भोपाल। मध्यप्रदेश जितना अजब है यहां के कारनामें उतने ही गजब है. मध्यप्रदेश के दो जिलों में हुए रेत खनन पर एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ) में सवाल उठे हैं. नर्मदा नदी में मशीन से रेत खनन पर एनजीटी ने रोक लगा रखी है, लेकिन सीहोर और रायसेन जिले में डेढ़ महीने के अंदर ही इतना खनन कर लिया गया कि उस पर सवाल उठने लगे हैं कि आखिर मैन्युअल तरीके से इतनी बड़ी मात्रा में खनन कैसे कर लिया गया है?. सीहोर और रायसेन जिले के ठेकेदारों ने महज 12 खदानों से सिर्फ 45 दिन के भीतर लगभग 42 हजार डंपर रेत निकाल ली गई है.
याचिका में क्या कहा गया?
विदिशा निवासी रूपेश नेमा ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में एक याचिका दायर की है. याचिका में कहा गया है कि मध्यप्रदेश माइनिंग कारपोरेशन ने 31 मार्च को सीहोर और रायसेन जिलों में ठेकेदारों से रेत खनन को लेकर एग्रीमेंट किया गया, लेकिन कोरोना के चलते लगाए लॉकडाउन के की वजह से काम शुरू नहीं हो पाया. 31 मई के बाद एमपी में खनन का काम शुरू हुआ. मानसून शुरू होते ही खनन पर रोक लग जाती है, लेकिन मानसून देरी से होने के कारण 17 जुलाई तक प्रदेश में खनन जारी रहना बताया गया.
एक हजार डंपर रोज!
डेढ़ महने में 7 लाख 52 जार 572 घनमीटर रेत खोदी गई है, यानी रोजाना करीब एक हजार डंपर रेत. एक डंपर में वैध रूप से 14 घनमीटर और ओवरलोडिंग कर 18 घनमीटर रेत भरी जाती है, लेकिन इतने कम समय में इतने बड़े पैमाने पर किए खनने पर सवाल उठ रहा है कि नर्मदा में बिना मशीन उतरे मैन्युअल तरिके से फावड़े-तगाड़ी से इतने भारी मात्रा में रेत कैसी निकाली गई.
एनजीटी ने दिए जांच के आदेश
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने विदिशा के रुपेश नेमा की याचिका पर सुनवाई करते हुए सीहोर और रायसेन कलेक्टर को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ इसकी जांच कराने के आदेश दिए हैं. दोनों कलेक्टर को दो महीने के अंदर जांच पूरी कर रिपोर्ट एनजीटी को सौंपना के लिए कहा गया है.
इन कंपनी के पास खनन का काम
रायसेन का ठेका भोपाल के राजेन्द्र रघुवंशी और सीहोर का ठेका हैदराबाद की पावरमैक कंपनी के पास है. सीहरो में बड़गांव-1, जहाजपुरा,माहूकला, सरदार-नगर और सोमलवाड़ा. वहीं रायसेन में अलीगंज,कोटेगांव,कोटेगपरमंत,सिवनी-1,सोजानी खदानों से रेत खनन किया गया है.