भोपाल। Name change politics in MP: अंग्रेजी के साहित्यकार शेक्सपियर ने कहा था कि नाम में क्या रखा है, लेकिन वह इन दिनों यदि मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में होते तो उन्हें पता चलता कि नाम अब यहां की राजनीति का अहम किरदार हो गया है. मध्यप्रदेश में भाजपा (BJP) कह रही है कि नाम में ही सब कुछ रखा है और कांग्रेस (Congress) का कहना है नाम में नहीं काम में सब कुछ रखा है. नेम चेंज पॉलिटिक्स मध्यप्रदेश में इन दिनों इस कदर हावी है कि कुछ नाम बदले गए तो कुछ नामों को बदलने की मांग उठने का सिलसिला लगातार जारी है. भोपाल का ही नहीं बल्कि इंदौर, ग्वालियर और होशंगाबाद के साथ ही जबलपुर स्थित कई जगहों का नाम बदलने की मांग लगातार उठती रही है. राजधानी भोपाल में हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने हबीबगंज रेलवे स्टेशन (Habibganj railway station) का नाम बदलकर रानी कमलापति (Rani KamlaPati) के नाम कर इसका विधिवत उद्घाटन किया था. इसके बाद ही यहां हबीबगंज पुलिस स्टेशन (Habibganj Police station) का नाम बदलने की भी मांग उठी, जिस पर गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि सरकार इस पर विचार कर रही है.
राजधानी में कई जगहों के नाम बदलने की डिमांड
हाल ही में संस्कृति बचाओ मंच ने नवाब काल की याद दिलाने वाले हमीदिया अस्पताल (Hamidia Hospital) और सुल्तानिया जनाना अस्पताल का नाम बदलने की मांग रखी थी. इसके साथ ही सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने भोपाल के इस्लाम नगर, लालघाटी ,हलाली डैम और हलालपुर बस स्टैंड बस स्टैंड का नाम बदलने की मांग उठाई थी. इनका कहना है कि यह नाम मुस्लिम शासकों के नाम पर रखे गए थे. भोपाल का नाम भोजपाल करने की मांग भोपाल के पूर्व महापौर आलोक शर्मा ने बाकायदा नगर निगम में प्रस्ताव लाकर भोपाल का नाम फिर से भोपाल किए जाने की बात कही थी. हालांकि अब तक नगर निगम की इस प्रस्ताव को मोदी सरकार द्वारा हरी झंडी नहीं दी गई है. इसके साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती हलाली डैम का नाम बदलने जाने की मांग कर चुकी हैं, वहीं पूर्व प्रोटेम स्पीकर विधायक रामेश्वर शर्मा ने भी ईदगाह हिल्स का नाम बदलकर गुरु नानक टेकरी (Guru Nanak Tekri) किए जाने की मांग की थी. भोपाल के उपनगर बैरागढ़ का नाम पहले ही बदलकर संत हिरदाराम नगर कर दिया गया है. होशंगाबाद भी नाम बदलने की फेहरिस्त में मध्य प्रदेश सरकार ने होशंगाबाद संभाग का नाम बदलकर नर्मदा पुरम संभाग तो कर दिया है लेकिन होशंगाबाद शहर अभी नाम बदले जाने की फेहरिस्त में शामिल है. होशंगाबाद का नाम नर्मदा पुरम करने की घोषणा भी शिवराज सरकार द्वारा की जा चुकी है.
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कांग्रेस ने उठाई थी इन शहरों का नाम बदलने की मांग
मध्यप्रदेश में नाम बदलने की राजनीति में वैसे तो भाजपा आगे है, लेकिन इसमें कांग्रेस भी पीछे नहीं रही है. पिछले साल रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि पर कांग्रेस नेताओं ने ग्वालियर का नाम लक्ष्मी बाई नगर करने की मांग उठाई थी. वहीं कांग्रेस नेता सज्जन सिंह वर्मा ने इंदौर शहर का नाम देवी अहिल्या बाई नगर रखने रखे जाने की मांग की थी.
जहां भी जरूरत होगी बदले जाएंगे नाम- भाजपा
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता महेंद्र सिंह सोलंकी का कहना है कि नाम बिल्कुल बदले जाने चाहिए. यदि कोई नाम गुलामी ,अपमान और आसम्मान का प्रतीक हो तो उसे जरूर बदला जाना चाहिए. देश में किसी भी संस्था या संस्थान का नाम इस प्रकार से रखा जाना चाहिए ,जो राष्ट्र के स्वाभिमान को बढ़ाता है और राष्ट्र के प्रतिमान के अनुरूप हो, साथ ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का समर्थन करता हो. सोलंकी ने कहा कि हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति स्टेशन करने के लिए मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त करता हूं.
भाजपा नाम बदलने की कर रही गंदी राजनीति-कांग्रेस
इधर कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा का कहना है कि जिन्होंने काम नहीं किया है,उनको नाम बदल कर एक गंदी राजनीति परोसने की आदत हो चुकी है. यदि काम की इतनी लंबी लकीर खींच दे तो नाम छोटा हो सकता है, लेकिन सरकार और उसकी विचारधारा की रूचि सांप्रदायिकता और वैमनस्यता फैलाने में है. बेहतर होगा कि सरकार सार्थक कामों में रुचि ले. कांग्रेस के नाम बदलने की राजनीति में शामिल होने पर मिश्रा ने कहा कि कांग्रेस ने आज तक नाम बदलने को लेकर कोई भी अधिकृत बयान पार्टी की तरफ से नहीं दिया है. इंदौर और ग्वालियर का नाम बदलने के लिए व्यक्तिगत राय हो सकती है, पार्टी की नहीं.
जबलपुर से अंग्रेजों का था खास लगाव
एक ओर जहां मध्य प्रदेश में नामों को बदलने का सिलसिला जारी है, वहीं अंग्रेजों के जमाने में जबलपुर (Jabalpur Development) को खासा महत्व दिया जाता था. अंग्रेजों ने जबलपुर को पूरे इलाके की राजधानी बना कर रखा हुआ था. लेकिन शहर के रहवासी इलाके के बड़ा भूभाग भी अंग्रेजों द्वारा विकसित किया गया था. शहर के कई इलाकों के नाम बदल दिए गए हैं, लेकिन लोग इन्हें सदियों पुराने अंग्रेजों के दिए नाम से ही जानते हैं. आइए शहर के इन्हीं नामों के इतिहास पर नजर डालते हैं.
लॉर्ड गंज (Lord Ganj)
यह इलाका शहर का सबसे व्यस्त बाजार का इलाका कहलाता है. हालांकि किसी जमाने में यहां बड़ा मैदान रहा होगा. 1833 के आसपास भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम पेंटिंग (Lord William) जबलपुर आए थे. उनका तंबू जहां लगाया गया था, उस जगह को बाद में लॉर्ड गंज कहा गया. इस घटना के पौने दो सौ साल के लगभग हो चुके हैं, लेकिन अभी भी इस जगह का नाम लॉर्ड गंज ही है. हालांकि यहां पर अब अंग्रेजों से जुड़ी कोई भी चीज जिंदा नहीं है, लेकिन नाम आज भी उनका ही है.
नेपियर टॉउन (Napier Town)
कुछ ऐसा ही किस्सा नेपियर टाउन के साथ भी जुड़ा हुआ है. मिस्टर नेपियर जबलपुर में कमिश्नर हुआ करते थे. उसी जमाने में एक बड़ी कॉलोनी इस इलाके में बनाई गई थी. इसमें ज्यादातर अंग्रेज अफसर या फिर उनकी फैक्ट्रियों में काम करने वाले कर्मचारी रहा करते थे. यह बहुत व्यवस्थित कॉलोनी थी. आज इस जगह को नेपियर टाउन के नाम से जाना जाता है.
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राइट टॉउन (Right Town)
जबलपुर के राजा गोकुलदास की परफेक्ट पॉटरी नाम की एक फैक्ट्री थी. इसमें चीनी मिट्टी के पाइप बनाए जाते थे. इसी फैक्ट्री के मैनेजर एक अंग्रेज अफसर आर्थर राइट (English Officer Arthur Right) हुआ करते थे. उन्होंने नेपियर टॉउन के ठीक बाजू में एक दूसरी कॉलोनी विकसित की थी, जिसे राइट टॉउन का नाम दिया गया. आज भी यह इलाका राइट टॉउन के नाम से ही जाना जाता है.
विक्टोरिया हॉस्पिटल (Victoriya Hospital)
लेडी एल्गिन हॉस्पिटल और विक्टोरिया हॉस्पिटल जबलपुर की दो महत्वपूर्ण सरकारी अस्पताल हैं. हालांकि इनके नाम बदल दिए गए हैं, लेकिन आम बोलचाल की भाषा में आज भी विक्टोरिया जबलपुर में सरकारी अस्पताल का नाम है. पहले विश्व युद्ध (First World War) के बाद जबलपुर में एक महल नुमा इमारत बनाई गई थी जिसमें स्वास्थ्य विभाग का कार्यालय शुरू किया गया था. तब से आज तक इसी इमारत से ही जबलपुर में स्वास्थ्य की सेवाएं मूर्त रूप लेती रही हैं. आज भी जबलपुर के चीफ मेडिकल ऑफिसर इसी इमारत में बैठते हैं.
ब्लूम चौक (Bloom Chowk)
जबलपुर में एक मिस्टर ब्लूम नाम के इंजीनियर हुआ करते थे, जिन्होंने शहर की कई सड़कों के नक्शे बनाए थे. जबलपुर का भंवरताल गार्डन भी उसी नक्शे के बाद बन पाया था. हालांकि ब्लूम चौक पर कहीं पर भी कोई साइन बोर्ड नहीं है, लेकिन शहर की आम जनता उस चौराहे को मिस्टर ब्लूम के नाम से ही जानती है.
मुकदम गंज (Mukdum Ganj)
मिस्टर मैकढम ने जबलपुर के एक बाजार का निर्माण करवाया था, जहां लोगों को आम जरूरत की चीजें मिला करती थीं. बाद में इस जगह को मुकदम गंज के नाम से जाना जाने लगा. मिस्टर मैकढम जबलपुर के डिप्टी कमिश्नर हुआ करते थे.