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MP Azab Gazab: रिश्वत की शिकायत करना पड़ा महंगा! लोकायुक्त के पास शिकायतकर्ताओं के 13 साल में फंसे 4.50 करोड़

मध्यप्रदेश वाकई में अजब है और गजब भी. प्रदेश में रिश्वतखोरों के खिलाफ शिकायत करने वाले मुसीबत में हैं. क्योंकि शिकायत करने के लिए इन्हें रिश्वत के लिए रुपयों का इंतजाम भी करना पड़ा. लेकिन इस बारे में कोई नियम नहीं होने के कारण इनकी राशि लोकायुक्त पुलिस के पास फंसकर रह गई है. प्रदेश में ऐसे करीब 4.50 करोड़ रुपए शिकायतकर्ताओं के फंसे हुए हैं.

MP Lokayukta
लोकायुक्त के पास शिकायतकर्ताओं के 13 साल में फंसे 4.50 करोड़
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Published : Jun 12, 2023, 7:13 PM IST

भोपाल। देश के नामी संस्थान मैनिट की वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट की एक्सपर्ट कमेटी के एक प्रोफेसर आलोक मित्तल और एक कंसलटेंट गोपी कृष्ण एनओसी जारी करने के बदले रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़े गए. इन्होंने एक्सपर्ट कमेटी की एनओसी जारी करने के बदले 7 लाख रुपए की रिश्वत मांगी थी. इनकी शिकायत प्रमिला रिछारिया ने की. इसके बाद लोकायुक्त पुलिस ने डेढ़ लाख रुपये की रिश्वत लेते वक्त इन दोनों को रंगे हाथों पकड़ा. रिश्वत देने के लिए जो राशि उपयोग की गई थी, वह शिकायतकर्ता ने दी थी. यह मामला इसी साल जनवरी 2023 का है. इसके बाद आरोपी तो पकड़े गए, लेकिन शिकायतकर्ता के डेढ़ लाख रुपए उलझकर रह गए. अब जब तक इस मामले में चालान पेश नहीं हो जाता और कोई कार्रवाई नहीं होती, तब तक उनकी राशि अटकी रहेगी.

शासन को प्रस्ताव भेजने की दुहाई : ऐसा केवल इसी मामले में नहीं, बल्कि उन सभी मामलों में होता है, जिनमें रिश्वतखोर को रंगे हाथों पकड़ा जाता है. ऐसे बीते 13 साल से करीब 4.50 करोड़ रुपए प्रदेश के शिकायतकर्ताओं के अटके हैं. इस मामले में लोकायुक्त पुलिस के एडीजी योगेश चौधरी का कहना है कि इस मामले में हम शासन को प्रस्ताव भेज रहे हैं, ताकि शिकायतकर्ताओं को उनकी राशि वापस मिल सके. बता दें कि लोकायुक्त संगठन सामान्य प्रशासन विभाग के अंतर्गत आता है. इसमें पुलिस की जो टीम रिश्वतखोरों को पकड़ने के लिए काम करती है, उन्हें ऑपरेशन के दौरान इस्तेमाल करने के लिए अलग से विभाग की तरफ से राशि नहीं दी जाती है. ऐसे में जब कोई शिकायतकर्ता जाता है तो उसे ही राशि देनी पड़ती है. यही कारण है कि पुलिस बहुत बड़े रिश्वतखोर को पकड़ने की बजाय छोटे भ्रष्ट अफसरों को ही ट्रैप कर पाती है. इन पर 200 रुपए से अधिकतम 10 हजार रुपए ही खर्च कर पाती है.

लोकायुक्त के पास अलग से बजट नहीं : प्रदेश में आम आदमी की रकम से लोकायुक्त पुलिस ट्रैप की कार्रवाई करती है, जबकि सीबीआई और दूसरे राज्यों की एजेंसीज के पास इसके लिए अलग से बजट होता है. लोकायुक्त संगठन के पास ट्रैप के लिए फंड नहीं होने के कारण बड़े रिश्वतखोर बच निकल जाते हैं, शिकायतकर्ता ट्रैप के केस में बड़ी राशि देने में हिचकते हैं. बजट नहीं होने के कारण रीवा और उज्जैन जोन में कुल मामलों में से 65 फीसदी मामले ऐसे हैं, जिनमें 200 से 2000 रुपए तक ही राशि इस्तेमाल की गई है. जबकि 25% मामलों में 2 से 10 हजार रुपए इस्तेमाल किए गए. केवल 10 फीसदी मामलों में ही 10 हजार रुपए से अधिक की राशि इस्तेमाल हुई है. इसके बाद भी मध्यप्रदेश लोकायुक्त पुलिस कार्रवाई करने के मामले में देश के टॉप 5 राज्यों में है.

सबसे बड़ा प्रमाण रिश्वत की राशि : किसी भी रिश्वतखोर को पकड़ने के लिए दी जाने वाली राशि ही सबसे बड़ा प्रमाण होती है. रिश्वत देने के लिए इस्तेमाल होने वाले रुपयों पर केमिकल लगाकर शिकायतकर्ता को दिया जाता है. यही रकम वह आरोपी को देता है. इस राशि को हाथ में लेते ही आरोपी के हाथ में केमिकल लग जाता है. नोट पर लगे केमिकल और आरोपी के हाथ से मिले केमिकल को मैच किया जाता है. किसी भी ट्रैप केस में ये रकम पुलिस के लिए अहम सबूत होती है, लेकिन अब जबकि राशि नहीं मिल रही है तो शिकायत करने वालों की संख्या कम होती जा रही है.

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कम राशि वालों ने उम्मीद ही छोड़ दी : एक जनवरी 2023 को रायसेन जिले में भोपाल लोकायुक्त पुलिस ने वन रक्षक सुरेश व्यास को 2 हजार रुपए की रिश्वत लेते पकड़ा. यह शिकायत तरुण शर्मा ने की थी. इन्हें फर्नीचर की दुकान का लाइसेंस बनवाना था. चूंकि राशि छोटी है तो तरुण शर्मा ने यह मांगना ही छोड़ दी. मार्च 2023 को भोपाल के तहसील कार्यालय कोलार के रतनपुर वृत्त में पदस्थ नायब तहसीलदार शिवांगी खरे के बाबू लक्ष्मी नारायण मिश्रा और बैरागढ़ चीचली सर्कल के नायब तहसीलदार आदित्य झंगाले के बाबू सौदान सिंह को अलग-अलग शिकायतों में रिश्वत लेते हुए लोकायुक्त पुलिस ने एक ही कार्यालय में रंगे हाथ पकड़ा था. इस मामले में शिकायतकर्ता सचिन सेन थे, जिन्होंने लोकायुक्त एसपी कार्यालय में शिकायत की थी कि उनके परिचित कोलार निवासी ओमप्रकाश एवं बबलू का नामांतरण का प्रकरण छह माह से नायब तहसीलदार की कोर्ट में पेंडिंग है. इस केस को निपटाने के लिए नायब तहसीलदार के ऑफिस में पदस्थ बाबू लक्ष्मीनारायण मिश्रा नायब एक फाइल के बदले 50 हजार रुपये की रिश्वत मांग रहा है. इस मामले में रिश्वत देने के लिए शिकायकर्ता ने 12 हजार रुपए दिए थे.

भोपाल। देश के नामी संस्थान मैनिट की वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट की एक्सपर्ट कमेटी के एक प्रोफेसर आलोक मित्तल और एक कंसलटेंट गोपी कृष्ण एनओसी जारी करने के बदले रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़े गए. इन्होंने एक्सपर्ट कमेटी की एनओसी जारी करने के बदले 7 लाख रुपए की रिश्वत मांगी थी. इनकी शिकायत प्रमिला रिछारिया ने की. इसके बाद लोकायुक्त पुलिस ने डेढ़ लाख रुपये की रिश्वत लेते वक्त इन दोनों को रंगे हाथों पकड़ा. रिश्वत देने के लिए जो राशि उपयोग की गई थी, वह शिकायतकर्ता ने दी थी. यह मामला इसी साल जनवरी 2023 का है. इसके बाद आरोपी तो पकड़े गए, लेकिन शिकायतकर्ता के डेढ़ लाख रुपए उलझकर रह गए. अब जब तक इस मामले में चालान पेश नहीं हो जाता और कोई कार्रवाई नहीं होती, तब तक उनकी राशि अटकी रहेगी.

शासन को प्रस्ताव भेजने की दुहाई : ऐसा केवल इसी मामले में नहीं, बल्कि उन सभी मामलों में होता है, जिनमें रिश्वतखोर को रंगे हाथों पकड़ा जाता है. ऐसे बीते 13 साल से करीब 4.50 करोड़ रुपए प्रदेश के शिकायतकर्ताओं के अटके हैं. इस मामले में लोकायुक्त पुलिस के एडीजी योगेश चौधरी का कहना है कि इस मामले में हम शासन को प्रस्ताव भेज रहे हैं, ताकि शिकायतकर्ताओं को उनकी राशि वापस मिल सके. बता दें कि लोकायुक्त संगठन सामान्य प्रशासन विभाग के अंतर्गत आता है. इसमें पुलिस की जो टीम रिश्वतखोरों को पकड़ने के लिए काम करती है, उन्हें ऑपरेशन के दौरान इस्तेमाल करने के लिए अलग से विभाग की तरफ से राशि नहीं दी जाती है. ऐसे में जब कोई शिकायतकर्ता जाता है तो उसे ही राशि देनी पड़ती है. यही कारण है कि पुलिस बहुत बड़े रिश्वतखोर को पकड़ने की बजाय छोटे भ्रष्ट अफसरों को ही ट्रैप कर पाती है. इन पर 200 रुपए से अधिकतम 10 हजार रुपए ही खर्च कर पाती है.

लोकायुक्त के पास अलग से बजट नहीं : प्रदेश में आम आदमी की रकम से लोकायुक्त पुलिस ट्रैप की कार्रवाई करती है, जबकि सीबीआई और दूसरे राज्यों की एजेंसीज के पास इसके लिए अलग से बजट होता है. लोकायुक्त संगठन के पास ट्रैप के लिए फंड नहीं होने के कारण बड़े रिश्वतखोर बच निकल जाते हैं, शिकायतकर्ता ट्रैप के केस में बड़ी राशि देने में हिचकते हैं. बजट नहीं होने के कारण रीवा और उज्जैन जोन में कुल मामलों में से 65 फीसदी मामले ऐसे हैं, जिनमें 200 से 2000 रुपए तक ही राशि इस्तेमाल की गई है. जबकि 25% मामलों में 2 से 10 हजार रुपए इस्तेमाल किए गए. केवल 10 फीसदी मामलों में ही 10 हजार रुपए से अधिक की राशि इस्तेमाल हुई है. इसके बाद भी मध्यप्रदेश लोकायुक्त पुलिस कार्रवाई करने के मामले में देश के टॉप 5 राज्यों में है.

सबसे बड़ा प्रमाण रिश्वत की राशि : किसी भी रिश्वतखोर को पकड़ने के लिए दी जाने वाली राशि ही सबसे बड़ा प्रमाण होती है. रिश्वत देने के लिए इस्तेमाल होने वाले रुपयों पर केमिकल लगाकर शिकायतकर्ता को दिया जाता है. यही रकम वह आरोपी को देता है. इस राशि को हाथ में लेते ही आरोपी के हाथ में केमिकल लग जाता है. नोट पर लगे केमिकल और आरोपी के हाथ से मिले केमिकल को मैच किया जाता है. किसी भी ट्रैप केस में ये रकम पुलिस के लिए अहम सबूत होती है, लेकिन अब जबकि राशि नहीं मिल रही है तो शिकायत करने वालों की संख्या कम होती जा रही है.

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कम राशि वालों ने उम्मीद ही छोड़ दी : एक जनवरी 2023 को रायसेन जिले में भोपाल लोकायुक्त पुलिस ने वन रक्षक सुरेश व्यास को 2 हजार रुपए की रिश्वत लेते पकड़ा. यह शिकायत तरुण शर्मा ने की थी. इन्हें फर्नीचर की दुकान का लाइसेंस बनवाना था. चूंकि राशि छोटी है तो तरुण शर्मा ने यह मांगना ही छोड़ दी. मार्च 2023 को भोपाल के तहसील कार्यालय कोलार के रतनपुर वृत्त में पदस्थ नायब तहसीलदार शिवांगी खरे के बाबू लक्ष्मी नारायण मिश्रा और बैरागढ़ चीचली सर्कल के नायब तहसीलदार आदित्य झंगाले के बाबू सौदान सिंह को अलग-अलग शिकायतों में रिश्वत लेते हुए लोकायुक्त पुलिस ने एक ही कार्यालय में रंगे हाथ पकड़ा था. इस मामले में शिकायतकर्ता सचिन सेन थे, जिन्होंने लोकायुक्त एसपी कार्यालय में शिकायत की थी कि उनके परिचित कोलार निवासी ओमप्रकाश एवं बबलू का नामांतरण का प्रकरण छह माह से नायब तहसीलदार की कोर्ट में पेंडिंग है. इस केस को निपटाने के लिए नायब तहसीलदार के ऑफिस में पदस्थ बाबू लक्ष्मीनारायण मिश्रा नायब एक फाइल के बदले 50 हजार रुपये की रिश्वत मांग रहा है. इस मामले में रिश्वत देने के लिए शिकायकर्ता ने 12 हजार रुपए दिए थे.

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