भोपाल। समाज में अधिकांश लोग अपनी जिंदगी में किसी न किसी मकसद के लिए काम करते हैं, कुछ लोग अपने परिवार, मोहमाया में आकर खुद के लिए जीते हैं तो कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जो घर-परिवार की न सोचकर थोड़ा अलग सोचते हैं. समाज के लिए काम करते हैं, अपनी संस्कृति को बचाने के लिए काम करते हैं, लिहाजा वह लोग अपने आप को लोगों के बीच कुछ अलग पाते हैं. हिन्दू संस्कृति को बचाने लिए इन दिनों राजधानी भोपाल के राधे श्याम अग्रवाल जो काम कर रहे हैं, उसकी शहर में इन दिनों खूब चर्चा हैं.
- लावारिस शवों का सहारा राधेश्याम
राजधानी के राधेश्याम कई सालों से भोपाल में लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं. शहर में यदि कोई लावारिस शव होने की सूचना मिलती है तो राधेश्याम उसके कफन और उसके अंतिम संस्कार करने का सारा खर्च खुद वहन करते हैं. पिछले साल कोरोना काल में जब लोग अंतिम संस्कार में शामिल होने से डर रहे थे और कोरोना से मरने वालों के अंतिम संस्कार की व्यवस्था तक नहीं थी तो ऐसे में राधेश्याम अग्रवाल आगे आए और कोरोना काल में 300 लाशों के अंतिम संस्कार का प्रबंध किया. वहीं, इस साल मार्च महीने से लेकर अब तक राधेश्याम 30 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं.
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- राधेश्याम के साथ 3000 लोग जुड़े
राधेश्याम अग्रवाल बताते हैं कि 15 साल पहले वह मुंबई में एक ट्रेन की चपेट में आए थे और उस हादसे के बाद उन्होंने यह नेक काम शुरु किया. उन्होंने कहा कि पहले वह अकेले थे, फिर कुछ दोस्त उनसे जुड़े और अब उनके मिशन में कुल 3000 लोग जुड़ चुके हैं.
- वाहन और लकड़ी की भी व्यवस्था
अग्रवाल ने बताया कि वह BHEL में नौकरी करते थे, लेकिन फिर 2000 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी. इसके बाद वह 2005 से पूरी तरह समाजसेवा के लिए समर्पित हो गए. अग्रवाल अब तक 7228 लाशों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं.