भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव करीब आते ही सामाजिक संगठनों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागने लगी है, सामाजिक संगठनों ने राजनीतिक हिस्सेदारी के लिए सियासी दलों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है. अलग-अलग जातीय संगठन राजधानी में लाखों की भीड़ जुटाकर टिकट देने के लिए सियासी दलों पर दबाव बना रहे है, इसके अलावा वोटों की चाह में नेता भी इन संगठनों के मंच पर मौजूदगी दर्ज कराने से नहीं चूक रहे. राजधानी भोपाल में दर्जनभर से ज्यादा जातीय संगठनों ने पिछले कुछ दिनों में हुंकार भरी है.
मध्यप्रदेश में सियासी दलों पर हावी सोशल पॉलिटिक्सः साल 2023 की शुरूआत से अब तक दर्जनभर से ज्यादा सामाजिक और जातीय संगठन राजधानी भोपाल में शक्तिप्रदर्शन कर हुंकार भर चुके हैं. सबसे पहले 7 जनवरी को भोपाल के जंबूरी मैदान में करणी सेना का तीन दिवसीय आंदोलन किया था. फिर 10 फरवरी को आदिवासी सुरक्षा मंच ने भोपाल में 80 हजार आदिवासियों के साथ डी-लिस्टिंग रैली निकाली थी. वहीं भोपाल के गोविंदपुरा दशहरा मैदान में 11 फरवरी को भीम आर्मी और पिछड़ा वर्ग की अधिकार रैली निकाली जाएगी, इसमें प्रदेशभर से 10 हजार आदिवासी दलित शामिल होंगे.
प्रमोशन में आरक्षण और जातीय जनगणना की मांगः 31 मार्च को आरएसएस के बैनर तले सिंधु महासभा का महासम्मेलन हुआ था, इस महासम्मेलन में दुनियभर के 70 देशों से सिंधी समाज के लोग जुटे थे. इस दौरान लोगों ने राजनीतिक संरक्षण और अधिकारों की मांग की थी. इसके अलावा हाल ही 2 अप्रैल को भोपाल में सिंधु और साहू तैलिक समाज भी भोपाल में बड़ा जमावड़ा कर अपनी शक्ति दिखा चुके हैं. अब 15 अप्रैल को कांग्रेस के बैनर तले यादव समाज भी सरपंच से लेकर विधायकों तक अपने तमाम जनप्रतिनिधियों का सम्मेलन करने की तैयारी में है. सभी जातियों प्रदेश में अपनी आबादी के अनुपात में राजनीतिक हिस्सेदारी की मांग कर रही हैं.
सत्ता पाने की अहम सीढ़ी है जाति: चुनावी राजनीति में जाति, सत्ता पाने की अहम सीढ़ी है. माना जाता है कि ज्यादातर समाज एक मुश्त वोट करता है. यही वजह है कि जातीय और सामाजिक संगठनों पर नेताओं और दलों की अहम नजर होती है. इसी के तहत समाज के कार्यक्रमों में सीएम शिवराज से लेकर कमलनाथ तक दोनों की दलों के नेता बढ़कर हिस्सा लेते और वादे करते नजर आ रहे हैं. जातिगत राजनीति सियासी दलों की मजबूरी कहें या चुनावी हथकंडा, लेकिन इतिहास गवाह है कि अब तक के चुनावों में इन जाति और समाजों ने ही राजनीतिक दलों और नेताओं को सर्वोच्चय सत्ता तक पहुंचाया है.