भोपाल। मध्यप्रदेश कांग्रेस में इन दिनों डॉ. गोविंद सिंह की सक्रीयता के चर्चे हैं. कई बार ये लगता है कि डॉक्टर गोविंद सिंह बीजेपी के बजाए कांग्रेस को ही आईना दिखा रहे हैं. विधानसभा में जब अविश्वास प्रस्ताव की हवा निकली तो सारा ठीकरा गोविंद सिंह के सिर पर ही फोड़ा गया. ये कहा गया कि बहुत कमजोर प्रस्ताव पेश किया गया था, लेकिन गोविंद सिंह ने एक दांव कमजोर पड़ा तो दूसरा मजबूत दांव खेलने में बहुत देर नहीं लगाई. सीडी की सियासत का वो दांव चला दिया कि, कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक सीडी के जरिए सत्ता की सीढ़ी का खेल शुरु हो गया.
सियासी गलियारों में चर्चा: सीडी को लेकर गोविंद सिंह के बयानों की तल्खी भी इस कदर कि जनाब सीडी का मुद्दा उठाकर नेशनल मीडिया में छा गए. इसी तरह राजा पटेरिया से मुलाकात करने में भी गोविंद सिंह ने नंबर बढ़वा लिए. जब कांग्रेस का कोई दिग्गज नेता राजा पटेरिया से मुलाकात के लिए नहीं पहुंचा तब डॉ गोविंद सिंह पहुंच गए और ये बता दिया कि वो जमीनी नेता हैं. अपनी पार्टी के नेताओं से जज़्बाती जुड़ाव रखने वाले. अब सियासी गलियारों में चर्चा इस बात की है कि, डॉ. गोविंद सिंह के ये तेवर बीजेपी के लिए हैं या पार्टी में ही किसी नेता को गोविंद सिंह अपना दम दिखा रहे हैं. सवाल ये भी है कि रणनीति गोविंद सिंह की ही है या कहीं ओर से आ रहे हैं ये राजा वाले दांव.
राजकुमार धनोरा के पीछे कौन है: बीजेपी की राजनीति में इन दिनों सिंधिया बीजेपी वर्सेस मुख्य बीजेपी का सीन हर तरफ दिखाई दे रहा है. वैसे तो इसका असल मैदान ग्वालियर चंबल है. जहां सिंधिया बीजेपी और मुख्य बीजेपी की खींचतान आए दिन सतह पर आ रही है, लेकिन बुंदेलखंड में सिंधिया से सबसे करीबी मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के जिस तरह से एक के बाद एक जमीन के मामले सुर्खियों में आ रहे हैं. जिस तरह से बीजेपी से निष्कासित नेता राजकुमार धनौरा उनके पीछे पड़े हैं. ऐसा लगता है कि चुनाव तक सिंधिया बीजेपी वर्सेस मुख्य बीजेपी के सीन में कई क्लाईमैक्स बाहर आ जाएंगे.
राजनीति का अनसुलझा सवाल: राजनीतिक गलियारो में ये तो सबको दिखाई दे रहा है कि, राजकुमार धनौरा नहा धोकर गोविंद सिंह राजपूत के पीछे पड़े हैं, लेकिन बुंदेलखंड की राजनीति का अनसुलझा सवाल अब ये है कि धनोरा जिस दम से गोविंद सिंह राजपूत के पीछे लगे हैं. उनके पीछे किसकी ताकत है. वैसे इसमें दो राय नहीं कि चुनावी साल में सिंधिया समर्थक मंत्री कांग्रेस को भरपूर मौके दे रहे हैं. सुना तो ये है कि शिवराज सरकार के दो दर्जन से ज्यादा मंत्रियों के कच्चे चिट्ठे निकालने की तैयारी कर रही कांग्रेस को ये आइडिया भी गोविंद सिंह राजपूत का मामला उछलने के बाद ही आया.
तोहफे में अधिकारी ने ली जमीन: मंत्री गोविंद सिंह राजपूत की जमीन मामले का खुलासा होने के बाद एमपी के कई अधिकारियों की भी नींद उड़ गई है. यानि ये तो मान लीजिए कि जमीन में गड़बड़ी का मामला केवल सरकार के मंत्री विधायक तक सीमित नहीं है. एमपी में अधिकारी भी इस मामले में बराबर अपना नाम अग्रिम पंक्ति में बनाए हुए हैं. इनमें से कुछ अधिकारियों ने तो केवल जमीन के मामले में गड़बड़झाला किया है.
अधिकारियों की धड़कन तेज: एक अधिकारी तो ऐसे भी हैं जिन्होंने गोविंद सिंह राजपूत की तरह तोहफे में जमीन भी ली है. चर्चा में अभी ये मामला बेशक ना आया हो, लेकिन कमलनाथ सरकार के दौर में आदिवासी इलाके में रहे ये अधिकारी अभी निर्वाचन कार्यालय में पदस्थ है. अब जब सरकार में मंत्री की जमीन का मामला इतनी तेजी से गरमाया है तो अधिकारियों की धड़कनें बढ़ना भी लाजिमी कि कहीं जांच का दायरा उन तक ना पहुंच जाए. वैसे चुनावी साल में ही तो मंत्रियों से लेकर अफसरों तक सबके कच्चे चिट्ठे खोले जाते हैं.