भोपाल। क्या वजह है कि बीजेपी इस बार छिंदवाड़ा से अपने चुनाव अभियान की शुरुआत करने जा रही है. छिंदवाड़ा में गृह मंत्री अमित शाह का दौरा और आदिवासियों की संगत. कौन सा नया सियासी गणित है. कांग्रेस के सबसे मजबूत किलेदार कमलनाथ को उनके ही इलाके में मात देने के पीछे कौन सी नई रणनीति है. बीजेपी में इत्तेफाकन तो कुछ भी नहीं होता. तो सत्ता की मजबूती के लिए आदिवासियों तक पहुंचने के रास्ते को नए सिरे से मजबूत कर रही बीजेपी के ये दांव भी इत्तेफाकन तो नहीं हैं.
कमलनाथ के गढ़ से बीजेपी का शंखनाद: क्या वजह है कि बीजेपी ने चुनाव अभियान की शुरुआत के लिए छिंदवाड़ा को ही चुना. छिंदवाड़ा में 25 मार्च को अमित शाह का दौरा है. पार्टी कार्यकर्ताओ से मुलाकात, जनसभा, लेकिन इस दौरे की जो सबसे बड़ी हाईलाईट है वो है आदिवासी स्थलों तक पहुंचकर आदिवासी संतों की संगत में शाह का भोजन. अब तक जो कार्यक्रम तैयार हुआ है उसके मुताबिक शाह हर्राई ब्लाक में बटला खापा गांव में बने अचल कुंड जाएंगे. ये कुंड आदिवासी आस्था का बड़ा केन्द्र माना जाता है. इसी जगह पर शाह आदिवासी धर्मगुरुओं के साथ भोजन भी करेगें और सत्संग भी होगा. शाह के दौरे का ये हिस्सा बेहद महत्वपूर्ण है. ये सत्संग और भोजन प्रदेश की आदिवासी सीटों पर असर देने वाला है. सबसे बड़ी बात ये कि संदेश उस जमीन से पहुंचाया जा रहा है कांग्रेस के लिए जो जमीन पार्टी के हिस्से आए भयानक सूखे के दौर में भी उर्वरा रही है. छिंदवाड़ा केवल कमलनाथ का गढ़ नहीं है कांग्रेस की ताकत भी है.
कमलनाथ को घर में घेरने की तैयारी: बीजेपी 2023 के विधानसभा चुनाव में एक तीर से कई निशाने साध रही है. छिंदवाड़ा से चुनाव अभियान की शुरुआत इसलिए क्योंकि ये कमलनाथ का गढ़ है और कांग्रेस की मजबूत जमीन. जिले की 7 विधानसभा सीटों में से 3 एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है. लिहाजा पार्टी ने आदिवासियों को एड्रेस करने के लिए छिंदवाड़ा को ही चुना. यहां से असर पूरे एमपी में पहुंचाया जाएगा. बात इतनी भर नहीं है दांव ये है कि छिंदवाड़ा की सियासी जमीन का स्वभाव बदला जाए. अगर कमलनाथ को उनके घर में ही बीजेपी ने घेर लिया. अगर कमलनाथ को उनके गढ़ में मात दे दी गई तो पूरे प्रदेश में कांग्रेस का मनोबल तोड़ने का सबसे मजबूत दांव होगा. 2019 के लोकसभा चुनाव में जब मोदी की आंधी में जब सिंधिया जैसे उखड़ गए, तब भी भले कम अंतर से सही नकुलनाथ अकेले थे जो छिंदवाड़ा के साथ कांग्रेस की पहली और इकलौती लोकसभा सीट जीतने में कामयाब रहे थे. 2018 के विधानसभा चुनाव में भी छिंदवाड़ा की सारी सीटें कांग्रेस के नाम हुई थी. अब 2023 के विधआनसभा चुनाव में बीजेपी का हर दांव कांग्रेस की सबसे मजबूत जमीन को कमजोर करने के लिए है.
सत्ता की चाबी हमेशा एससी एसटी वर्ग के हाथ: एमपी में सत्ता की चाबी हमेशा ही आदिवासी के हाथ में रही है. प्रदेश की 230 विधआनसभा सीटों में से एससी वर्ग के लिए 35 और एसटी वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में 47 आदिवासी सीटों में से केवल 16 सीटें बीजेपी के खाते में गई हैंं. जबकि 30 सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था एक पर निर्दलीय की जीत हुई थी. आदिवासी सीटों के नतीजे काफी चौंकाने वाले रहे. आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली जबकि एक निर्दलीय के खाते में गई. हांलाकि 2003 लेकर 2013 तक आदिवासियों पर बीजेपी की पकड़ बनी रही थी. 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी आदिवासियों के बीच की वही खोई साख लौटाने की जुगत में है. पेसा एक्ट से लेकर आदिवासी नायकों की याद पार्टी के चाणक्य अमित शाह का आदिवासी संतों के साथ सत्संग, ये सारे दांव आदिवासी वोटर की सियासी तासीर बदलने वाले हैं.