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ग्वालियर चंबल में क्या बसपा रहेगी वोट 'कटवा' या त्रिकोणीय ट्रायंगल करेगा मंगल !

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Published : Oct 30, 2020, 7:54 PM IST

आमतौर पर उपचुनाव से दूर रहने वाली बसपा इस बार मध्य प्रदेश में होने वाले 28 विधानसभा उपचुनाव में किस्मत आजमा रही है. उपचुनाव में बसपा की उपस्थिति से दोनों ही दल कांग्रेस-बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें देखी जा रही हैं. क्योंकि ग्वालियर चंबल संभाग की 16 सीटों में से 5 सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय है. पढ़िए पूरी खबर...

BSP may spoil the Congress-BJP mathematics
बीएसपी बिगाड़ सकती है कांग्रेस-बीजेपी का गणित

भोपाल। मध्यप्रदेश की 28 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में 16 सीटें ग्वालियर चंबल की हैं. उपचुनाव में मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस में है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में बहुजन समाज पार्टी भी अपना दमखम दिखा रही है. ग्वालियर-चंबल की पांच सीटों पर बीएसपी मजबूत स्थिति में मानी जा रही है. इसे देखते हुए ग्वालियर-संभाग इलाके में चुनावी लड़ाई त्रिकोणीय होती दिख रही है जिसमें एक तरफ बीजेपी तो दूसरी तरफ कांग्रेस है और बीएसपी इन दोनों दलों का समीकरण बिगाड़ने की तैयारी में है. ग्वालियर चंबल इलाके की जौरा, मेहगांव, भांडेर, अंबाह और मुरैना में मुकाबला फंसा हुआ नजर आ रहा है.

बीएसपी बिगाड़ सकती है कांग्रेस-बीजेपी का गणित

बीएसपी का दबदबा

चंबल का क्षेत्र तीनों पार्टियों के लिए इसलिए भी खास हो गया है. क्योंकि पूरे मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा उपचुनाव की सीटें यहीं से हैं. दूसरी खास बात यह है कि चंबल की 16 सीटों में 11 सीटें ऐसी हैं जहां बीएसपी के उम्मीदवार कभी न कभी जीत दर्ज कर चुके हैं. इस लिहाज से बीएसपी की तैयारी पहले की तरह पुख्ता मानी जा रही है और वह बीजेपी-कांग्रेस को टक्कर देने की स्थिति में दिख रही है. दूसरा यहां भारी संख्या में अनुसूचित जाति के वोटर और इलाका यूपी से सटा है. इसलिए बीएसपी का यहां दबदबा माना जाता है. यही कारण है कि यहां से पार्टी प्रमुख मायावती ने अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. लिहाजा बीजेपी या कांग्रेस के लिए यहां बसपा वोट कटवा का काम करेगी. दूसरी तरफ कई बागी निर्दलीय मैदान में उतर गए हैं, वह भी कुछ ऐसी निर्णायक वोट हासिल कर सकते हैं. जो कांग्रेस और बीजेपी का खेल बिगाड़ सकते हैं. इन्हीं कारणों से करीब पांच सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष के आसार नजर आ रहे हैं, जो अप्रत्याशित परिणाम दे सकते हैं.

BSP chief Mayawati
बसपा प्रमुख मायावती

मजबूत स्थिति में बीजेपी

पहले की तुलना में बीजेपी यहां ज्यादा मजबूत स्थिति में है. क्योंकि यह इलाका ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ माना जाता है. सिंधिया पहले कांग्रेस में थे लेकिन अब बीजेपी का दामन थाम चुके हैं. इस लिहाज से बीजेपी भी यहां मजबूत स्थिति में दिख रही है. इन सबके बावजूद बीजेपी की जीत को एकतरफा नहीं कह सकते. क्योंकि बीएसपी टक्कर देने के लिए मैदान में उतरी है. लेकिन बीजेपी के लिए एक प्लस प्वॉइंट ये जरूर है कि जिन बागी विधायकों ने बीजेपी का दामन थामा है उनमें ज्यादातर विधायक चंबल इलाके से ही हैं.

BJP office
बीजेपी कार्यालय

ये भी पढ़ें: कंस-शकुनि-मारीच से भी बढ़कर हैं कलयुग के मामा शिवराज- आचार्य प्रमोद कृष्णम

जौरा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला

कांग्रेस के विधायक बनवारी लाल शर्मा के निधन के कारण खाली हुई सीट पर जहां बीजेपी ने पूर्व विधायक सूबेदार सिंह को मैदान में उतारा है, तो कांग्रेस ने नए चेहरे पंकज उपाध्याय को टिकट देकर ब्राह्मण बाहुल्य सीट का समीकरण अपने पक्ष में करने की कोशिश की है, लेकिन पूर्व विधायक सोने राम कुशवाहा के बसपा से उतरने के कारण यहां त्रिकोणीय मुकाबला बना गया है.

भांडेर सीट पर भी त्रिकोणीय मुकाबला

इस सीट पर कभी बहुजन समाज पार्टी का हिस्सा रहे बहुजन संघर्ष दल के संस्थापक फूल सिंह बरैया कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं. इसी बात से नाराज होकर कांग्रेस के पूर्व मंत्री महेंद्र बौद्ध बसपा से टिकट लेकर चुनाव मैदान में कूद पड़े हैं. भाजपा से रक्षा सनोरिया चुनाव मैदान में हैं. दल बदल के कारण भाजपा के प्रत्याशी से मतदाताओं की नाराजगी है, तो ब्राह्मण मतदाता फूल सिंह बरैया के विरोध में नजर आ रहे हैं, लेकिन पूर्व गृह मंत्री महेंद्र बौद्ध बसपा के टिकट पर लड़कर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में कामयाब रहे हैं.

मुरैना में राजोरिया ने बिगाड़ा कांग्रेस और बीजेपी का गणित

मुरैना सीट से मिल रहे अनुमानों पर गौर करें तो बसपा के प्रत्याशी रामप्रकाश राजोरिया काफी मजबूत स्थिति में नजर आ रहे हैं. चर्चा तो यहां तक है कि अगर रामप्रकाश राजोरिया को ब्राह्मण मतदाताओं का साथ मिल गया. तो वो जीत के दावेदार हो सकते हैं. इस सीट से कांग्रेस के राकेश मावई और भाजपा के रघुराज कंसाना चुनाव लड़ रहे हैं. खास बात यह है कि भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी दोनों गुर्जर होने के कारण गुर्जर मतदाताओं की वोट बंटती हुई नजर आ रही है.

मेहगांव में जातिगत समीकरणों में उलझा चुनाव

कांग्रेस में टिकट को लेकर मचे घमासान के बाद यहां अटेर के पूर्व विधायक हेमंत कटारे को कांग्रेस ने चुनाव मैदान में उतारा है. ऐसी स्थिति में हेमंत कटारे को अपनी ही पार्टी से नुकसान की आशंका सता रही है, तो दूसरी तरफ बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे योगेश नरवरिया ने मुकाबले को रोचक बना दिया है और वह बीजेपी और कांग्रेस दोनों की वोट काटते हुए नजर आ रहे हैं. इस सीट पर भाजपा के टिकट पर सिंधिया समर्थक मंत्री ओपीएस भदौरिया चुनाव लड़ रहे हैं और तीनों प्रत्याशी त्रिकोणीय संघर्ष में अपनी जीत की उम्मीद लगा रहे हैं.

अंबाह सीट पर चतुष्कोणीय मुकाबला

अंबाह सीट में मुकाबला चतुष्कोणीय होता हुआ नजर आ रहा है. भाजपा से कांग्रेस के बागी कमलेश जाटव मैदान में हैं, तो कांग्रेस ने बसपा से पूर्व विधायक रहे सत्य प्रकाश सखवार को मैदान में उतारा है. वहीं बीएसपी से भानु प्रताप सिंह सखवार मुकाबले को रोचक बनाने की कोशिश में नजर आ रहे हैं, लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी अभिनव छारी ने इस मुकाबले को चतुष्कोणीय बनाकर सबको सोचने में मजबूर कर दिया है. तमाम जातिगत समीकरण उलझे हुए नजर आ रहे हैं. ऐसे में अप्रत्याशित परिणाम की संभावना नजर आ रही है.

ये भी पढ़ें: क्या कमलनाथ हैं मध्यप्रदेश की सियासत के 'मैनेजमेंट गुरु' ! मतदान से ठीक पहले वाहवाही शुरु

पहले भी बनी त्रिकोणीय स्थिति,लेकिन जीती कांग्रेस

इस बीच मध्यप्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि 2018 के चुनाव और उसके पहले भी ग्वालियर चंबल क्षेत्र में त्रिकोणीय संघर्ष होता रहा है और उसके बाद भी कांग्रेस जीतती रही है. इस बार वोट काटने के लिए भले ही नए तरीके के प्रयत्न किए जा रहे हो, लेकिन चतुष्कोण संघर्ष भी होता रहा है, इसके बावजूद भी हमने 26 सीटें जीती थी, तो इससे कांग्रेस के अवसरों पर कोई भी फर्क नहीं पड़ता है. कांग्रेस का निश्चित वोट बैंक है, वह वोट कांग्रेस को मिलेगी और ग्वालियर चंबल में हम सभी 16 सीटें जीतेंगे.

बीजेपी का मतदाता प्रतिबद्ध, विपक्षी वोटों का होगा बंटवारा

वहीं बीजेपी के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल का कहना है कि कई स्थानों पर बीएसपी कांग्रेस पार्टी को धकेल कर दूसरे नंबर पर पहुंचा रही है. स्पष्ट रूप से दिख रहा है और राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकारों का यही मत उभरकर सामने आ रहा है. रही बात निर्दलीय की, तो कोई निर्दलीय भले ही जीतने की स्थिति में नहीं है, लेकिन विपक्ष की वोटों का बंटवारा तो करता ही है. क्योंकि बीजेपी का वैचारिक प्रतिबद्ध वोटर एकमुश्त रहता है. सरकार के पक्ष वाला वोट साथ में जाता है, क्योंकि हम सरकार में हैं, तो दो अलग-अलग प्रत्याशी लड़ रहे हैं. वह विपक्ष की वोट का बंटवारा करेंगे.

मुरैना का पॉलिटिकल ट्रायंगल, क्या उपचुनाव में कांग्रेस-बीजेपी-बसपा के बीच होगा 'दंगल' ?

बीएसपी से बीजेपी को पहुंचेंगा फायदा

वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र सिंह का कहना है कि चुनाव में पार्टियों के बागी खड़े होना कोई नई बात नहीं है. जहां तक बसपा की बात करें तो मध्य प्रदेश की सत्ता में बसपा कभी आने की स्थिति में नहीं रहेगी. तो सीधी सी बात है कि खेलेंगे नहीं, तो खेल बिगाड़ देंगे. बसपा कांग्रेस का खेल बिगाड़ने की स्थिति में ज्यादा है, क्योंकि बसपा का वोटर कमजोर और अल्पसंख्यक वर्ग का है,जो बीजेपी की बजाय कांग्रेस की तरफ जाता है. तो इसका नुकसान अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस को होगा.

ग्वालियर-चंबल की जिन सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं, उनमें मेहगांव, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, भांडेर, डबरा, करैरा और अशोकनगर सीटें ऐसी हैं जहां बीएसपी पहले कभी न कभी अपनी जीत दर्ज कर चुकी है. वहीं मुरैना सीट पर बीजेपी की हार के पीछे बीएसपी का बड़ा रोल था. अब ये देखने वाली बात होगी कि यहां बीजेपी और कांग्रेस में बसपा किसके वोट काटने में कामयाब हो पाती है.

भोपाल। मध्यप्रदेश की 28 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में 16 सीटें ग्वालियर चंबल की हैं. उपचुनाव में मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस में है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में बहुजन समाज पार्टी भी अपना दमखम दिखा रही है. ग्वालियर-चंबल की पांच सीटों पर बीएसपी मजबूत स्थिति में मानी जा रही है. इसे देखते हुए ग्वालियर-संभाग इलाके में चुनावी लड़ाई त्रिकोणीय होती दिख रही है जिसमें एक तरफ बीजेपी तो दूसरी तरफ कांग्रेस है और बीएसपी इन दोनों दलों का समीकरण बिगाड़ने की तैयारी में है. ग्वालियर चंबल इलाके की जौरा, मेहगांव, भांडेर, अंबाह और मुरैना में मुकाबला फंसा हुआ नजर आ रहा है.

बीएसपी बिगाड़ सकती है कांग्रेस-बीजेपी का गणित

बीएसपी का दबदबा

चंबल का क्षेत्र तीनों पार्टियों के लिए इसलिए भी खास हो गया है. क्योंकि पूरे मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा उपचुनाव की सीटें यहीं से हैं. दूसरी खास बात यह है कि चंबल की 16 सीटों में 11 सीटें ऐसी हैं जहां बीएसपी के उम्मीदवार कभी न कभी जीत दर्ज कर चुके हैं. इस लिहाज से बीएसपी की तैयारी पहले की तरह पुख्ता मानी जा रही है और वह बीजेपी-कांग्रेस को टक्कर देने की स्थिति में दिख रही है. दूसरा यहां भारी संख्या में अनुसूचित जाति के वोटर और इलाका यूपी से सटा है. इसलिए बीएसपी का यहां दबदबा माना जाता है. यही कारण है कि यहां से पार्टी प्रमुख मायावती ने अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. लिहाजा बीजेपी या कांग्रेस के लिए यहां बसपा वोट कटवा का काम करेगी. दूसरी तरफ कई बागी निर्दलीय मैदान में उतर गए हैं, वह भी कुछ ऐसी निर्णायक वोट हासिल कर सकते हैं. जो कांग्रेस और बीजेपी का खेल बिगाड़ सकते हैं. इन्हीं कारणों से करीब पांच सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष के आसार नजर आ रहे हैं, जो अप्रत्याशित परिणाम दे सकते हैं.

BSP chief Mayawati
बसपा प्रमुख मायावती

मजबूत स्थिति में बीजेपी

पहले की तुलना में बीजेपी यहां ज्यादा मजबूत स्थिति में है. क्योंकि यह इलाका ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ माना जाता है. सिंधिया पहले कांग्रेस में थे लेकिन अब बीजेपी का दामन थाम चुके हैं. इस लिहाज से बीजेपी भी यहां मजबूत स्थिति में दिख रही है. इन सबके बावजूद बीजेपी की जीत को एकतरफा नहीं कह सकते. क्योंकि बीएसपी टक्कर देने के लिए मैदान में उतरी है. लेकिन बीजेपी के लिए एक प्लस प्वॉइंट ये जरूर है कि जिन बागी विधायकों ने बीजेपी का दामन थामा है उनमें ज्यादातर विधायक चंबल इलाके से ही हैं.

BJP office
बीजेपी कार्यालय

ये भी पढ़ें: कंस-शकुनि-मारीच से भी बढ़कर हैं कलयुग के मामा शिवराज- आचार्य प्रमोद कृष्णम

जौरा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला

कांग्रेस के विधायक बनवारी लाल शर्मा के निधन के कारण खाली हुई सीट पर जहां बीजेपी ने पूर्व विधायक सूबेदार सिंह को मैदान में उतारा है, तो कांग्रेस ने नए चेहरे पंकज उपाध्याय को टिकट देकर ब्राह्मण बाहुल्य सीट का समीकरण अपने पक्ष में करने की कोशिश की है, लेकिन पूर्व विधायक सोने राम कुशवाहा के बसपा से उतरने के कारण यहां त्रिकोणीय मुकाबला बना गया है.

भांडेर सीट पर भी त्रिकोणीय मुकाबला

इस सीट पर कभी बहुजन समाज पार्टी का हिस्सा रहे बहुजन संघर्ष दल के संस्थापक फूल सिंह बरैया कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं. इसी बात से नाराज होकर कांग्रेस के पूर्व मंत्री महेंद्र बौद्ध बसपा से टिकट लेकर चुनाव मैदान में कूद पड़े हैं. भाजपा से रक्षा सनोरिया चुनाव मैदान में हैं. दल बदल के कारण भाजपा के प्रत्याशी से मतदाताओं की नाराजगी है, तो ब्राह्मण मतदाता फूल सिंह बरैया के विरोध में नजर आ रहे हैं, लेकिन पूर्व गृह मंत्री महेंद्र बौद्ध बसपा के टिकट पर लड़कर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में कामयाब रहे हैं.

मुरैना में राजोरिया ने बिगाड़ा कांग्रेस और बीजेपी का गणित

मुरैना सीट से मिल रहे अनुमानों पर गौर करें तो बसपा के प्रत्याशी रामप्रकाश राजोरिया काफी मजबूत स्थिति में नजर आ रहे हैं. चर्चा तो यहां तक है कि अगर रामप्रकाश राजोरिया को ब्राह्मण मतदाताओं का साथ मिल गया. तो वो जीत के दावेदार हो सकते हैं. इस सीट से कांग्रेस के राकेश मावई और भाजपा के रघुराज कंसाना चुनाव लड़ रहे हैं. खास बात यह है कि भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी दोनों गुर्जर होने के कारण गुर्जर मतदाताओं की वोट बंटती हुई नजर आ रही है.

मेहगांव में जातिगत समीकरणों में उलझा चुनाव

कांग्रेस में टिकट को लेकर मचे घमासान के बाद यहां अटेर के पूर्व विधायक हेमंत कटारे को कांग्रेस ने चुनाव मैदान में उतारा है. ऐसी स्थिति में हेमंत कटारे को अपनी ही पार्टी से नुकसान की आशंका सता रही है, तो दूसरी तरफ बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे योगेश नरवरिया ने मुकाबले को रोचक बना दिया है और वह बीजेपी और कांग्रेस दोनों की वोट काटते हुए नजर आ रहे हैं. इस सीट पर भाजपा के टिकट पर सिंधिया समर्थक मंत्री ओपीएस भदौरिया चुनाव लड़ रहे हैं और तीनों प्रत्याशी त्रिकोणीय संघर्ष में अपनी जीत की उम्मीद लगा रहे हैं.

अंबाह सीट पर चतुष्कोणीय मुकाबला

अंबाह सीट में मुकाबला चतुष्कोणीय होता हुआ नजर आ रहा है. भाजपा से कांग्रेस के बागी कमलेश जाटव मैदान में हैं, तो कांग्रेस ने बसपा से पूर्व विधायक रहे सत्य प्रकाश सखवार को मैदान में उतारा है. वहीं बीएसपी से भानु प्रताप सिंह सखवार मुकाबले को रोचक बनाने की कोशिश में नजर आ रहे हैं, लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी अभिनव छारी ने इस मुकाबले को चतुष्कोणीय बनाकर सबको सोचने में मजबूर कर दिया है. तमाम जातिगत समीकरण उलझे हुए नजर आ रहे हैं. ऐसे में अप्रत्याशित परिणाम की संभावना नजर आ रही है.

ये भी पढ़ें: क्या कमलनाथ हैं मध्यप्रदेश की सियासत के 'मैनेजमेंट गुरु' ! मतदान से ठीक पहले वाहवाही शुरु

पहले भी बनी त्रिकोणीय स्थिति,लेकिन जीती कांग्रेस

इस बीच मध्यप्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि 2018 के चुनाव और उसके पहले भी ग्वालियर चंबल क्षेत्र में त्रिकोणीय संघर्ष होता रहा है और उसके बाद भी कांग्रेस जीतती रही है. इस बार वोट काटने के लिए भले ही नए तरीके के प्रयत्न किए जा रहे हो, लेकिन चतुष्कोण संघर्ष भी होता रहा है, इसके बावजूद भी हमने 26 सीटें जीती थी, तो इससे कांग्रेस के अवसरों पर कोई भी फर्क नहीं पड़ता है. कांग्रेस का निश्चित वोट बैंक है, वह वोट कांग्रेस को मिलेगी और ग्वालियर चंबल में हम सभी 16 सीटें जीतेंगे.

बीजेपी का मतदाता प्रतिबद्ध, विपक्षी वोटों का होगा बंटवारा

वहीं बीजेपी के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल का कहना है कि कई स्थानों पर बीएसपी कांग्रेस पार्टी को धकेल कर दूसरे नंबर पर पहुंचा रही है. स्पष्ट रूप से दिख रहा है और राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकारों का यही मत उभरकर सामने आ रहा है. रही बात निर्दलीय की, तो कोई निर्दलीय भले ही जीतने की स्थिति में नहीं है, लेकिन विपक्ष की वोटों का बंटवारा तो करता ही है. क्योंकि बीजेपी का वैचारिक प्रतिबद्ध वोटर एकमुश्त रहता है. सरकार के पक्ष वाला वोट साथ में जाता है, क्योंकि हम सरकार में हैं, तो दो अलग-अलग प्रत्याशी लड़ रहे हैं. वह विपक्ष की वोट का बंटवारा करेंगे.

मुरैना का पॉलिटिकल ट्रायंगल, क्या उपचुनाव में कांग्रेस-बीजेपी-बसपा के बीच होगा 'दंगल' ?

बीएसपी से बीजेपी को पहुंचेंगा फायदा

वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र सिंह का कहना है कि चुनाव में पार्टियों के बागी खड़े होना कोई नई बात नहीं है. जहां तक बसपा की बात करें तो मध्य प्रदेश की सत्ता में बसपा कभी आने की स्थिति में नहीं रहेगी. तो सीधी सी बात है कि खेलेंगे नहीं, तो खेल बिगाड़ देंगे. बसपा कांग्रेस का खेल बिगाड़ने की स्थिति में ज्यादा है, क्योंकि बसपा का वोटर कमजोर और अल्पसंख्यक वर्ग का है,जो बीजेपी की बजाय कांग्रेस की तरफ जाता है. तो इसका नुकसान अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस को होगा.

ग्वालियर-चंबल की जिन सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं, उनमें मेहगांव, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, भांडेर, डबरा, करैरा और अशोकनगर सीटें ऐसी हैं जहां बीएसपी पहले कभी न कभी अपनी जीत दर्ज कर चुकी है. वहीं मुरैना सीट पर बीजेपी की हार के पीछे बीएसपी का बड़ा रोल था. अब ये देखने वाली बात होगी कि यहां बीजेपी और कांग्रेस में बसपा किसके वोट काटने में कामयाब हो पाती है.

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