भोपाल। एक तरफ बीजेपी प्रदेश भर में रुठों को मनाने में जुटी हुई है. पार्टी से निकाले गए भी दूल्हा बनाकर पार्टी में लाए जा रहे हैं. अभियान की शक्ल में रुठा है तो मना लेंगे की कवायद पार्टी में चल रही है. लेकिन बीजेपी के ही सिरोंज लटेरी विधानसभा क्षेत्र के विधायक उमाकांत शर्मा जब चीख चीख कर अपनी गुहार पार्टी से लगा रहे हैं. वीडियो वायरल करके ये बता रहे हैं कि पार्टी के भीतर के ही लोग उनके रास्ते में कांटे बो रहे हैं. विधायक जी ने राज्य शासन से मिली सुरक्षा भी लौटा दी है. हांलाकि विधायक जी भरोसे की डोर को भी नहीं तोड़ रहे और कह रहे हैं कि आखिरी दम तक उनका विश्वास बीजेपी में ही रहेगा. लेकिन सवाल ये उठ रहा है कि क्या साशय पार्टी की तरफ से उन्हें हाशिए पर डाला जा रहा है. अगर बीजेपी में रुठों को मनाने का अभियान चल रहा है तो रोते विधायक को चुप कराने संगठन हाथ क्यों आगे नहीं बढ़ा रहा.
क्या राजनीति में आ रहे हैं धीरेंद्र शास्त्री: हिंदू राष्ट्र की हुंकार भर रहे धीरेंद्र शास्त्री क्या राजनीति के मैदान में भी दम दिखाने जा रहे हैं. क्या 2024 के आम चुनाव के पहले एमपी का चुनाव धीरेंद्र शास्त्री का होम ग्राउण्ड साबित होंगे. सियासी गलियारों में इस तरह की अटकलें बहुत तेजी से उठ रही हैं कि अब तक नेताओं के यहां भागवत कथा बांचने के साथ दरबार सजा रहे धीरेंद्र शास्त्री. सुना ये है कि 2023 में बीजेपी की सियासी कथा भी बांच सकते हैं. ठीक बीस साल पहले मध्यप्रदेश की राजनीति में एक साध्वी की हुंकार के साथ एमपी में बीजेपी ने जो सत्ता का सफर शुरु किया था. 20 साल बाद अब फिर एक भगवाधारी के सहारे उस रास्ते को मजबूत करने की तैयारी है. धीरेंद्र शास्त्री की लोकप्रियता के साथ उनका सनातन धर्म की हुंकार वो दांव है कि कहा जा रहा है बीजेपी इस दांव का इस्तेमाल समय आने पर कर सकती है. हिंदू राष्ट्र के एजेंडे के साथ कथाएं कर रहे धीरेंद्र शास्त्री की मैहर में होने वाली कथा का रद्द होना भी सियासी मूव ही कहा गया था और माना गया था कि बड़ी खूबी से उन्होने विंध्य में उठने वाली हुंकार को थाम लिया. अब कहा जा रहा है कि बीजेपी धीरेंद्र शास्त्री को मौका लगते ही चौका लगाने चुनाव में उतार सकती है.
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मंत्री पद का दर्जा मिला की नहीं: एमपी में इन दिनों बीजेपी के नेता एक दूसरे से पूछ रहे हैं कि बताओ मंत्री पद का दर्जा मिला की नहीं. चुनाव से पहले संभल कर चल रही बीजेपी में थोक के भाव में मंत्री पद बांटे जा रहे हैं. आलम ये है कि इन मंत्री पद के दर्जे वाले नेताओं की तादात 70 पार पहुंच चुकी है. कैबिनेट में ये आंकड़ा भले तीस पर सिमट गया हो लेकिन असंतुष्टों की संभाल के दांव में निगम मंडलों में प्राधिकरणो में बीजेपी का राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त का अभियान जोर शोर से चल रहा है लेकिन इतने पर भी बीजेपी के भीतर ही भीतर बड़ी खाई खिंच रही है. जिन्हें मंत्री पद का दर्जा मिल भी गया है वो अब इस बात को लेकर असंतुष्ट है कि हमने तो जीवन खपाने के बाद पद पाया और सिंधिया समर्थक बुरी तरह हारने के बाद भी पार्टी में आते ही ये मान सम्मान पा गए. चुनाव में बीजेपी के लिए सबसे मुश्किल इस खाई को पाटना है.