भोपाल/जबलपुर। साल 2003 में कर्मचारियों की नाराज़गी में ही एमपी में सत्ता पलट हुई थी. 20 साल बाद एमपी की राजनीति में फिर वही हालात बन रहे हैं. कर्मचारी 18 साल से सत्ता में बनी हुई बीजेपी सरकार का इम्तेहान लेने की तैयारी में है और चुनावी साल इसका सबसे मुफीद वक्त है. तो साल की शुरुआत में ही एमपीईबी यानि बिजली विभाग के आउट सोर्स, संविदा और नियमित कर्मचारी मिलाकर कोई सत्तर हजार बिजली कर्मचारी बीजेपी सरकार को बड़ा झटका देंगे. वहीं जबलपुर में बिजली विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के बाद अब पेंशनरों ने भी प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. 11 फीसदी महंगाई भत्ते की मांग को लेकर पेंशनरों ने प्रदेश व्यापी आंदोलन करते हुए अपनी आवाज बुलंद की है. ये कर्मचारी एमपी की बत्ती गुल करने की तैयारी में हैं.
6 जनवरी 70 हजार कर्मचारी 3 मांगे: तो ये तय मानिए कि साल की शुरुआत में नया साल मनाने गई शिवराज सरकार की वापसी के बाद पहला इम्तेहान बिजली विभाग लेगा. बिजली विभाग के तकरीबन 70 हजार कर्मचारी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुके होंगे. तैयारी एक साथ पूरे प्रदेश की बिजली व्यवस्था ठप्प करने की है. 52 जिलों से जुटने जा रहे बिजली कर्मचारी पहले ट्रेलर के रुप में अपने-अपने जिले में सर्कल प्रदर्शन करेंगे. उसके बाद भोपाल में 52 जिलों के कर्मचारी एक साथ जुटेंगे और बेमुद्दत हड़ताल की तैयारी है. इनमें सबसे बड़ी तादात में 45 हजार के लगभग आउट सोर्स कर्मचारी हैं. इनके बाद सात हजार संविदा कर्मचारी भी आंदोलन पर होंगे और नियमित 19 हजार कर्मचारी भी अपनी मांगों को लेकर काम बंद रखेंगे.
किन तीन मांगों पर आर पार की लड़ाई: ये पहली बार है कि आउट सोर्स , संविदा और नियमित तीनों ही कर्मचारी एक साथ सरकार के रवैये के खिलाफ सड़क पर उतर गए हैं. लेकिन जाहिर है एक साथ आए तीनों कैटेगरी के कर्मचारियों की मांगे अलग अलग है. 45 हजार यानि सबसे ज्यादा तादात वाले आउट सोर्स कर्मचारी बिजली विभाग में संविलियन की मांग को लेकर स़ड़क पर उतरे हैं. तो सात हजार संविदा कर्मचारियों की डिमांड है कि उनका नियमितीकरण किया जाए. वहीं 19 हजार के करीब नियमित कर्मचारी पुरानी पेंशन स्कीम लागू किए जाने की मांग को लेकर आंदोलन का हिस्सा बने हैं.
बिजली कर्मचारियों के लिए तारीख पर तारीख: 2005 में आउट सोर्स कर्मचारी के रुप में नौकरी में आए मध्यप्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी संगठन के संयोजक राहुल मालवीय बताते हैं कि किस तरह से दलों की सरकारें बदलती रही, लेकिन सिर्फ तारीखें मिली और वादे. मालवीय बताते हैं 2013 से शुरुआत हुई जब बीजेपी सरकार ने अपने वचन पत्र में कहा था कि आउट सोर्स कर्मचारियों का नियमितीकरण किया जाएगा. मालवीय बीजेपी के जनसंकल्प के पन्ने और बिंदू का भी हवाला देते हैं. कहते हैं पृष्ठ क्रमांक 33 के बिंदू चार में ये लिखा गया. लेकिन 2013 से 2023 आ गया हुआ कुछ भी नहीं. इसके बाद 2018 में कांग्रेस के वचन पत्र में भी आउट सोर्स कर्मचारी शामिल थे, लेकिन उन्होंने भी वादा पूरा नहीं किया. 13 अगस्त 2019 को कांग्रेस की सरकार में आश्वासन मिला कि मांग पूरी होगी, लेकिन फिर सरकार ही चली गई. फिर दो साल कोरोना में निकल गए.26 सितम्बर तक उर्जा मंत्री ने मांगे पूरा करने का आश्वासन दिया था. 27 सितम्बर तक इंतजार कर हमने काम बंद हड़ताल की. फिर उसके बाद बिजली कंपनियों में एस्मा लगा दिया . बातचीत पत्र व्यवहार किसी तरह से सरकार सुनने को तैयार नहीं. तो 18 दिसम्बर को एक दिन का धरना प्रदर्शन किया, उसके बाद अब 6 जनवरी से आर पार की लड़ाई.
बिजली कर्मचारी हड़ताल का असर कितना: एक साथ बिजली के आउटसोर्स, नियमित और संविदा कर्मचारी जब हड़ताल पर होंगे तो उसका असर क्या होगा. तो मुमकिन है कि एमपी में बिजली सेवाएं पूरी तरह से ठप हो जाएं. शुरुआत जनरेशन विंग से होगी. ट्रांसमिशन करने वाले कर्मचारियों की हड़ताल की वजह से बिजली पहुंच नहीं पाएगी. इसके अलावा तीन विद्युत वितरण कंपनियों मध्य पूर्व और पश्चिम इनके सब स्टेशन ऑपरेटर हैल्पर, मीटर रीडर और कम्प्यूटर ऑपरेटर काम बंद हड़ताल पर होंगे तो ना बिजली सप्लाई होगी ना मीटर रीडिंग. खास असर स्कूल कॉलेज, अस्पताल और फैक्ट्रियों पर पड़ेगा.
जबलपुर में पेंशनरों का हंगामा: वहीं जबलपुर में पेंशनरों का साफ तौर पर कहना है कि देश में 38 फीसदी डीए राहत दी जा रही है, लेकिन उनके हिस्से में महज 22 फीसदी ही आ रहा है. पेंशनरों ने ऐलान किया है कि अगर उनकी मांगों पर जल्द गौर नहीं किया गया तो जनवरी से ऊर्जा मंत्री का सिलसिलेवार घेराव किया जाएगा और उनसे जवाब मांगा जाएगा, गुस्साए पेंशनरों ने बिजली मुख्यालय शक्ति भवन के सामने धरना देकर प्रदर्शन किया और अपनी मांगों के संबंध में नारेबाजी करते हुए सरकार पर फिजूलखर्ची का भी आरोप लगाया.