भोपाल। सतपुड़ा भवन में लगी आग की जांच सरकार ने शुरू करवा दी. मंगलवार को सतपुड़ा भवन में जांच समिति पहुंची और दोपहर 1 बजे से 3 बजे के बीच तीसरी से छठी मंजिल का निरीक्षण किया गया. इसमें इलेक्ट्रिकल सेफ्टी, PWD के E&M विंग और फॉरेंसिक साइयन्स लैब्स के एक्स्पर्ट्स की टीम ने बारीकी से परीक्षण किया. वहीं FSL (Forensic Science Laboratory) टीम ने आधा दर्जन सैम्प्लस टेस्ट करने लिए हैं. इसके अलावा कई कर्मचारियों व अधिकारियों के बयान लिए गए. होम डिपार्टमेंट की तरफ से बताया गया कि बुधवार को भी Satpuda भवन का एक बार फिर निरीक्षण किया जाएगा और करीब 20 लोगों के बयान लिए जाएंगे. गुरूवार को इसकी जांच रिपोर्ट सौंपनी है.
इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत ने भी नजर रखी थी और इसकी पैरलल इंवेस्टिगेशन की. इसमें पता चला कि भवन के भीतर फायर सिस्टम की देखरेख और संचालन की समस्त जवाबदारी पीडब्ल्यूडी (लोक निर्माण विभाग) की थी. PWD से पहले CPA (राजधानी परियोजना प्रशासन) के पास मेंटनेंस का जिम्मा था. राजनीतिक कारणों से CPA बंद हो गया तो तीनों इमारतें PWD के सुपुर्द कर दी गई. जानकारी के अनुसार करीब 5 साल पहले सीपीए ने भवन के फायर सिस्टम की जांच की थी. इसके बाद से कभी इसकी चेकिंग नहीं की गई. इसीलिए सोमवार को जब आगजनी हुई तो फायर सिस्टम को शुरू करने के दौरान इसका वाल्व टूट गया. फायर अमले ने टैंकर का प्रेशर पाइप फायर हाइड्र्रेंट से लगाया तो पानी ही नहीं गया. यही कारण रहा कि समय पर फ्लोर के ऊपर पानी नहीं पहुंच पाया.
कंट्रोल रूम भी नहीं था: सतपुड़ा भवन में फायर के लिए कोई कंट्रोल रूम नहीं बनाया गया था. जो बना था, वह कई साल पहले बंद हो गया. जब ईटीवी की टीम ने भीतर जाकर चेक करना चाहा तो पुलिस ने रोक दिया और कहा कि अभी अंदर जाना मना है. पड़ताल में पता चला कि तीनों फ्लोर को मिलाकर मुश्किल से 13 फायर एक्सटिंग्विशर थे, जो कि 3 साल से भी पुराने थे. इनकी हर 6 महीने में जांच करने का प्रावधान है. PWD के अफसरों से बात की तो बोले कि डिपार्टमेंट ने हमसे मांग नहीं की.
ट्राइबल डिपार्टमेंट खुद कर रहा था रिनोवेशन: आग थर्ड फ्लोर के पीछे वाले हिस्से से लगना शुरू हुई और फिर हवा के कारण सामने की तरफ फैलती गई. यहीं से लपटे उठी तो फिर चौथी, पांचवी और छठवीं मंजिल को चपेट में ले लिया. PWD के अफसरों से बात की बोले कि हमें ट्राइबल डिपार्टमेंट ने लिखकर नहीं दिया कि उन्हें फायर एक्सटिंग्विशर चाहिए. ट्राइबल में होने वाले काम के लिए उन्हें बजट अलॉट कर दिया गया था और हेल्थ में PWD खुद काम कर रहा था. इस काम के दौरान जो भी रॉ मटेरियल निकला, उसे सीढ़ियों पर या छत पर रख दिया गया.
एक साल से चल रहा था रिनोवेशन, 9 करोड़ रुपए हुए थे मंजूर: कोरोना की तीसरी लहर खत्म होने के बाद सतपुड़ा भवन में संचालित स्वास्थ्य संचालनालय (हेल्थ डायरेक्टोरेट) के दफ्तर को भी कॉर्पोरेट स्टाइल में तैयार करने के लिए एक साल पहले तैयारी की गई थी. इसके लिए सीपीए द्वारा दिए गए प्राक्कलन के आधार पर स्वास्थ्य विभाग ने संधारण मद से 9 करोड़ 92 लाख 95 हजार 477 रुपए मंजूर किए थे. CPA का PWD में विलय होने के बाद यह काम PWD की E&M शाखा कर रही थी. सतपुड़ा भवन की चार मंजिल (दूसरी, चौथी, पांचवीं, छठवीं) हेल्थ डिपार्टमेंट के पास ही थी. इसके अंदरूनी हिस्से को तोड़कर नई डिजाइन का ऑफिस बनाया जा चुका था. इसमें हेल्थ कमिश्नर और स्वास्थ्य संचालक राज्य प्रशासनिक सेवा के चार अधिकारी बतौर अपर संचालक बैठते थे. दूसरी मंजिल पर रिकॉर्ड रूम बनाया गया था. चौथी और पांचवीं मंजिल पर स्वास्थ्य विभाग की 30 शाखाओं के लिए जगह बनाई गई थी. छठवीं मंजिल पर स्वास्थ्य आयुक्त, संचालकों के साथ अपर संचालक के बैठने की व्यवस्था थी.
1982 में 4.61 करोड़ में बना था, सीएम अर्जुन सिंह ने किया था उद्घाटन: सतपुड़ा भवन का निर्माण वर्ष 1982 में पूरा हुआ था. वर्ष 1983 में इसका उद्घाटन तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह ने किया था. इसके साथ ही विंध्याचल भवन का भी इसी दौरान निर्माण पूरा हुआ और 4.95 करोड़ रुपए में हुआ था. दोनों भवन का नाम एमपी की पर्वत माला के नाम पर रखा गया. इन दोनों का निर्माण सीपीए यानी राजधानी परियोजना प्रशासन ने किया था. एक साल पहले तक सीपीए ही इनकी देखरेख करता आ रहा था, लेकिन इनके मेंटनेंस का जिम्मा पीडब्ल्यूडी के पास है.
क्या बोले अफसर: अफसर ने कहा यह सही बात है कि मेंटेनेंस का जिम्मा हमारे पास था, लेकिन हम ट्राइबल में रिनोवेशन का काम नहीं कर रहे थे. हमें जो डिमांड दी जाती थी, उसके अनुसार हम सप्लाई करते. हम हेल्थ डिपार्टमेंट का रिनोवेशन कर रहे थे. फायर सिस्टम लगा हुआ था. बाकी बिंदुओं पर अभी जांच चल रही है.