भोपाल। शिवराज सरकार के चुनावी बजट में बड़ी दरियादिली से महिला मतदाताओं के लिए खजाना खोला गया है. लाड़ली बहना योजना के लिए बजट में 8 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. हालांकि, आंगनवाड़ियों का सर्वे जारी है लेकिन सरकार का अनुमान है कि करीब एक करोड़ महिलाएं इस योजना के दायरे में आ रही हैं. मध्यप्रदेश की माली हालत ऐसी है कि सरकार जो कर्ज ले चुकी है, उसका ब्याज ही करीब बीस हजार करोड़ रुपए है. ऐसे में नए बोझ के साथ चुनाव के लिए बाकी 6 महीने में लाड़ली बहनों के खाते में एक हजार रुपए पहुंचाना आसान नहीं होगा.
हिमाचल में इसी वादे पर जीती कांग्रेस लेकिन अमल में आ रहे पेंच: हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने भी ऐसा ही चुनावी वादा किया था. घोषणा की गई थी कि हिमाचल में कांग्रेस विधानसभा चुनाव जीती तो महिलाओं के बैंक खाते में 1500 रुपए हर महीने डाले जाएंगे. इस वादे के दम पर कांग्रेस सत्ता में आ भी गई. लेकिन सरकार बनने के बाद अब किन महिलाओं को ये पैसा मिलेगा, इसे लेकर सख्त शर्तें लगा दी गई हैं. हिमाचल सरकार ने बाकायदा कमेटी का गठन किया है कि जो महिलाओं के लिए पात्रता तय करेगी.
मध्यप्रदेश में बतौर गेमचेंजर लाई जा रही 'लाड़ली बहना': मध्यप्रदेश में स्थिति दूसरी है. यहां बीजेपी ने गेमचेंजर के तौर पर लाड़ली बहना योजना को ऐन चुनाव से पहले लाने की तैयारी की है. क्राइटेरिया यहां भी तय किया गया है कि किस आय वर्ग की महिलाएं इस योजना के दायरे में आएंगी. जाति-वर्ग को लेकर कोई पाबंदी नहीं है. लिहाजा, छंटनी इतनी आसान भी नहीं होगी. प्रदेश में 18 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं का आंकड़ा पौने तीन लाख के लगभग है. सरकार ये मान रही है कि इनमें से एक करोड़ महिलाएं लाड़ली बहना योजना के दायरे में आ सकती हैं. इनमें 25 लाख बुजुर्ग महिलाएं भी शामिल हैं, जिनकी पेंशन में चार सौ रुपए जोड़कर एक हजार रुपए दिए जाएंगे.
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कौन होंगी लाड़ली और कब तक: लाड़ली बहना योजना की पात्रता के लिए पहली शर्त है कि महिला न तो आयकरदाता परिवार से हो और न ही खुद आयकरदाता. सरकारी नौकरी वाले परिवारों की महिलाएं इसके दायरे में नहीं आएंगी. अगर परिवार में 5 एकड़ से ज्यादा जमीन है तो भी योजना का लाभ नहीं मिलेगा. ये भी पाबंदी है कि अगर कोई महिला, केन्द्र और राज्य सरकार की ही किसी अन्य योजना में एक हजार रुपए या इससे ज्यादा की सहायता ले रही है तो उसे इस योजना का लाभ नहीं मिल पाएगा. इतनी शर्तों के बाद भी करीब एक करोड़ महिलाएं इस दायरे में आ रही हैं. हालांकि, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के सर्वे के बाद ही सही आंकड़ा सामने आएगा. ऐसे में सवाल यह है कि कर्ज में डूबे मध्यप्रदेश में इस योजना पर 8 हजार करोड़ रुपए खर्च की मंजूरी की ये दरियादिली सरकार पर कितना बोझ बढ़ाएगी. ऐसी बहनें कब तक रह पाएंगी सरकार की लाड़ली.