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MP के हर चुनाव में नौकरशाही पर ही निशाना क्यों...तात्कालिक लाभ के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष करते हैं हमले - MP Assembly Election 2023

Bureaucrats on target in MP Elections: चुनावों में लाभ के लिए ब्यूरोक्रेसी पर हमला एक आम बात होती दिख रही है. चाहे सत्तापक्ष हो या विपक्ष दोनों ही अपने-अपने ढंग से नौकरशाही को निशाने पर लेते हैं. मध्य प्रदेश के चुनाव में भी यही दिखाई दे रहा है.

Bureaucrats on target in MP Elections
Bureaucrats on target in MP Elections
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 2, 2023, 9:28 PM IST

भोपाल। एमपी के विधानसभा चुनाव में नेताओं के ओवर कॉन्फिडेंस का ये पहला मौका नहीं है. जिस तरह से नकुलनाथ शपथ ग्रहण की तारीख बता रहे हैं और केन्द्रीय मंत्री अमित शाह अघोषित रूप से कह गए कि जो कमल का ध्यान नहीं रखेगा उसे देख लिया जाएगा. ये तस्वीर चुनाव के बगैर भी बनती रही है. कमलनाथ तो 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद से लगातार अफसरों को ये कहते रहे हैं कि बीजेपी का बिल्ला जेब में रखकर मत घूमों सत्ता बदलेगी तो रिटायर भी हो गए तो फाइल खुल जाएगी. सवाल ये है कि चुनाव में सियासी दलों के निशाने पर ब्यूरोक्रेसी क्यों रहती है. पूर्व नौकरशाह राजीव शर्मा कहते हैं छद्म फायदों के लिए ये जो प्रैक्टिस शुरू की गई है ये सिस्टम को गहरा नुकसान देगी.

चुनाव से पहले हर बार ब्यूरोक्रेसी पर ही निशाना क्यों : बीते दिनों बीजेपी कार्यकर्ताओं की बैठक लेने आए केन्द्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा कि "जो कमल का ध्यान नहीं रखे उसे छोड़ेंगे नहीं." उन्होंने सीएम शिवराज की तरफ इशारा करके कहा कि "आप भी मैसेज कर दो नहीं बचा पाओगे." इसके बाद एक बार फिर एमपी की ब्यूरोक्रेसी में ये सवाल तैरने लगा कि इस इशारे और अंदाज़ को क्या समझा जाए.

भाजपा के साथ कांग्रेस भी पीछे नहीं: हांलाकि, इस मामले में बीजेपी ही आगे है ऐसा नहीं है. तेवर कांग्रेस में भी बराबर से दिखाए गए हैं. कमलनाथ तो 2018 से अफसरों को समझाईश देते रहे हैं. 2020 में उपचुनाव में हार जाने के बाद भी कमलनाथ अफसरों को ये घुड़की देते रहे हैं कि "जेब में बीजेपी का बिल्ला रखकर न घूमें तीन साल बाद जब कांग्रेस की सरकार आएगी तो रिटायर भी हो गए तो फाईल खुलवा लूंगा."

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ब्यूरोक्रेसी पर निशाना सिस्टम का नुकसान : पूर्व नौकरशाह राजीव शर्मा ब्यूरोक्रेसी पर कांग्रेस और बीजेपी की तरफ से हो रहे इन हमलों को लेकर कहते हैं- "मर्यादा होनी ही चाहिए, लेकिन असल में उस मर्यादा को ये लोग तोड़ रहे हैं. शुद्ध लाभ के लिए कोई भी इस मर्यादा को तोड़े ये उचित नहीं है. क्योंकि ब्यूरोक्रेसी स्वयं एक मर्यादित संगठन है जो कई किस्म के नियम निर्देशों के तहत काम करता है. उस नौकरशाही को राजनीतिक लड़ाई में घसीटना किसी को भी तात्कालिक लाभ दे सकता है. लेकिन सिस्टम को दीर्घाकालिक नुकसान में डाल देगा. ये अच्छा नहीं है इससे बचना चाहिए".

भोपाल। एमपी के विधानसभा चुनाव में नेताओं के ओवर कॉन्फिडेंस का ये पहला मौका नहीं है. जिस तरह से नकुलनाथ शपथ ग्रहण की तारीख बता रहे हैं और केन्द्रीय मंत्री अमित शाह अघोषित रूप से कह गए कि जो कमल का ध्यान नहीं रखेगा उसे देख लिया जाएगा. ये तस्वीर चुनाव के बगैर भी बनती रही है. कमलनाथ तो 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद से लगातार अफसरों को ये कहते रहे हैं कि बीजेपी का बिल्ला जेब में रखकर मत घूमों सत्ता बदलेगी तो रिटायर भी हो गए तो फाइल खुल जाएगी. सवाल ये है कि चुनाव में सियासी दलों के निशाने पर ब्यूरोक्रेसी क्यों रहती है. पूर्व नौकरशाह राजीव शर्मा कहते हैं छद्म फायदों के लिए ये जो प्रैक्टिस शुरू की गई है ये सिस्टम को गहरा नुकसान देगी.

चुनाव से पहले हर बार ब्यूरोक्रेसी पर ही निशाना क्यों : बीते दिनों बीजेपी कार्यकर्ताओं की बैठक लेने आए केन्द्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा कि "जो कमल का ध्यान नहीं रखे उसे छोड़ेंगे नहीं." उन्होंने सीएम शिवराज की तरफ इशारा करके कहा कि "आप भी मैसेज कर दो नहीं बचा पाओगे." इसके बाद एक बार फिर एमपी की ब्यूरोक्रेसी में ये सवाल तैरने लगा कि इस इशारे और अंदाज़ को क्या समझा जाए.

भाजपा के साथ कांग्रेस भी पीछे नहीं: हांलाकि, इस मामले में बीजेपी ही आगे है ऐसा नहीं है. तेवर कांग्रेस में भी बराबर से दिखाए गए हैं. कमलनाथ तो 2018 से अफसरों को समझाईश देते रहे हैं. 2020 में उपचुनाव में हार जाने के बाद भी कमलनाथ अफसरों को ये घुड़की देते रहे हैं कि "जेब में बीजेपी का बिल्ला रखकर न घूमें तीन साल बाद जब कांग्रेस की सरकार आएगी तो रिटायर भी हो गए तो फाईल खुलवा लूंगा."

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ब्यूरोक्रेसी पर निशाना सिस्टम का नुकसान : पूर्व नौकरशाह राजीव शर्मा ब्यूरोक्रेसी पर कांग्रेस और बीजेपी की तरफ से हो रहे इन हमलों को लेकर कहते हैं- "मर्यादा होनी ही चाहिए, लेकिन असल में उस मर्यादा को ये लोग तोड़ रहे हैं. शुद्ध लाभ के लिए कोई भी इस मर्यादा को तोड़े ये उचित नहीं है. क्योंकि ब्यूरोक्रेसी स्वयं एक मर्यादित संगठन है जो कई किस्म के नियम निर्देशों के तहत काम करता है. उस नौकरशाही को राजनीतिक लड़ाई में घसीटना किसी को भी तात्कालिक लाभ दे सकता है. लेकिन सिस्टम को दीर्घाकालिक नुकसान में डाल देगा. ये अच्छा नहीं है इससे बचना चाहिए".

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