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आदिवासियों की ओर झुक रही मध्य प्रदेश की राजनीति, 2023 की तैयारी कर रही दोनों पार्टियां

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Published : Nov 10, 2021, 11:03 PM IST

Updated : Nov 11, 2021, 8:41 AM IST

मध्य प्रदेश की राजनीति इन दिनों आदिवासियों की ओर झुक रही है. राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार अजय बोकिल का कहना है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों की नजर आदिवासी वोट बैंक पर है. क्योंकि मध्य प्रदेश में 84 सीटों पर आदिवासियों की जनसंख्या अधिक है. 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को आदिवासियों ने बड़ा झटका दिया था.

Madhya Pradesh politics
मध्य प्रदेश की राजनीति

भोपाल। मध्य प्रदेश में प्रमुख राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस की राजनीति अब आदिवासियों की ओर मुड़ गई है. उपचुनाव में आदिवासी बाहुल्य सीट पर मिली जीत के बाद भाजपा आदिवासियों को जहां अपनी ओर करने की कोशिश में लग गई है, वहीं कांग्रेस भी अपने परंपरागत वोटर रहे आदिवासियों को फिर से अपने में जोड़ने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती.

वजह ये है कि राज्य में 43 समूहों वाली आदिवासियों की आबादी 2 करोड़ से ज्यादा है, जो 230 में से 84 विधानसभा सीटों पर असर डालती है. 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को आदिवासियों ने बड़ा झटका दिया था. उसके बाद भाजपा इसकी भरपाई करने में जुट गई है. दोनों ही दल आदिवासी वोट बैंक के सहारे 2023 के विधानसभा और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की नाव को पार लगाना चाहते हैं.

आदिवासी वोट बैंक पर है नजर

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार अजय बोकिल का कहना है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों की नजर आदिवासी वोट बैंक पर है. 18 सितंबर को जबलपुर में राजा शंकर शाह रघुनाथ शाह के शहीदी दिवस पर भाजपा के आयोजन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शामिल हुए थे. शाह के बाद अब 15 नवंबर को पीएम मोदी के दौरे को भी आदिवासियों को 2023 के चुनाव के लिए लुभाने की कोशिश में देखा जा रहा है।.

बोकिल ने कहा कि भाजपा सरकार ने हाल ही में आदिवासियों के लिए पेसा कानून लागू कर उनके अधिकारों को और मजबूत करने की दिशा में काम किया है. वहीं कांग्रेस भी लगातार आदिवासी अधिकार यात्रा के बाद अब जबलपुर में आदिवासी सम्मेलन करने जा रही है. इसके जरिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ आदिवासी वोट बैंक को अपनी तरफ करने की कोशिश में लगे हैं.

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सोशल इंजीनियरिंग बेस्ड पॉलिटिक्स

राजनीतिक विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार सजी थॉमस का कहना है कि भाजपा इन दिनों सोशल इंजीनियरिंग बेस्ड पॉलिटिक्स कर रही है. पहले भाजपा ने ओबीसी आरक्षण को लेकर मुद्दा बनाया और इसी के तहत उपचुनाव में भी सामान्य सीटों पर ओबीसी उम्मीदवारों को उतारा गया, जिसमें उसे सफलता भी मिली.

इसके बाद हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री और मप्र प्रभारी मुरलीधर राव ने ब्राह्मण और बनिया जेब में जैसा बयान देकर जता दिया कि वे अब विभिन्न समाजों को फोकस कर पॉलिटिक्स कर रहे हैं. थॉमस जा कहना है कि इन सब के बाद अब भाजपा की नजर ट्राइबल वोट बैंक पर है, जोकि आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में काफी मददगार साबित होंगे.

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कांग्रेस नहीं करती धोखे की राजनीति

कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री डॉक्टर विजयलक्ष्मी साधौ का कहना है कि आजादी के बाद से लेकर अब तक लगातार आदिवासी वर्ग कांग्रेस के साथ ही रहा है. कांग्रेस की सरकारों ने आदिवासी हितों के लिए बहुत सारे काम किए हैं.

आदिवासियों को लेकर भ्रम में है कांग्रेस

भाजपा प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी का कहना है कि आदिवासियों को लेकर कांग्रेस भ्रम में है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस विश्व आदिवासी दिवस और जनजाति गौरव दिवस भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को लेकर कन्फ्यूजन में है. आदिवासी अब भाजपा के साथ हैं, वह दिग्भ्रमित होने वाले नहीं है.

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इसलिए हो रही आदिवासियों की चिंता

मध्य प्रदेश में आदिवासी बहुल इलाके में 84 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 84 में से 34 सीट पर जीत हासिल की थी, वहीं 2013 में इस इलाके में 59 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी. 2018 में पार्टी को 25 सीटों पर नुकसान हुआ है. वहीं कांग्रेस ने 2018 में आदिवासी बहुल सीटों पर जीत दर्ज कर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाई थी. ये आदिवासी बहुल जिले झाबुआ, मंडला, डिंडोरी, बड़वानी, धार, खरगोन, खंडवा, रतलाम, बैतूल, सिवनी, बालाघाट, शहडोल, उमरिया, सीधी, श्योपुर, होशंगाबाद और छिंदवाड़ा है.

भोपाल। मध्य प्रदेश में प्रमुख राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस की राजनीति अब आदिवासियों की ओर मुड़ गई है. उपचुनाव में आदिवासी बाहुल्य सीट पर मिली जीत के बाद भाजपा आदिवासियों को जहां अपनी ओर करने की कोशिश में लग गई है, वहीं कांग्रेस भी अपने परंपरागत वोटर रहे आदिवासियों को फिर से अपने में जोड़ने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती.

वजह ये है कि राज्य में 43 समूहों वाली आदिवासियों की आबादी 2 करोड़ से ज्यादा है, जो 230 में से 84 विधानसभा सीटों पर असर डालती है. 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को आदिवासियों ने बड़ा झटका दिया था. उसके बाद भाजपा इसकी भरपाई करने में जुट गई है. दोनों ही दल आदिवासी वोट बैंक के सहारे 2023 के विधानसभा और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की नाव को पार लगाना चाहते हैं.

आदिवासी वोट बैंक पर है नजर

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार अजय बोकिल का कहना है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों की नजर आदिवासी वोट बैंक पर है. 18 सितंबर को जबलपुर में राजा शंकर शाह रघुनाथ शाह के शहीदी दिवस पर भाजपा के आयोजन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शामिल हुए थे. शाह के बाद अब 15 नवंबर को पीएम मोदी के दौरे को भी आदिवासियों को 2023 के चुनाव के लिए लुभाने की कोशिश में देखा जा रहा है।.

बोकिल ने कहा कि भाजपा सरकार ने हाल ही में आदिवासियों के लिए पेसा कानून लागू कर उनके अधिकारों को और मजबूत करने की दिशा में काम किया है. वहीं कांग्रेस भी लगातार आदिवासी अधिकार यात्रा के बाद अब जबलपुर में आदिवासी सम्मेलन करने जा रही है. इसके जरिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ आदिवासी वोट बैंक को अपनी तरफ करने की कोशिश में लगे हैं.

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सोशल इंजीनियरिंग बेस्ड पॉलिटिक्स

राजनीतिक विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार सजी थॉमस का कहना है कि भाजपा इन दिनों सोशल इंजीनियरिंग बेस्ड पॉलिटिक्स कर रही है. पहले भाजपा ने ओबीसी आरक्षण को लेकर मुद्दा बनाया और इसी के तहत उपचुनाव में भी सामान्य सीटों पर ओबीसी उम्मीदवारों को उतारा गया, जिसमें उसे सफलता भी मिली.

इसके बाद हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री और मप्र प्रभारी मुरलीधर राव ने ब्राह्मण और बनिया जेब में जैसा बयान देकर जता दिया कि वे अब विभिन्न समाजों को फोकस कर पॉलिटिक्स कर रहे हैं. थॉमस जा कहना है कि इन सब के बाद अब भाजपा की नजर ट्राइबल वोट बैंक पर है, जोकि आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में काफी मददगार साबित होंगे.

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कांग्रेस नहीं करती धोखे की राजनीति

कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री डॉक्टर विजयलक्ष्मी साधौ का कहना है कि आजादी के बाद से लेकर अब तक लगातार आदिवासी वर्ग कांग्रेस के साथ ही रहा है. कांग्रेस की सरकारों ने आदिवासी हितों के लिए बहुत सारे काम किए हैं.

आदिवासियों को लेकर भ्रम में है कांग्रेस

भाजपा प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी का कहना है कि आदिवासियों को लेकर कांग्रेस भ्रम में है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस विश्व आदिवासी दिवस और जनजाति गौरव दिवस भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को लेकर कन्फ्यूजन में है. आदिवासी अब भाजपा के साथ हैं, वह दिग्भ्रमित होने वाले नहीं है.

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इसलिए हो रही आदिवासियों की चिंता

मध्य प्रदेश में आदिवासी बहुल इलाके में 84 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 84 में से 34 सीट पर जीत हासिल की थी, वहीं 2013 में इस इलाके में 59 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी. 2018 में पार्टी को 25 सीटों पर नुकसान हुआ है. वहीं कांग्रेस ने 2018 में आदिवासी बहुल सीटों पर जीत दर्ज कर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाई थी. ये आदिवासी बहुल जिले झाबुआ, मंडला, डिंडोरी, बड़वानी, धार, खरगोन, खंडवा, रतलाम, बैतूल, सिवनी, बालाघाट, शहडोल, उमरिया, सीधी, श्योपुर, होशंगाबाद और छिंदवाड़ा है.

Last Updated : Nov 11, 2021, 8:41 AM IST
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