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उल्टा पड़ा दांव! शिवराज सरकार के गले की फांस बना ओबीसी आरक्षण, सूझ नहीं रहा कोई उपाय

जिस ओबीसी आरक्षण के सहारे शिवराज सरकार सियासी वैतरणी पार करना चाहती थी, वही अब बीच मझधार डुबाने को तैयार है. शिवराज सरकार को अब इसकी कोई काट नहीं मिल रही है, 2023 में एमपी में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में पिछड़ों-अगड़ों की नाराजगी बीजेपी को भारी न पड़ जाए.

obc reservation in mp
उल्टा पड़ा दांव
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Published : Sep 21, 2021, 6:41 PM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश में ओबीसी का आरक्षण कोटा बढ़ाने पर जबलपुर हाई कोर्ट ने सुनवाई की तारीख आगे बढ़ा दी है, लेकिन सरकार के लालीपॉप से प्रदेश के ओबीसी और सवर्ण दोनों ही नाराज हैं, जिसके चलते करीब साढ़े तीन लाख से ऊपर सरकारी कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. ऐसे में सरकार को पदोन्नति के रास्ते निकालना चाहिए.

IN-depth Analysis: कांग्रेस से ज्यादा बूढ़ी बीजेपी! युवा विधायकों में बीजेपी से साढ़े तीन गुना आगे है कांग्रेस

बीजेपी ने प्रदेश की 52 फीसदी आबादी को 27 प्रतिशत आरक्षण का झुनझुना तो पकड़ा दिया, लेकिन अब आरक्षण के जाल में बीजेपी खुद ही फंस गई है, मामला हाइ कोर्ट में है, अब सरकार ये जवाब नहीं दे पा रही कि 27 प्रतिशत आरक्षण के बाद संविधान का जो प्रावधान 50 प्रतिशत आरक्षण का है, वो सीमा पार हो जाएगी. यही पेंच सरकार की परेशानी का सबब बन गया है. आरक्षण पर सरकार दोतरफा घिरी है, एक तो सवर्ण भी उससे नाराज हैं, ओबीसी वर्ग का कर्मचारी पहले ही आरक्षण में प्रमोशन दिए जाने से बीजेपी से नाराज है, जबकि कोर्ट में सरकार ये साबित नहीं कर पा रही है कि 65 फीसदी आरक्षण की काट क्या होगी. संविधान के मुताबिक आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं दिया जा सकता है. अब ओबीसी और सवर्ण दोनों ही सरकार पर वादाखिलाफी और झुनझुना पकड़ाने का आरोप लगा रही हैं.

उल्टा पड़ा दांव

एक तरफ बीजेपी कहती है कि कांग्रेस 27 प्रतिशत आरक्षण पर कोर्ट में अपना पक्ष सही से नहीं रख पाई, लेकिन अब कर्मचारी सरकार से सवाल पूछ रहे हैं और कह रहे हैं कि पदोन्नति में आरक्षण देने की मंशा सरकार की नहीं है, यदि देना चाहे तो दे सकती है, जैसे उसने गृह विभाग में दिया है. वहीं मंत्री भूपेंद्र सिंह ने सफाई तो दी कि सरकार ने बड़े-बड़े वकीलों को सुनवाई के लिए खड़ा किया है, लेकिन इस बात का जवाब नहीं दे पाए कि आरक्षण सीमा से अधिक हो रहा है तो इसका क्या तोड़ निकाला है.

अभी आरक्षण की क्या स्थिति है, केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा में 49.5% आरक्षण दिया है, राज्य आरक्षण कोटे में वृद्धि के लिए कानून बना सकते हैं, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार 50% से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता है, लेकिन राजस्थान और तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों ने क्रमशः 68% और 87% तक आरक्षण का प्रस्ताव पास कर रखा है, जिसमें अगड़ी जातियों के लिए 14% आरक्षण भी शामिल है

बीजेपी-कांग्रेस ने आरक्षण के सपोर्ट में खड़े किए बड़े वकील

सरकार जरूर कह रही है कि मध्यप्रदेश में आबादी के लिहाज से ओबीसी को 27% आरक्षण मिलना चाहिए क्योंकि उनकी आबादी 51 फीसदी है. हालांकि, सरकार की ये जिरह कोर्ट नहीं मानता है, लिहाजा अब आरक्षण का मुद्दा सरकार की गले की फांस बन गया है, इस मुद्दे पर बीजेपी सोच रही थी कि उसे सियासी फायदा मिलेगा, लेकिन इसके चलते आरक्षण और सामान्य वर्ग वाले सभी सरकार से नाराज होने लगे हैं.

भोपाल। मध्यप्रदेश में ओबीसी का आरक्षण कोटा बढ़ाने पर जबलपुर हाई कोर्ट ने सुनवाई की तारीख आगे बढ़ा दी है, लेकिन सरकार के लालीपॉप से प्रदेश के ओबीसी और सवर्ण दोनों ही नाराज हैं, जिसके चलते करीब साढ़े तीन लाख से ऊपर सरकारी कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. ऐसे में सरकार को पदोन्नति के रास्ते निकालना चाहिए.

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बीजेपी ने प्रदेश की 52 फीसदी आबादी को 27 प्रतिशत आरक्षण का झुनझुना तो पकड़ा दिया, लेकिन अब आरक्षण के जाल में बीजेपी खुद ही फंस गई है, मामला हाइ कोर्ट में है, अब सरकार ये जवाब नहीं दे पा रही कि 27 प्रतिशत आरक्षण के बाद संविधान का जो प्रावधान 50 प्रतिशत आरक्षण का है, वो सीमा पार हो जाएगी. यही पेंच सरकार की परेशानी का सबब बन गया है. आरक्षण पर सरकार दोतरफा घिरी है, एक तो सवर्ण भी उससे नाराज हैं, ओबीसी वर्ग का कर्मचारी पहले ही आरक्षण में प्रमोशन दिए जाने से बीजेपी से नाराज है, जबकि कोर्ट में सरकार ये साबित नहीं कर पा रही है कि 65 फीसदी आरक्षण की काट क्या होगी. संविधान के मुताबिक आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं दिया जा सकता है. अब ओबीसी और सवर्ण दोनों ही सरकार पर वादाखिलाफी और झुनझुना पकड़ाने का आरोप लगा रही हैं.

उल्टा पड़ा दांव

एक तरफ बीजेपी कहती है कि कांग्रेस 27 प्रतिशत आरक्षण पर कोर्ट में अपना पक्ष सही से नहीं रख पाई, लेकिन अब कर्मचारी सरकार से सवाल पूछ रहे हैं और कह रहे हैं कि पदोन्नति में आरक्षण देने की मंशा सरकार की नहीं है, यदि देना चाहे तो दे सकती है, जैसे उसने गृह विभाग में दिया है. वहीं मंत्री भूपेंद्र सिंह ने सफाई तो दी कि सरकार ने बड़े-बड़े वकीलों को सुनवाई के लिए खड़ा किया है, लेकिन इस बात का जवाब नहीं दे पाए कि आरक्षण सीमा से अधिक हो रहा है तो इसका क्या तोड़ निकाला है.

अभी आरक्षण की क्या स्थिति है, केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा में 49.5% आरक्षण दिया है, राज्य आरक्षण कोटे में वृद्धि के लिए कानून बना सकते हैं, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार 50% से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता है, लेकिन राजस्थान और तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों ने क्रमशः 68% और 87% तक आरक्षण का प्रस्ताव पास कर रखा है, जिसमें अगड़ी जातियों के लिए 14% आरक्षण भी शामिल है

बीजेपी-कांग्रेस ने आरक्षण के सपोर्ट में खड़े किए बड़े वकील

सरकार जरूर कह रही है कि मध्यप्रदेश में आबादी के लिहाज से ओबीसी को 27% आरक्षण मिलना चाहिए क्योंकि उनकी आबादी 51 फीसदी है. हालांकि, सरकार की ये जिरह कोर्ट नहीं मानता है, लिहाजा अब आरक्षण का मुद्दा सरकार की गले की फांस बन गया है, इस मुद्दे पर बीजेपी सोच रही थी कि उसे सियासी फायदा मिलेगा, लेकिन इसके चलते आरक्षण और सामान्य वर्ग वाले सभी सरकार से नाराज होने लगे हैं.

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