भोपाल। मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा महाविद्यालयों में प्रशासनिक व्यवस्थाओं को दुरूस्त करने के लिए राज्य सरकार अलग कैडर बना चुकी है और अब कॉलेजों में प्रशासनिक मुखिया के तौर पर डिप्टी कलेक्टरों को पदस्थ किए जाने की तैयारी की जा रही है. राज्य सरकार इसके लिए जल्द ही कैबिनेट में प्रस्ताव लाने जा रही है. हालांकि, सरकार के इस फैसले का मेडिकल टीचर्स ने विरोध शुरू कर दिया है. टीचर्स का कहना है कि राज्य सरकार जबरन प्रशासनिक अधिकारियों को हमारे ऊपर बैठाना चाहती है.
यह बदलाव की हो रही तैयारी: दरअसल, प्रदेश में 13 सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं. इन सभी मेडिकल कॉलेजों से संबधित अस्पताल हैं, जिसमें सीनियर डॉक्टर्स के अलावा इन कॉलेजों में पड़ने वाले एमबीबीएस और एमडी स्टूडेंट्स अपनी प्रक्टिस करते हैं. वैसे प्रशासनिक तौर से देखा जाए तो मेडिकल कॉलेजों में डीन और अस्पताल अधीक्षक होते हैं, जिनके पास हॉस्पिटल और कॉलेज से जुड़े तमाम प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार होते हैं. डीन और हॉस्पिटल अधीक्षक सीनियर डॉक्टर्स में से ही राज्य सरकार द्वारा बैठाया जाता है. हालांकि कॉलेज की स्वशासी समिति भी होती है, जिसके अध्यक्ष संभागीय कमिश्नर होते हैं, लेकिन उनका दखल एक सीमा तक ही होता है. अब राज्य सरकार डीन और हॉस्पिटल अधीक्षक के ऊपर प्रशासनिक अधिकारी के रूप में एडीएम या एसडीएम स्तर के एक अधिकारी को बैठाने की तैयारी की जा रही है. राज्य सरकार द्वारा जल्द ही इसको लेकर कैबिनेट में प्रस्ताव लाया जा रहा है. [Medical college administrations will be under ADM]
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डॉक्टर्स इसलिए कर रहे विरोध : राज्य सरकार के इस फैसले की भनक लगते ही मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन विरोध में उतर आई है. प्रशासनिक अधिकारी बैठाए जाने के बाद डीन और हॉस्पिटल अधीक्षक के अधिकारों में कमी आना तय है. एसोसिएशन का कहना है कि तमाम डॉक्टर भी डिप्टी कलेक्टर रैंक के होते हैं. इसी तरह वेतनमान के हिसाब से भी देखा जाए तो उनका पे स्केल डिप्टी कलेक्टर से ज्यादा होता है. एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सुनील अग्रवाल के मुताबिक "वैसे भी अभी संभागायुक्त की निगरानी में हॉस्पिटल का संचालन किया जाता है, ऐसे में एक और प्रशासनिक अधिकारी का बैठना सरकार का गलत निर्णय है, इसका डॉक्टर्स सोमवार से विरोध करेंगे". [MP Medical College]