में मनाते हैं, यह परिपेक्ष्य सामाजिक हो गया है. इस दिन बहन अपने भाई को रोचना लगाती है, जिसके बाद उसके हाथ में रक्षा सूत्र बांधती है. इस दौरान भाई अपनी बहन को जीवन में आने वाली किसी भी समस्या से रक्षा करने का वचन देते हैं.

इसी प्रकार यदि देखें तो सनातन धर्म के पर्व के अनुसार जब वर्षा ऋतु होती है, तब ब्राह्मण राज दरबार में और प्रजा के बीच में रक्षा सूत्र लेकर घर घर जाते थे और घर-घर जाकर रक्षा सूत्र बांधते हैं. इस के प्रतिफल में लोग उन्हें भेंट देते हैं. वस्त्र, द्रव्य, अन्न का पशुओं का दान करते हैं. इसी प्रकार उसके पीछे चतुर्मास के अंदर उनकी आजीविका का कोई प्रश्न न खड़ा हो, इस सिद्धांत को प्रतिपादित किया जाता है. रक्षाबंधन पर्व हमारे आत्मीय बंधन को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ हमारे भीतर सामाजिकता का भी विकास करता है.

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