भोपाल। प्रदेश में चुनावी महाभारत का शंखनाद भले ही न हुआ हो, लेकिन कांग्रेस ने बीजेपी के अजेय गढ़ मानी जाने वाली गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र में अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं. गोविंदपुरा विधानसभा सीट पर बीजेपी का 43 सालों से लगातार कब्जा बरकरार है. इस सीट पर 1980 से पूर्व मंत्री स्वर्गीय बाबूलाल गौर का लगातार कब्जा रहा. वे यहां से लगातार 8 बाज चुनाव जीते. 2018 में यहां से उनकी बहू कृष्णा गौर जीतकर आई हैं. बीजेपी के लिए सबसे सुरक्षित इस सीट पर पार्टी के कई नेताओं की नजर है. हालांकि कांग्रेस इस सीट पर फतह करने क्षेत्र में चेहरा तलाशने में जुटी है. गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र की पहचान नवरत्न कंपनी बीएचईएल से हैं. कर्मचारी वर्ग की राजनीति कर कभी बाबूलाल गौर ने यहां अपनी पकड़ बनाई थी और इस बार कमलनाथ ने 1 मई मजदूर दिवस पर यहां से चुनावी बिगुल फूंका है.
गोविंदपुरा विधानसभा सीट का इतिहास: सूबे में साल 1980 से लगातार गोविंदपुरा सीट पर बीजेपी का कब्जा बना हुआ है. कर्मचारियों की राजनीति करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री स्व. बाबूलाल गौर ने 1980 में कांग्रेस के आरडी त्रिपाठी को धूल चटाई थी. उस समय बाबूलाल गौर को 20818 वोट मिले थे और हार-जीत का अंतर महज 1525 वोटों का था. बाबूलाल गौर इस सीट से लगातार 8 बार चुने गए. बाबूलाल गौर ने 1985, 1990, 1993, 1998, 2003, 2018, 2013 तक लगातार जीत दर्ज की. इस सीट से बाबूलाल गौर नेता प्रतिपक्ष बने और मुख्यमंत्री तक के ओहदे पर पहुंचे. 2013 में उन्होंने इस सीट से अपना आखिरी चुनाव लड़ा और 65 फीसदी वोट शेयर के साथ जबरदस्त जीत दर्ज की थी. उन्होंने कांग्रेस के गोविंद गोयल को 70 हजार 644 वोटों से शिकस्त दी थी.
बाबूलाल गौर का आखिरी चुनाव: 2018 के विधानसभा चुनाव के पूर्व 70 के फॉर्मूले के तहत पहले बाबूलाल गौर से मंत्री पद छीना गया और बाद में टिकट देने से भी इंकार कर दिया गया. हालांकि बाबूलाल गौर के अड़ने पर बीजेपी ने उनकी बहू कृष्णा गौर को यहां से टिकट दिया और वे 58 फीसदी वोट के साथ विजयी रहीं. इन 43 सालों के दौरान कांग्रेस ने यह सीट छीनने के लिए कई पैंतरे अपनाए. कभी भोपाल महापौर रही विभा पटेल, आरडी त्रिपाठी, करनैल सिंह जैसे मजदूर नेताओं और युवा नेता गिरीश शर्मा को मैदान में उतारा लेकिन कोई भी गौर परिवार की जड़ें नहीं हिला सका.
भोपाल जिले की सबसे बड़ी सीट: भोपाल जिले में कुल 7 विधानसभा सीट हैं. इनमें से गोविंदपुरा विधानसभा सीट मतदाताओं के लिहाज से सबसे बड़ी विधानसभा है. यहां मतदाताओं की संख्या 3 लाख 77 हजार 844 हैं. पुरूष मतदाता 1 लाख 97 हजार 438 हैं, महिला मतदाता 1 लाख 80 हजार 391 हैं. थर्ड जेंडर 15 मतदाता इस सीट में हैं. गोंवदपुरा विधानसभा सीट में ओबीसी वर्ग के मतदाता निर्णायक माने जाते हैं. इस सीट पर सामान्य और ओबीसी मतदाताओं की संख्या तीन चौथाई यानी करीबन 78 फीसदी है. इसके अलावा करीबन 15 फीसदी अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाता है और बाकी अन्य हैं.
सुरक्षित सीट पर कई दावेदार: सबसे सुरक्षित गोविंदपुरा सीट पर बीजेपी के कई नेताओं की नजर लगी हुई है. इस सूची में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में बाबूलाल गौर के दवाब के आगे बीजेपी को झुकना पड़ा था और उनकी बहू कृष्णा गौर को टिकट दिया गया था. कृष्णा गौर पूर्व महापौर भी रह चुकी हैं. पिछले चुनाव में भी वीडी शर्मा इस सीट से दावेदारी कर रहे थे.
- इस बार फिर कृष्णा गौर इस सीट से दावेदारी कर रही हैं. यह उनके परिवार की पारंपरिक सीट रही है.
- बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी इस सीट से चुनाव मैदान में उतरने की कोशिश कर रहे हैं. 2018 में भी उनका इस सीट से नाम सामने आया था.
- पूर्व महापौर और प्रदेश उपाध्यक्ष आलोक शर्मा भी 2018 में इस सीट से दावेदारी कर चुके हैं.
कांग्रेस से यह हो सकते उम्मीदवार: कांग्रेस की तरफ से इस बार रामबाबू शर्मा उम्मीदवार हो सकते हैं. मूल रूप से व्यवसायी रामबाबू शर्मा क्षेत्र में जाना पहचाना चेहरा हैं. पिछली बार कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ने वाली गिरीश शर्मा सिंधिया के साथ बीजेपी में जा चुके हैं. दिग्विजय सिंह समर्थक गोविंद गोयल फिर दावेदारी कर सकते हैं. हालांकि पहले एक बार चुनाव हार चुके हैं. रविन्द्र साहू भी इस बार गोविंदपुरा सीट से दावेदारी कर रहे हैं. वे दिग्विजय सिंह के करीबी हैं.
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बीएचईएल से है गोविंदपुरा की पहचान: गोविंदपुरा विधानसभा की पहचान बिजली का भारी सामान बनाने वाले कारखाने भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड यानी बीएचईएल भेल से है. बीएचईएल में देश के कौने-कौने से कर्मचारी काम के लिए आए और फिर धीरे-धीरे आसपास की कॉलोनियों में बसते चले गए, यही इस क्षेत्र के मतदाता हैं. हालांकि इस कंपनी में कर्मचारियों की संख्या लगातार घटती चली गई. पहले जहां इस कपंनी में 30 हजार से ज्यादा कर्मचारी अधिकारी हुआ करते थे, वह संख्या अब घटकर करीब 5 हजार पर सिमट गई है. बीएचईएल के कर्मचारियों के इन्हीं मुद्दों को लेकर इस बार कांग्रेस ने यहां चुनावी बिगुल फूंका है. बीएचईएल के अलावा गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र में कभी 1 हजार से ज्यादा फैक्ट्रियां हुआ करती थी, जिसकी संख्या अब सिर्फ करीबन 300 रह गई हैं.