भोपाल। राजस्थान में सहायक रेडियोग्राफर भर्ती (Radiographer Recruitment fraud in mp) में फर्जी डिप्लोमा के मामले में घिरी प्रदेश की चार निजी यूनिवर्सिटी पर आयोग और शासन ने बड़ी रहमदिली दिखाई है. 413 अभ्यर्थियों के रेडियोग्राफर के डिप्लोमा में फर्जीवाड़ा पाए जाने के मामले में स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय सागर, सर्वपल्ली राधाकृष्णन यूनिवर्सिटी, सत्य साई यूनिवर्सिटी और आईसेक्ट यूनिवर्सिटी को महज चेतावनी पत्र देकर छोड़ दिया है. जांच में सिर्फ कुछ स्टूडेंट्स को ही जिम्मेदार माना गया है. कार्रवाई की हद तो यह है कि निजी विश्वविद्यालय आयोग ने विधायक द्वारा फर्जी प्रमाण पत्र बनवाए जाने के एक मामले में सिर्फ इसलिए कार्रवाई नहीं की, क्योंकि शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत ही वापस ले ली.
क्या है फर्जी डिप्लोमा मामला
पिछले साल राजस्थान में 1058 पदों के लिए सहायक रेडियोग्राफर भर्ती परीक्षा (Radiographer Recruitment exam in mp) हुई थी. इसके नतीजे 21 मई 2021 को जारी किए गए. परीक्षा में 750 अभ्यर्थियों का चुनाव किया गया, लेकिन जब इनके दस्तावेजों का परीक्षण कराया तो मध्यप्रदेश के 413 अभ्यर्थियों के डिप्लोमा में गड़बड़ी पाई गई. इसके बाद राजस्थान पैरामेडिकल काउंसिल ने इनके रजिस्ट्रेशन को अस्थायी रूप से रद्द कर दिए थे. मध्यप्रदेश के इन 413 अभ्यर्थियों द्वारा प्रदेश के चार निजी विश्वविद्यालय ने यह डिप्लोमा बनवाए थे.
यह विश्वविद्यालय थे शामिल
सीहोर सत्य साई यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मेडिकल साइंस, भोपाल की सर्वपल्ली राधाकृष्णन यूनिवर्सिटी, सागर की स्वामी विवेकानंद यूनिवसिटी और आईसेक्ट यूनिवर्सिटी इंस्टट्यूट ऑफ पैरामेडिकल साइंस, रायसेन.
राजस्थान पैरामेडिकल काउंसिल ने मांगी थी रिपोर्ट
डिप्लोमा में फर्जीवाड़ा (diploma fraud in mp) का मामला सामने आने के बाद राजस्थान पैरामेडिकल काउंसिल ने मध्यप्रदेश पैरामेडिकल काउंसिल को जांच और कार्रवाई कर रिपोर्ट भेजने के लिए कहा था. राजस्थान ही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ में भी फर्जी प्रमाण पत्र के मामले में मध्यप्रदेश की सर्वपल्ली राधाकृष्णन यूनिवर्सिटी कटघरे में खड़ी हुई. आरोप लगा कि छत्तीसगढ़ के मवेंद्रगढ़ विधायक डॉ. विनय जायसवाल ने इस यूनिवर्सिटी से बिचौलिए के जरिए डिप्लोमा इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन का फर्जी सर्टिफिकेट बनवाया.
जांच में सभी बरी, स्टूडेंट्स ही जिम्मेदार
उधर, फर्जी डिप्लोमा मामले में उन्हीं यूनिवर्सिटी को जांच सौंप दी गई, जो खुद कटघरे में थी. बताया जाता है कि पैरामेडिकल काउंसिल ने सभी चारों यूनिवर्सिटी को पत्र लिखकर जांच करने और रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए. पैरामेडिकल काउंसिल की रजिस्ट्रार पूजा शुक्ला के मुताबिक जांच में कई स्टूडेंट्स के डिप्लोमा में गड़बड़ी मिली है, जिसकी जानकारी राजस्थान पैरामेडिकल काउंसिल को भेज दी गई है. वहीं सभी चारों यूनिवर्सिटी को शो कॉज नोटिस दिया गया है. इन यूनिवर्सिटी में इस तरह की गड़बड़ी पहली बार हुई है.
निजी विश्वविद्यालय आयोग को खबर ही नहीं
प्रदेश में संचालित निजी विश्वविद्यालयों पर नियंत्रण, निगरानी और इनमें शैक्षणिक गुणवत्ता बढ़ाने के लिए गठित किया गया. निजी विश्वविद्यालय आयोग कार्रवाई के नाम पर मेहरबान है. आयोग के सचिव डॉ. केपी साहू से जब इसको लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि उन्होंने यह गड़बड़ी सामने आने के बाद स्वतः संज्ञान लेकर एक यूनिवर्सिटी के खिलाफ जांच करने पैरामेडिकल काउंसिल को लिखा था, हालांकि वे न तो यूनिवर्सिटी का नाम बता सके और न ही लेटर.
अधिकारी नहीं दे पा रहे जवाब
उधर, जब इसको लेकर आयोग के अध्यक्ष प्रो. भरत शरण सिंह से सवाल किया गया, तो उन्होंने ऐसे किसी मामले से ही अनभिज्ञता जताई. वहीं उन्होंने छत्तीसगढ़ के मनेद्रगढ़ विधायक डॉ. विनय जायसवाल के फर्जी डिप्लोमा के बारे में कहा कि इस मामले में शिकायतकर्ता अपनी शिकायत वापस ले चुका है. इसके बाद अपनी रिपोर्ट शासन को भेज चुके हैं. जाहिर है निजी विश्वविद्यालय के खिलाफ सख्त कार्रवाई से आयोग बच रहा है.
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मध्यप्रदेश के संस्थानों के स्टूडेंट्स के कागजातों की जांच किए बिना ही अभ्यर्थियों को डिप्लोमा बांट दिए. जिन अभ्यर्थियों की उम्र 17 साल भी पूरी नहीं हुई, उन्हें भी डिप्लोमा बांट दिया गया. यहां तक कि जिन स्टूडेंस ने 12वीं मैथ सब्जेक्ट लिया था, उन्हें भी डिप्लोमा बांट दिया गया. मध्यप्रदेश पैरामेडिकल काउंसिल ने भी ऐसे तमाम अभ्यर्थियों का रजिस्ट्रेशन कर डाला. फिर भी दोनों में से किसी की भी जिम्मेदारी तय नहीं की गई. मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय आयोग का काम निजी विश्वविद्यालयों पर निगरानी का है, लेकिन गड़बड़ी मिलने के बाद भी सख्त कदम नहीं उठाए. आयोग अपनी जिम्मेवारी से बचता रहा.