भोपाल। मध्यप्रदेश में नियमित और संविदा कर्मचारियों के मातृत्व अवकाश के लिए अलग अलग नियम हैं. इसी वजह से अब संविदा कर्मचारी चुनावी साल में उग्र आंदोलन की तैयारी कर रही हैं. प्रदेश में 32 हजार के लगभग महिला संविदा कर्मचारी हैं. असल में शासन के कई विभागों में अब भी महिला कर्मचारी को मिलने वाला प्रसूति अवकाश इस पर तय होता है कि, महिला नियमित है या संविदा पर काम कर रही हैं. सामान्य प्रशासन विभाग की संविदा नीति में भी 3 महीने का ही प्रसूति अवकाश है.
संविदा पर काम कर रही महिलाएं भी मां: मध्यप्रदेश संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ के अध्यक्ष रमेश राठौर के मुताबिक पांच जून 2018 को सामान्य प्रशासन विभाग ने जो संविदा नीति जारी की थी. उसमें प्रसूति अवकाश 3 महीने ही रखा गया था. जबकि भारत सरकार भी मजदूरों को 6 महीने का प्रसूति अवकाश देती है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन मनरेगा राष्ट्रीय आजीविका मिशन खेल एवं युवा कल्याण विभाग पंचायत विभाग महिला बाल विकास विभाग जैसे विभागों में अब भी संविदा कर्मचारियों को तीन महीनेका ही प्रसूति अवकाश मिलता है, केवल सर्व शिक्षा अभियान और पर्यावरण विभाग है कि जहां संविदा कर्मचारियों को भी 6 महीने का प्रसूति अवकाश दिया जा रहा है. संविदा पर काम कर रही कई महिलाओं ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़कर ये हक हासिल किया. लेकिन ये भी केवल उनके साथ हो पाया जो अपने अधिकारों को लेकर जागरुक थीं.
चाइल्ड केयर लीव भी नहीं: संविदा कर्मचारियों के प्रसूति अवकाश में भी कटौती है. फिर सरकार की ओर से दी जाने वाली 2 साल की चाइल्ड केयर लीव का लाभ भी संविदा कर्मचारियों को नहीं दिया जाता. संविदा कर्मचारी संगठन के प्रदेशध्यक्ष रमेश राठौर कहते हैं प्रसूति अवकाश की फाईल पिछले एक साल से वित्त विभाग में अटकी हुई है. रमेश राठौर कहते हैं सरकार संविदा और नियमित के आधार पर मां में भेद नहीं कर सकती.
अब आंदोलन की तैयारी: चुनावी साल में जब शिवराज सरकार बहनों पर मेहरबान हुई है और अतिरिक्त आस्मिक अवकाश तक प्रदान किया जा रहा है. तो संविदा महिला कर्मचारियों को भी उम्मीद बंधी है कि उनकी मांगे भी मान ली जाएंगी. संविदा महिला कर्मचारियों ने अल्टीमेटम दे दिया है कि अगर उनके प्सूति अवकाश और चाइल्ड केयर लीव से जुड़ी खबरं नहीं मानी गई तो छात्राएं उर आंदोलन करेंगी.