भोपाल। मध्य प्रदेश में शिक्षा के अधिकार अधिनियम (Right To Education) के तहत निजी स्कूलों में आरक्षित की गई 2 लाख 84 हजार 391 सीटों में से सिर्फ 1 लाख 40 हजार 971 सीटें ही भर पाई है. आरक्षित सीटों में से 1 लाख 50 हजार 575 सीटें खाली रह गई है. इन सीटों को भरने के लिए दो दौर की काउंसलिंग हो चुकी है. इतनी सीटें खाली रह जाने के बाद अब बाल आयोग ने सरकार को पत्र लिखकर गरीब अभिभावकों को एक और मौका देने की मांग की है.
डेढ़ लाख से ज्यादा सीटें रह गई खाली
मध्य प्रदेश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत सत्र 2021-22 में 26,412 निजी स्कूलों की 2 लाख 84 हजार से ज्यादा सीटें आरक्षित की गई थी. इसके लिए 1 लाख 99 हजार 741 बच्चों के अभिभावकों ने प्रवेश के लिए आवेदन किया था. दस्तावेज सत्यापन के बाद 1 लाख 74 हजार 301 बच्चे पात्र हुए, जिसमें से सिर्फ 1 लाख 40 हजार 971 बच्चों को ही स्कूल आवंटित हुए हैं. अब बाल आयोग ने पत्र लिखकर सरकार से मांग की है कि किसी वजह से अपात्र हुए बच्चों के अभिभावकों को एक और मौका देना चाहिए.
स्कूली शिक्षा मंत्री समेत अधिकारियों को लिखा पत्र
बाल आयोग के सदस्य बृजेश चौहान के अनुसार अकेले भोपाल में 200 बच्चे ऐसे हैं जिनका आरटीई के तहत सिर्फ इसलिए एडमिशन नहीं हो पाया क्योंकि उनके फॉर्म में गलती थी. आवेदन निरस्त होने की वजह से एडमिशन नहीं मिलने से छात्र और उनके अभिभावक निराश है. ऐसे में जब स्कूलों में आरक्षित की गई इतनी सीटें खाली रह गई है, तो बाल आयोग ने स्कूली शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर इन बच्चों के अभिभावकों को एक और मौका देने की मांग की है.
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गलतियों की वजह से जिनके फॉर्म रिजेक्ट हुए उन्हें मिले मौका
बाल आयोग के सदस्य बृजेश चौहान ने बताया कि प्रदेश में रिजर्व की गई सीटों में से सिर्फ 40 फीसदी सीटों पर ही प्रवेश हो पाए हैं, उनके पास लगातार अभिभावक पहुंच रहे हैं. इसी को देखते हुए उन्होंने स्कूली शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार, स्कूली शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव और राज्य शिक्षा केन्द्र के कमिश्नर को पत्र लिखा है और छोटी-मोटी गलतियों की वजह से निरस्त हुए आवेदन में गलती सुधार का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए.