भोपाल। एमपी में चुनाव के पहले बीजेपी संगठन में बदलाव की किसे लगी है आस, लंदन को तीर्थ बनाने का आइडिया किसने दिया और कहां शुरु हुई ये तलाश. कौन है वो बीजेपी का दबंग कार्यकर्ता, जिसने केन्द्रीय मंत्री से सरेआम कह दिया कि आप बताइए हम आपको क्या रुठे नजर आते हैं. जानेंगे सब कुछ यहां, पढ़िए अंदर की लाएं हैं-
तो क्या चुनाव के पहले फिर होगा बीजेपी में पोखरण: मध्यप्रदेश में जैसे वैस्टर्न डिस्टर्बेंस की वजह से चढ़ते पारे में भी रह रह कर बरसात का माहौल बन रहा है. ऐसे ही मध्यप्रदेश की राजनीति का हाल है, बीजेपी में पिछले एक साल से रह रह कर बदलाव की हवाएँ उठती रही हैं. अब एक बार फिर हवा उठी है कि मई के पहले हफ्ते तक एमपी संगठन में बड़ा बदलाव हो सकता है. चुनाव के एन पहले सेनापति बदले जाने का प्रयोग बीजेपी में पहले भी हो चुका है, जिसे प्रभात झा के समय पोखरण का नाम दिया गया था. लेकिन अब फिर चर्चा है कि संगठन एमपी में बदलाव की बयार ला सकता है. जोरों पर चर्चा ये है कि बीजेपी के एक केन्द्रीय मंत्री को ये जवाबदारी सौंपी जा सकती है, हांलाकि दिल्ली के सूत्र बता रहे हैं कि जिन्हें बीजेपी संगठन की कमान ऑफर की गई वो नेता सुना है कि केन्द्रीय मंत्री का पद इतनी आसानी से छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं. या तो उन्हे दोनों पद दिए जाएं या फिर यथा स्थिति छोड़ दिया जाए. सुना है कि इसी वजह से संगठन में बदलाव का मामला फिलहाल ठंडा पड़ता दिख रहा है.
ये किसका आइडिया था सर जी: इसमें दोराय नहीं कि शिवराज सरकार ने जनता से सीधा जुड़ाव रखने वाली योजनाओ में ऐसे ऐसे आइडिया दिए हैं कि उन्हें दूसरे राज्यों ने भी लागू किया लाड़ली लक्ष्मी योजना उन्ही में से है. अब लाड़ली बहना की धूम है, तीर्थ दर्शन योजना भी बुजुर्गो में सराही गई और शिवराज की सत्ता की हैट्रिक में इन योजनाओँ का भी योगदान रहा. लेकिन इस बार चुनावी साल में एक के बाद एक योजनाओं और घोषणाओं की झड़ी लगा रही शिवराज सरकार में जब दलित वोट बैंक पर निगाह जमाए जो एलान किया गया. सुना है कि उसमें बीजेपी संगठन और सरकार के बीच भी सवाल उमड़ घुमड़ रहा है कि भैय्या ये आइडिया किसका था? असल में बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती पर तीर्थ यात्रा योजना में बाबा साहेब की जन्मस्थली को भी शामिल किया गया, लेकिन उनके जीवन से जुड़े अहम पड़ाव भी इसमें शामिल हुए और फिर लंदन का भी जिक्र आया, जहां रहकर बाबा साहेब ने पढ़ाई की थी. अब लंदन का तीर्थ कराने का जो खर्च आएगा वो तो अपनी जगह, लेकिन भारतवासियों को दास्तां की याद दिलाने वाले लंदन को तीर्थ मानकर जाएगा कौन... ये भी सवाल है.
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भाईसाब आपसे किसने कहा- हम रुठे हैं?: रुठा है तो मना लेंगे, चुनावी साल का ये स्थाई फीचर है. कई बार रुठों की तादात ज्यादा होती है कई बार कम, लेकिन चुनाव के ठीक पहले परंपरागत तरीके से कांग्रेस और बीजेपी में रुठों को मनाने की रवायत निभाई जाती है. इस बार बीजेपी में रुठे बढ़ गए हैं, 2020 के बाद तो समझिए कि पार्टी के भीतर रुठों की बाढ़ आ गई है. खैर मुद्दा ये भी है कि बीजेपी में रुठा ये बताकर अपना पत्ता भी नहीं कटवाना चाहेगा, कि वो नाराज होकर पार्टी से किनारा किए बैठा है. तो मामला ये हुआ कि रुठों को मनाने की टीम में तैनात पार्टी के केन्द्रीय मंत्री पिछले दिनों एक जिले में जब रुठो से बातचीत कर रहे थे, तो एक पूर्व विधायक की नाराजगी सामने आ गई. नाराजगी किस बात को लेकर थी, सुनकर केन्द्रीय मंत्री को भी बगलें झांकने मजबूर होना पड़ा. हुआ यूं कि एक पूर्व विधायक ने भरी सभा में उठकर कुछ इस लहजे में कहा कि "क्या मैं आपको रुठा दिखाई देता हूं?" कहा यही जा रहा है कि रुठों को मनाने की कवायद चल रही है, सुना ये भी है कि उसके बाद बिगड़े पूर्व विधायक को संभालने में मंत्री जी को पसीने आ गए.