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नवरात्रि की अष्टमी पर होती है मां महागौरी की पूजा, जानें कथा और विधि-विधान - नवरात्रि 2020

आज नवरात्रि की अष्टमी तिथि है. ये दिन मां महागौरी को समर्पित है. आज महागौरी देवी की पूजा की जाती है. जानिए क्या है देवी की पूजा की पद्दति और परंपरा.

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मां महागौरी
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Published : Oct 24, 2020, 8:21 AM IST

Updated : Oct 24, 2020, 8:55 AM IST

भोपाल। नवरात्रि की अष्टमी तिथि को मां महागौरी की पूजा की जाती है. भगवान शिव की प्राप्ति के लिए मां महागौरी ने कठोर पूजा की थी, जिससे इनका शरीर काला पड़ गया था. जब भगवान शिव ने महागौरी को दर्शन दिया तब उनकी कृपा से इनका शरीर अत्यंत गौर हो गया और इनका नाम गौरी हो गया. माना जाता है कि माता सीता ने राम की प्राप्ति के लिए इन्हीं की पूजा की थी.

महागौरी का स्वरूप-

मां गौरी श्वेत वर्ण की हैं और श्वेत रंग में इनका ध्यान करना अत्यंत लाभकारी होता है. विवाह सम्बन्धी तमाम बाधाओं के निवारण में इनकी पूजा अचूक होती है. ज्योतिष में इनका सम्बन्ध शुक्र नामक ग्रह से माना जाता है. कथाओं के अनुसार भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी. जिससे इनका शरीर काला पड़ गया. जिसके बाद भगवान प्रसन्न होकर इन्हें स्वीकार करते हैं. फिर इनके शरीर को गंगाजल से धोते हैं. तब देवी अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं. तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा.

पापों से मुक्ति दिलाती हैं महागौरी

अष्टमी में मां महागौरी की पूजा करना बहुत फलदायी माना गया है. कहा जाता है कि महागौरी माता की पूजा करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मन में विचारों की शुद्धता आती है. महागौरी हर प्रकार की नकारात्मकता को दूर करती हैं.

इस तरह प्रसन्न करें मां गौरी को

महागौरी की उपासना से पहले घर में सभी को सफेद वस्त्र पहनने चाहिए. देवी को भी सफेद फूल, बेली, चमेली की माला अर्पित करें. बाद में मां को नारियल का भोग चढ़ाएं. फिर प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं में बांट दें. इसके अलावा पूजन के दौरान माता की विशेष आरती करेंगे तो मां अवश्य प्रसन्न होंगी. साथ ही प्रत्येक दिन की तरह देवी की मंत्र के साथ पूजा करें. इस दिन महिलाएं अपने पति के लिए मां को चुनरी अर्पित करती हैं.

शुक्रवार आधी रात महानिशा पूजा

परंपरा के मुताबिक शुक्रवार को आधी रात में महानिशा पूजन का कार्यक्रम होगा. इस महानिशा पूजा में गौरी-गणेश जी, कलश, नवग्रह आदि का पूजन होगा. इसके बाद शंख, घंटी, दीप के पूजन सहित राजोपचार विधि से मां महामाया की पूजा की जाएगी. पूजा के बाद दुर्गा सप्तशती के पाठ द्वारा पंचामृत से माता का अभिषेक किया जाएगा. फिर मां का भव्य श्रृंगार किया जाएगा और ब्रह्म मुहूर्त में अगले दिन सुबह 4 बजे आरती के साथ इस अनुष्ठान का समापन होगा.

अष्टमी को अर्पित की जाएगी अठवाई

24 अक्टूबर शनिवार को हवन का आयोजन किया जाएगा. हवन की तैयारी भी सभी देवी मंदिरों में लगभग पूरी कर ली गई है. मां महामाया देवी मंदिर में सुबह से माता को अठवाई चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. साथ ही नित्य दिनचर्या वाले आरती स्तुति के बाद अष्टमी का हवन भी सुबह 6 बजे से शुरू हो जाएगा.

दुर्गा सप्तशती के मंत्रों से होगी पूजा

मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि हवन कुंड में हवन के लिए कुशकुंडिका अग्नि आवाहन पूजन किया जाएगा. इसके बाद आवाहित देवताओं के नाम से आहुति दी जाएगी. इसके बाद श्री दुर्गा सप्तशती जी के 700 मंत्रों द्वारा आहुति देने की परंपरा है.

कैसे करें कन्या पूजन की तैयारी
कन्या पूजन के लिए हमेशा कन्याओं को एक दिन पहले ही यानी सप्तमी को ही आमंत्रण दे आएं. साथ में बटुक भैरव के रूप में एक बालक को भी जरूर आमंत्रित करें. कंजक पूजा में 2 से10 साल तक कि कन्याओं को आमंत्रित करें. अष्टमी के दिन शुभ मुहूर्त में कन्याओं और बटुक भैरव के रूप में बालक को आसन पर बिठाएं. ध्यान रहे कि कन्याएं मां दुर्गा का रूप होती हैं, ऐसे में उनका स्वागत जयकारे के साथ करें और घर बिल्कुल स्वच्छ रखें.

पैर छूकर ले आर्शीवाद
जब कन्याएं आसन ग्रहण कर लें तो एक-एक कर सभी कन्याओं का पैर धोएं और रोली, कुमकुम और अक्षत का टीका लगाएं. उनकी कलाई पर मौली बाधें, माला चढ़ाएं और उनकी आरती करें. इसके बाद सभी कन्याओं और बालक को भोग लगाएं. उन्हें चना, हलवा और पूरी का प्रसाद खिलाएं और उन्हें भेंट दें और पैर छूकर कन्याओं से आशीर्वाद लें.

भोपाल। नवरात्रि की अष्टमी तिथि को मां महागौरी की पूजा की जाती है. भगवान शिव की प्राप्ति के लिए मां महागौरी ने कठोर पूजा की थी, जिससे इनका शरीर काला पड़ गया था. जब भगवान शिव ने महागौरी को दर्शन दिया तब उनकी कृपा से इनका शरीर अत्यंत गौर हो गया और इनका नाम गौरी हो गया. माना जाता है कि माता सीता ने राम की प्राप्ति के लिए इन्हीं की पूजा की थी.

महागौरी का स्वरूप-

मां गौरी श्वेत वर्ण की हैं और श्वेत रंग में इनका ध्यान करना अत्यंत लाभकारी होता है. विवाह सम्बन्धी तमाम बाधाओं के निवारण में इनकी पूजा अचूक होती है. ज्योतिष में इनका सम्बन्ध शुक्र नामक ग्रह से माना जाता है. कथाओं के अनुसार भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी. जिससे इनका शरीर काला पड़ गया. जिसके बाद भगवान प्रसन्न होकर इन्हें स्वीकार करते हैं. फिर इनके शरीर को गंगाजल से धोते हैं. तब देवी अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं. तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा.

पापों से मुक्ति दिलाती हैं महागौरी

अष्टमी में मां महागौरी की पूजा करना बहुत फलदायी माना गया है. कहा जाता है कि महागौरी माता की पूजा करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मन में विचारों की शुद्धता आती है. महागौरी हर प्रकार की नकारात्मकता को दूर करती हैं.

इस तरह प्रसन्न करें मां गौरी को

महागौरी की उपासना से पहले घर में सभी को सफेद वस्त्र पहनने चाहिए. देवी को भी सफेद फूल, बेली, चमेली की माला अर्पित करें. बाद में मां को नारियल का भोग चढ़ाएं. फिर प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं में बांट दें. इसके अलावा पूजन के दौरान माता की विशेष आरती करेंगे तो मां अवश्य प्रसन्न होंगी. साथ ही प्रत्येक दिन की तरह देवी की मंत्र के साथ पूजा करें. इस दिन महिलाएं अपने पति के लिए मां को चुनरी अर्पित करती हैं.

शुक्रवार आधी रात महानिशा पूजा

परंपरा के मुताबिक शुक्रवार को आधी रात में महानिशा पूजन का कार्यक्रम होगा. इस महानिशा पूजा में गौरी-गणेश जी, कलश, नवग्रह आदि का पूजन होगा. इसके बाद शंख, घंटी, दीप के पूजन सहित राजोपचार विधि से मां महामाया की पूजा की जाएगी. पूजा के बाद दुर्गा सप्तशती के पाठ द्वारा पंचामृत से माता का अभिषेक किया जाएगा. फिर मां का भव्य श्रृंगार किया जाएगा और ब्रह्म मुहूर्त में अगले दिन सुबह 4 बजे आरती के साथ इस अनुष्ठान का समापन होगा.

अष्टमी को अर्पित की जाएगी अठवाई

24 अक्टूबर शनिवार को हवन का आयोजन किया जाएगा. हवन की तैयारी भी सभी देवी मंदिरों में लगभग पूरी कर ली गई है. मां महामाया देवी मंदिर में सुबह से माता को अठवाई चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. साथ ही नित्य दिनचर्या वाले आरती स्तुति के बाद अष्टमी का हवन भी सुबह 6 बजे से शुरू हो जाएगा.

दुर्गा सप्तशती के मंत्रों से होगी पूजा

मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि हवन कुंड में हवन के लिए कुशकुंडिका अग्नि आवाहन पूजन किया जाएगा. इसके बाद आवाहित देवताओं के नाम से आहुति दी जाएगी. इसके बाद श्री दुर्गा सप्तशती जी के 700 मंत्रों द्वारा आहुति देने की परंपरा है.

कैसे करें कन्या पूजन की तैयारी
कन्या पूजन के लिए हमेशा कन्याओं को एक दिन पहले ही यानी सप्तमी को ही आमंत्रण दे आएं. साथ में बटुक भैरव के रूप में एक बालक को भी जरूर आमंत्रित करें. कंजक पूजा में 2 से10 साल तक कि कन्याओं को आमंत्रित करें. अष्टमी के दिन शुभ मुहूर्त में कन्याओं और बटुक भैरव के रूप में बालक को आसन पर बिठाएं. ध्यान रहे कि कन्याएं मां दुर्गा का रूप होती हैं, ऐसे में उनका स्वागत जयकारे के साथ करें और घर बिल्कुल स्वच्छ रखें.

पैर छूकर ले आर्शीवाद
जब कन्याएं आसन ग्रहण कर लें तो एक-एक कर सभी कन्याओं का पैर धोएं और रोली, कुमकुम और अक्षत का टीका लगाएं. उनकी कलाई पर मौली बाधें, माला चढ़ाएं और उनकी आरती करें. इसके बाद सभी कन्याओं और बालक को भोग लगाएं. उन्हें चना, हलवा और पूरी का प्रसाद खिलाएं और उन्हें भेंट दें और पैर छूकर कन्याओं से आशीर्वाद लें.

Last Updated : Oct 24, 2020, 8:55 AM IST
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