भोपाल। क्या 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी एक के बाद एक अपनी ही परिपाटी तोड़ेगी. 39 उम्मीदवारों की जिस समय पार्टी मुख्यालय में ट्रेनिंग चल रही है. उस समय पार्टी के कुछ कद्दावर विधायकों के फोन की घंटी इस बधाई के साथ घनघना रही है कि चुनाव के डेढ़ महीने पहले ही सही उनके सब्र का फल आने ही वाला है, लेकिन सवाल ये है कि चुनाव के मुहाने पर कैबिनेट विस्तार का फैसला क्या पार्टी का मास्टर स्ट्रोक कहलाएगा. या आखिरी समय में रुठों को मनाने की ये कवायद पार्टी का भूल सुधार है.
डेढ़ महीने पहले कैबिनेट विस्तार...! रणनीति क्या है: हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी... का मामला है, लेकिन बीजेपी के लिए तो क्या ये जब जागो तभी सवेरा का मामला माना जाए. जिस तेजी से एमपी में अचानक मंत्रिमण्डल विस्तार की अटकलें दौडी. राज्यपाल से सीएम शिवराज की मुलाकात के बाद इन अटकलों को जमीन भी मिल गई. वीडी शर्मा ने भी इशारों में ही सही संकेत दे दिया. बाकी उन विधायकों का तो कहना ही क्या, जिन्हें आश्वस्ति का फोन भले ना आया हो लेकिन बधाईयां आनी शुरु हो गई है. सवाल ये है कि तीन महीने पहले उम्मीदवारों का ऐलान कर देने वाली पार्टी चुनाव से डेढ़ महीने पहले मंत्रिमण्डल विस्तार करने जा रही है. क्या रुठों को साध लेने की ये रणनीति कारगर होगी. कुल डेढ़ महीने के लिए मंत्री बनकर विधायक संतुष्ट हो जाएंगे और सबसे बड़ी बात चालीस दिन के छोटे से अंतराल में वो क्या कर पाएंगे. हालांकि गौरीशंकर बिसेन ने अभी कैबिनेट विस्तार की अटकलों को अमल में आने के पहले ही पूरे दम से ईटीवी भारत से कहा कि चालीस दिन कम नहीं होते.
कैबिनेट विस्तार और चीन्ह-चीन्ह के नाम हैं: कैबिनेट विस्तार की अटकलों में जो नाम शामिल किए जा सकते हैं. वो ऐसे चुनिंदा नाम है, जिनका होना क्षेत्रवार और जाति वर्ग विशेष को साधने का दांव कहा जा सकता है. राजेन्द्र शुक्ल के साथ ब्राह्मण बाहुल्य वाले विंध्य को साधने की कवायद होगी. उधर गौरीशंकर बिसेन के साथ महाकौशल और पिछड़ा वर्ग में भी पकड़. बिसेन अभी पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हैं और सितंबर में उनका कार्यकाल खत्म हो रहा है. उधर मजबूत लोधी वोंट बैंक के तौर पर राहुल लोधी का नाम भी हवाओं में है.
क्या दिग्गजों की नाराजगी असर दिखाएगी: महाकौशल से बीजेपी के मुखर नेता अजय विश्नोई लंबे समय से मंत्री पद की चाह में बेबाक बयानी करते रहे हैं. वे खुलकर ये तक कह चुके हैं, पार्टी के नाराज नेताओं की अनदेखी कहीं बीजेपी को चुनाव में भारी ना पड़ जाए. माना यही जा रहा है कि चुनाव के डेढ़ महीने पहले कैबिनेट विस्तार की अटकलें उसी साज संभाल का उपक्रम हो सकती है. खास फोकस उन राजेन्द्र शुक्ल जैसे कद्दावर नेताओं पर जिनका रूठना पूरे एक इलाके में बीजेपी पर असर डाल सकता है. कहा ये भी जा रहा है कि ये शिकायतें भूपेन्द्र यादव के कानों तक भी पहुंची थी.
प्रदेश का बंटाधार और कितना करेंगे: कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा का कहना है कि ये अचानक उठी कैबिनेट विस्तार की अटकलें ना बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक ना ये भूल सुधार है. असल में अलीबाबा और उनके चालीस...? जब प्रदेश का बंटाधार कर चुके हैं. तब सोचिए कि तीन और जुड़कर अगर 43 हो जाएंगे तो क्या कर लेंगे. कमलनाथ की ताजपोशी सुनिश्चित है.