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भोपाल गैस त्रासदीः एक बार फिर रासायनिक त्रासदी की शिकार हो सकती है राजधानी - Bhopal gas tragedy

भोपाल गैस त्रासदी के भले ही 35 वर्ष पूरे हो गए हैं. लेकिन अब तक जहरीले कचरे के निष्पादन की कोई नीति नहीं बनाई गई है.जिसका नतीजा यह है कि गैस प्रभावित क्षेत्र फिर से एक रासायनिक त्रासदी झेलने के मुहाने पर है.

भोपाल गैस त्रासदी
भोपाल गैस त्रासदी
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Published : Dec 3, 2019, 9:42 AM IST

भोपाल। शहर का जयप्रकाश नगर जिसे जेपी नगर भी कहा जाता है, यह वह इलाका है जो 35 साल पहले 2 और 3 दिसंबर की दरम्यानी रात मौत के उस भयावह मंजर का गवाह बना था, जिसे याद करते हुए आज भी यहां रहने वालों की रूहें सिहर उठती हैं. यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कारखाने से निकली जहरीली गैस ने न सिर्फ हजारों लोगों की जान ली, बल्कि पर्यावरण को ऐसी क्षति पहुंचाई, जिसकी भरपाई सरकारें आज तक नहीं कर पाई हैं.

भोपाल गैस त्रासदी

साल 1984 में हुए उस हादसे से पहले तक यूनियन कार्बाइड से निकलने वाले जहरीले रासायनिक कचरे को परिसर में ही बनाए गए सोलर इवेपोरेशन पॉन्ड में डंप किया जाता था. इस तरह 10 हजार मैट्रिक टन कचरा इन तालाबों में डाल दिया गया, लेकिन ये तालाब तकनीकी रूप से असुरक्षित थे और रसायन वहां से लीक होते थे. उसी कचरे के चलते यूनियन कार्बाइड के आसपास का 3 से 4 किलोमीटर क्षेत्र का भूजल प्रदूषित हो गया.

वहीं इस प्रदूषित इलाके में डायक्लोरोबेजिंन, पोलिन्यूक्लियर एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन्स, मरकरी जैसे 20 रसायन हैं, जो फेफड़े, लीवर और किडनी के लिए बहुत ही घातक होते हैं और कैंसर के कारक रसायन माने जाते हैं. इस संदर्भ में 1989 से अब तक 16 परीक्षण अलग-अलग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा किए जा चुके हैं. सिर्फ एक संस्था को छोड़ दिया जाए, तो बाकी सभी के परीक्षण में भूजल प्रदूषण की पुष्टि हुई है, जिसका दायरा समय के साथ बढ़ता जा रहा है.वहीं तत्कालीन सरकार में गैस राहत मंत्री रहे विश्वास सारंग का कहना है कि हमारी सरकार ने लगातार गैस पीड़ितों को राहत पहुंचाने का काम किया है.

कई रिपोर्ट में भूजल प्रदूषण की पुष्टि होने के बाद भी न तो केंद्र सरकार ने और न ही राज्य सरकार ने इवेपोरेशन पौंड में दफ्न उस जहरीले कचरे के निष्पादन की कोई नीति बनाई है, जिसका नतीजा यह है कि गैस प्रभावित क्षेत्र फिर से एक रासायनिक त्रासदी झेलने के मुहाने पर हैं. यूनियन कार्बाइड के आसपास की 32 बस्तियों का भूजल प्रदूषित हो चुका है. इसे सरकारी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा कि साल 2014 तक गैस पीड़ित इसी प्रदूषित भूजल को पीते रहें. वहीं मौजूदा कांग्रेस सरकार का कहना है कि हमारी सरकार लगातार पीड़ितों के लिए काम कर रही है.

हर साल 2 और 3 दिसंबर को गैस त्रासदी की बरसी बनाकर मृतकों को याद कर लिया जाता है और कुछ विरोध-प्रदर्शन हो जाते हैं, लेकिन इतनी सरकारें आई और गईं, लेकिन किसी ने भी गैस पीड़ितों के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया. गैस पीड़ितों को महज आश्वासन ही मिलते रहे हैं. 35 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के निष्पादन के लिए कोई नीति नहीं बन पाई है. मुआवजे और इलाज के नाम पर भी 25-25 हज़ार रुपए और कुछ दवाईयां गैस पीड़ितों को अब तक मिली है. ऐसे में गैस पीड़ितों को लेकर सरकारें कितनी गंभीर हैं, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.

भोपाल। शहर का जयप्रकाश नगर जिसे जेपी नगर भी कहा जाता है, यह वह इलाका है जो 35 साल पहले 2 और 3 दिसंबर की दरम्यानी रात मौत के उस भयावह मंजर का गवाह बना था, जिसे याद करते हुए आज भी यहां रहने वालों की रूहें सिहर उठती हैं. यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कारखाने से निकली जहरीली गैस ने न सिर्फ हजारों लोगों की जान ली, बल्कि पर्यावरण को ऐसी क्षति पहुंचाई, जिसकी भरपाई सरकारें आज तक नहीं कर पाई हैं.

भोपाल गैस त्रासदी

साल 1984 में हुए उस हादसे से पहले तक यूनियन कार्बाइड से निकलने वाले जहरीले रासायनिक कचरे को परिसर में ही बनाए गए सोलर इवेपोरेशन पॉन्ड में डंप किया जाता था. इस तरह 10 हजार मैट्रिक टन कचरा इन तालाबों में डाल दिया गया, लेकिन ये तालाब तकनीकी रूप से असुरक्षित थे और रसायन वहां से लीक होते थे. उसी कचरे के चलते यूनियन कार्बाइड के आसपास का 3 से 4 किलोमीटर क्षेत्र का भूजल प्रदूषित हो गया.

वहीं इस प्रदूषित इलाके में डायक्लोरोबेजिंन, पोलिन्यूक्लियर एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन्स, मरकरी जैसे 20 रसायन हैं, जो फेफड़े, लीवर और किडनी के लिए बहुत ही घातक होते हैं और कैंसर के कारक रसायन माने जाते हैं. इस संदर्भ में 1989 से अब तक 16 परीक्षण अलग-अलग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा किए जा चुके हैं. सिर्फ एक संस्था को छोड़ दिया जाए, तो बाकी सभी के परीक्षण में भूजल प्रदूषण की पुष्टि हुई है, जिसका दायरा समय के साथ बढ़ता जा रहा है.वहीं तत्कालीन सरकार में गैस राहत मंत्री रहे विश्वास सारंग का कहना है कि हमारी सरकार ने लगातार गैस पीड़ितों को राहत पहुंचाने का काम किया है.

कई रिपोर्ट में भूजल प्रदूषण की पुष्टि होने के बाद भी न तो केंद्र सरकार ने और न ही राज्य सरकार ने इवेपोरेशन पौंड में दफ्न उस जहरीले कचरे के निष्पादन की कोई नीति बनाई है, जिसका नतीजा यह है कि गैस प्रभावित क्षेत्र फिर से एक रासायनिक त्रासदी झेलने के मुहाने पर हैं. यूनियन कार्बाइड के आसपास की 32 बस्तियों का भूजल प्रदूषित हो चुका है. इसे सरकारी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा कि साल 2014 तक गैस पीड़ित इसी प्रदूषित भूजल को पीते रहें. वहीं मौजूदा कांग्रेस सरकार का कहना है कि हमारी सरकार लगातार पीड़ितों के लिए काम कर रही है.

हर साल 2 और 3 दिसंबर को गैस त्रासदी की बरसी बनाकर मृतकों को याद कर लिया जाता है और कुछ विरोध-प्रदर्शन हो जाते हैं, लेकिन इतनी सरकारें आई और गईं, लेकिन किसी ने भी गैस पीड़ितों के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया. गैस पीड़ितों को महज आश्वासन ही मिलते रहे हैं. 35 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के निष्पादन के लिए कोई नीति नहीं बन पाई है. मुआवजे और इलाज के नाम पर भी 25-25 हज़ार रुपए और कुछ दवाईयां गैस पीड़ितों को अब तक मिली है. ऐसे में गैस पीड़ितों को लेकर सरकारें कितनी गंभीर हैं, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.

Intro:भोपाल- भोपाल का जयप्रकाश नगर जिसे जेपी नगर भी कहा जाता है यह वह इलाका है जो 35 साल पहले 2 और 3 दिसंबर की दरमियानी रात मौत के उस भयावह मंजर का गवाह बना था। जिसे याद करते हुए आज भी यहां रहने वालों की रूहे सिहर उठती है। यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कारखाने में एक टैंक से अत्यधिक जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट का रिसाव हुआ था। इस घटना की वजह से भोपाल का नाम विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी से जुड़ गया। जहरीली गैस के असर और उस रात मची भगदड़ में हजारों लोग और पशु पक्षियों की जानें गई। साथ ही पर्यावरण को ऐसी क्षति पहुंची कि जिसकी भरपाई सरकारें आज तक नहीं कर पाई है।


Body:साल 1984 में हुए उस हादसे से पहले तक यूनियन कार्बाइड से निकलने वाले जहरीले रासायनिक कचरे को परिसर में ही बनाए गए सोलर इवेपोरेशन पॉन्ड मे डंप किया जाता था। इस तरह 10 हजार मैट्रिक टन कचरा इन तालाबों में डाल दिया गया। लेकिन ये तालाब तकनीकी रूप से असुरक्षित थे। और रसायन वहां से लीक होते थे उसी कचरे के चलते यूनियन कार्बाइड के आसपास का 3 से 4 किलोमीटर क्षेत्र का भूजल प्रदूषित हो गया। इसमें डायक्लोरोबेजिंन, पोलिन्यूक्लियर एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन्स, मरकरी जैसे 20 रसायन है जो फेफड़े लिवर किडनी के लिए बहुत ही घातक होते हैं और कैंसर के कारक रसायन माने जाते हैं। इस संदर्भ में 1989 से अब तक 16 परीक्षण अलग-अलग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा किए जा चुके हैं। सिर्फ एक संस्था को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी के परीक्षण में भूजल प्रदूषण की पुष्टि हुई है। जिसका दायरा समय के साथ बढ़ता जा रहा है। सरकार का इस पूरे मामले में रुक संवेदन ही नहीं रहा है कई रिपोर्ट में भूजल प्रदूषण की पुष्टि होने के बाद भी न तो केंद्र सरकार ने और ना ही राज्य सरकार ने इवेपोरेशन पौंड में दफन उस जहरीले कचरे के निष्पादन की कोई नीति बनाई है। जिसका नतीजा यह है कि गैस प्रभावित क्षेत्र फिर से एक रासायनिक त्रासदी झेलने के मुहाने पर हैं। यूनियन कार्बाइड के आसपास की 32 बस्तियों का भूजल प्रदूषित हो चुका है। इसे सरकारी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा कि, साल 2014 तक गैस पीड़ित इसी प्रदूषित भूजल को पीते रहे। गैर सरकारी संस्थानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रदर्शनों के बाद आखिरकार साल 2014 में इन क्षेत्रों में पानी की पाइप लाइन डाली गई लेकिन तब तक यह रसायन लोगों के शरीर में गहराई तक भूल चुके थे आज भी पानी की कमी होने पर लोग इस पानी का उपयोग कर लेते हैं।


Conclusion:भोपाल गैस त्रासदी के वक्त कांग्रेस की सरकार थी इसके बाद बीजेपी और पिछले 15 सालों से प्रदेश में बीजेपी की ही सत्ता थी और फिर 1 साल से प्रदेश की कमान कांग्रेस सरकार के हाथ में है। हर साल 2 और 3 दिसंबर को गैस त्रासदी की बरसी बनाकर मृतकों को याद कर लिया जाता है और कुछ विरोध प्रदर्शन हो जाते हैं। लेकिन इतनी सरकारें आई और गई किसी ने भी गैस पीड़ितों के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। गैस पीड़ितों को महज आश्वासन ही मिलते रहे हैं। 35 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के निष्पादन के लिए कोई नीति नहीं बन पाई है। मुआवजे और इलाज के नाम पर भी 25-25 हज़ार रुपये और कुछ दवाइयां गैस पीड़ितों को अब तक मिली है। ऐसे में गैस पीड़ितों को लेकर सरकारें कितनी गंभीर है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। बाइट- विश्वास सारंग, पूर्व मंत्री, मध्य्प्रदेश। बाइट- शोभा ओझा, प्रदेश मीडिया प्रभारी, कांग्रेस।
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