भोपाल। गुजरात विधानसभा चुनाव में बागियों पर एक्शन क्या मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ट्रेलर है. बीजेपी की वर्किंग में कार्यकर्ताओं तक कई बार बिना एक्शन के भी संदेश पहुंचाया जाता है. बस नसीहत की तरह कि अगर पार्टी लाइन छोड़ी तो होना क्या है. 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी में बागियों की बहार होगी. क्या सिंधिया गुट के प्रभाव वाले ग्वालियर-चंबल इलाके में गुजरात का एक्शन बगावत के पहले असर दिखा पाएगा.
पार्टी का संदेश साफ, बागी नहीं बख्शे जाएंगे : गुजरात में बागियों को जिस तरह से पार्टी ने चुनाव के बीच कार्रवाई की है. उससे तय मानिए कि चुनाव की दहलीज पर खड़े बाकी राज्यों को भी बीजेपी ने अघोषित रूप से संदेश दे दिया है. संदेश ये कि पार्टी लाइन से जरा इधर उधर होना, बीजेपी नेताओं को भारी पड़ सकता है. बगावत के लिए तो फिर कोई गुंजाइश ही नहीं है. चुनावी प्रयोगशाला बने गुजरात में पहले सिंटिंग एमलए के टिकट काटकर और फिर उसके बाद अब बागियों पर कड़ा एक्शन दिखाकर पार्टी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं. एमपी के ग्वालियर चंबल इलाके की 34 सीटों पर इसकी सबसे ज्यादा दहशत है. वजह ये कि यहां कांग्रेस और बीजेपी से पहले सिंधिया गुट और बीजेपी के जमीनी नेताओं के बीच है मुकाबला.
ग्वालियर में क्यों आ सकती है बागियों की बहार : 2018 में खोई सत्ता वापस लौटाने में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बड़ी भूमिका है. और ग्वालियर चंबल की ज्यादातर सीटों पर हुए उपचुनाव की बदौलत ये मुमकिन हो सका. लिहाजा ग्वालियर चंबल-अब मध्यप्रदेश की सत्ता का एपिसेंटर बन गया है. लेकिन यही दंगल का मैदान भी बन सकता है. क्योंकि सिंधिया ने आते ही ग्वालियर में तुलसी सिलावट को प्रभारी मंत्री बनाकर ना अपने हिसाब की जमावट की है. बल्कि यहां की ज्यादातर विधानसभा सीटों पर पार्टी के पुराने नेता और सिंधिया के साथ आई नई खेप के बीच खींचतान है. ये खींचतान केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिह तोमर से शुरू होकर प्रदुम्न सिंह तोमर तक आती है. 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मुकाबले में ख़ड़ी कांग्रेस से पहले पार्टी के भीतर की कई चुनौतियों से निपटना है. टिकट बंटवारा उसमें सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा होगा. टिकट बंटने के साथ ही बागियों की बहार आ जाए, इससे इंकार नहीं किया जा सकता. सिंधिया समर्थकों को ‘सैट’ करने में पार्टी के जमीनी नेताओं की अनदेखी के मंज़र भी बन सकते हैं.
ग्वालियर चंबल की 34 सीटें निर्णायक : 2023 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर चंबल इस बार निर्णायक रहेगा. वो इसलिए क्योंकि 8 जिले की 34 सीटों वाले इस इलाके ने ही बीजेपी को खोई सत्ता दिलाई है. 2018 में भी इसी इलाके में 34 में से 26 सीटें जीतकर कांग्रेस सत्ता तक पहुंची थी. बीजेपी के खाते में केवल सात सीटें आई थी. और एक बीएसपी के खाते में गई थी. फिर 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में भी ग्वालियर चंबल की सीटो पर मिली जीत ने ही बीजेपी को सत्ता दिलाई. इस चुनाव में बीजेपी को 19 और कांग्रेस के खाते में 9 सीटें आई थी. MP Mission 2023 पर सिंधिया का बड़ा बयान बोले- शिवराज के नेतृत्व में ही लहराएंगे जीत का परचम
बीजेपी में पार्टी लाइन सबसे बड़ी : वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भटनागर कहते हैं कि बीजेपी की वर्किंग में मैसेज का बहुत महत्व है. इसमें दो राय नहीं. दूसरा अब तक विचारधारा पर खड़ी इस पार्टी में कार्यकर्ता चाहे फिर वो किसी भी स्तर का हो. संगठन के आदेश के बाद फिर लक्ष्मण रेखा अमूमन नहीं लांघता. दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि मध्यप्रदेश ही नहीं, देश में भी राजनीतिक भविष्य अगर कहीं भी दिखाई दे रहा है तो वो बीजेपी है ही. ऐसे में निजी तौर पर भी ग्वालियर- चंबल में भी बीजेपी के नेता बगावत की राह पकड़कर खुद अपना नुकसान नहीं करना चाहेंगे. फिर गुजरात के एक्शन ने तो ऐसा सोच रहे नेताओ को भी सकते में ला दिया होगा.