भोपाल। कोरोना संक्रमण के बीच प्रदेश की विधानसभा सीटों 28 पर होने जा रहे उपचुनाव को लेकर हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच के एक फैसले ने पक्ष-विपक्ष दोनों की टेंशन बढ़ा दी थी. हाईकोर्ट ने ग्वालियर-चंबल संभाग सहित 9 जिलों में चुनावी रैलियों और सभाओं पर रोक लगा दी थी. यानी कोई भी प्रत्याशी फिजिकल रैलियां या सभाएं नहीं कर सकता था.वो सिर्फ वर्चुअल रैली कर सकता था. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर स्टे दे दिया, लेकिन नेताओं को जमकर फटकारा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोरोना प्रोटोकॉल का सही से पालन किया जाता, तो हाईकोर्ट को दखल देन की जरूरत क्या पड़ती ?
चुनाव आयोग पर छोड़ा फैसला
चुनावी रैलियों में कोरोन प्रोटोकॉल का पालन कराने की जिम्मेदारी अब चुनाव आयोग पर छोड़ दी गई है. सुप्रीम कोर्ट 6 हफ्ते बाद इस मामले की फिर से सुनवाई करेगा.28 सीटों पर 3 नवंबर को वोटिंग है. एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने 21 अक्टूबर को 9 जिलों-ग्वालियर, गुना, मुरैना, भिंड, अशोक नगर, दतिया, शिवपुरी, श्योपुर और विदिशा में फिजिकल रैलियों पर रोक लगा दी थी. हाईकोर्ट ने कहा था डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को निर्देश दिए थे कि जहां वर्चुअल रैलियां हो सकती हैं, वहां फिजिकल रैलियों की अनुमति नहीं दी जाए.
बीजेपी नेता और चुनाव आयोग ने लगाई थी पिटीशन
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ बीजेपी नेता प्रद्युम्न सिंह तोमर और चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर की थी. हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि नेताओं को अगर प्रचार का हक है, तो लोगों को भी जीने का हक है. अगर कलेक्टर को रैलियों की अनुमति देनी है, तो वे प्रत्याशी से इतना पैसा जमा कराएं, जिससे लोगों के लिए मास्क और सैनिटाइजर खरीदे जा सकें.
सीएम शिवराज ने भी जताई थी आपत्ति
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच की रैलियों के संबंध में दिए गए आदेश के खिलाफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी कहा था कि वे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे. शिवराज ने कहा था कि बिहार में रोजाना रैलियां हो रही हैं. एक देश में इस तरह के विरोधाभासी कानून नहीं हो सकते हैं.