भोपाल। 1956 में जब मध्यप्रदेश का गठन किया गया था. उस दौरान मध्य प्रदेश में विधान परिषद का गठन होना था. लेकिन अब मध्य प्रदेश की उम्र करीब 64 वर्ष हो चुकी है. लेकिन 1956 में की गई व्यवस्था के तहत मध्य प्रदेश को विधान परिषद नसीब नहीं हो सकी है. देश के कई बड़े- बड़े राज्यों में विधान परिषद की व्यवस्था है. लेकिन मध्यप्रदेश में अभी तक विधान परिषद का गठन नहीं हो पाया है.
'कमलनाथ के वचन पत्र में क्या था ?
कमलनाथ ने अपने वचन पत्र में 2018 विधानसभा चुनाव में वचन दिया था कि वह मध्य प्रदेश में विधान परिषद का गठन करेगी. सरकार में आने के बाद इसकी तैयारियां भी शुरू हो गई. लेकिन सरकार विधान परिषद के गठन को लेकर आगे बढ़ पाती कि उससे पहले ही कमलनाथ सरकार गिर गई. अब गेंद शिवराज सरकार के पाले में है. और शिवराज सरकार के रूख से कतई नजर नहीं आ रहा है कि वह मध्यप्रदेश में विधान परिषद के गठन को लेकर संजीदा हैं.
पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा का आरोप
पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक सज्जन सिंह वर्मा का कहना है कि कांग्रेस को काम करने के लिए कुल साढे़ 11 महीने का समय मिला. कमलनाथ की प्राथमिकता थी कि जो वचन पत्र में जनहित के वादे किए थे, उसे पूरा किया जाए. विधान परिषद का मुद्दा कांग्रेस के एजेंडे में था. लेकिन गठन से पहले ही कांग्रेस की सरकार गिर गई. पूर्व मंत्री ने कहा कि भाजपा, हम पर केंद्री करण का आरोप लगाती है और जब हम विकेंद्री करण करते हैं तो उसे ठंडे बस्ते में डाल देती है, हर इस तरह के काम का विरोध करती है.
प्रोटेम स्पीकर का ये कैसा जवाब
विधान परिषद के गठन को लेकर जब प्रोटेम स्पीकर से बात कई, तो उनका साफ तौर पर कहना था कि, जिन्होंने विधान परिषद के गठन की बात कही थी, आप उन्हीं से जाकर सवाल करें.
इसलिए 'जरूरी है विधान परिषद का गठन'
संविधान के जानकार और वरिष्ठ वकील शांतनु सक्सेना का कहना है कि '1956 में जब मध्यप्रदेश का गठन राज्यों के पुनर्गठन के तहत हुआ. उस समय संशोधन विधेयक के तहत मध्य प्रदेश में विधान परिषद दिए जाने की बात लिखी गई थी. उस संशोधन विधेयक में कहा गया था कि मध्य प्रदेश में विधान परिषद दिया जाएगा. कब दिया जाएगा, यह राष्ट्रपति भविष्य में सूचित करेंगे. मुख्य तौर पर विधान परिषद उन राज्यों के लिए होता है, जो बड़े राज्य होते हैं, मध्य प्रदेश में विधान परिषद के गठन की बात इसीलिए कही गई थी, क्योंकि जब मध्य प्रदेश का गठन हुआ था, तो मध्यप्रदेश बड़ा राज्य था. उसके बाद कई समीकरण बदले. मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ हट गया और हमारा राज्य भी छोटा हो गया'
क्या है विधान परिषद ?
देश के संविधान में राज्यों की भौगोलिक स्थिति जनसंख्या और तमाम पहलुओं को ध्यान रखते हुए राज्य विधानमंडल के उच्च सदन के रूप में विधान परिषद की वैकल्पिक व्यवस्था करने की अनुमति दी गई है. विधान परिषद को एक तरफ सत्ताधारी दल की निरंकुशता और विधानसभा की कार्रवाई पर नियंत्रण के लिए बेहतर माना जाता है. कई बार विधान परिषद का विरोध इसलिए होता है कि इन्हें फिजूलखर्ची भी कहा जाता है. जहां तक विधान परिषद की बात करें, तो विधान परिषद का गठन संसद के उच्च सदन राज्यसभा की तरह ही होता है। विधान परिषद की उपयोगिता की बात करें, तो इसमें उन लोगों को सीधा योगदान का मौका मिलता है, जो प्रत्यक्ष चुनावों से चुने नहीं जाते हैं
विधानपरिषद के गठन की प्रक्रिया
अनुच्छेद 169 के अनुसार राज्यों को विधान परिषद के गठन अथवा विघटन करने का अधिकार है, लेकिन इसके लिए प्रस्तुत विधेयक का विधान सभा में विशेष बहुमत दो तिहाई से पारित होना अनिवार्य है. विधानसभा के सुझावों पर विधान परिषद के निर्माण और विघटन के संदर्भ में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार संसद के पास होता है. संबंधित राज्य की विधानसभा द्वारा पारित किया गया विधेयक यदि संसद के दोनों सदनों में बहुमत से पास हो जाता है. तब इसे ही राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद विधेयक की संवैधानिक मान्यता हो जाती है.
विधान परिषद के सदस्यों का कार्यकाल
जिस तरह राज्यसभा के सदस्यों का 6 वर्ष का कार्यकाल होता है और कुल सदस्यों में से एक तिहाई सदस्य प्रति 2 वर्ष में सेवानिवृत्त हो जाते हैं. इसी तरह विधान परिषद भी स्थाई सदन होता है, और कभी भंग नहीं होता है, और इनका कार्यकाल भी राज्य सभा के सदस्यों की तरह होता है, इसका निर्वाचन भी राज्य सभा के सदस्यों की तरह होता है.