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Mahashivratri 2023: एमपी में शिव का दुर्लभ मंदिर, कंदराओं के बीच बहता है जल, नर्मदा कराती हैं महादेव का अभिषेक

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Published : Feb 18, 2023, 9:58 AM IST

Maha Shivaratri Story: बाहुबली फिल्म का वह सीन तो आपको याद ही होगा, जिसमें शिवा अपनी मां के लिए शिवलिंग को एक स्थान से उठाकर गंगा की धारा के बीच स्थापित कर देते हैं. कुछ ऐसा ही दृश्य भोपाल से 25 किमी दूर रातापानी के जंगलों में दिखाई देता है. यहां पर्वतों की कंदराओं से निकलकर और पेड़ों की जटाओं से बहकर मां नर्मदा शिवलिंग का अभिषेक करती हैं.

Mahashivratri 2023
नर्मदा कराती हैं महादेव का अभिषेक
एमपी में शिव का दुर्लभ मंदिर, नर्मदा कराती हैं महादेव का अभिषेक

भोपाल। करीब 300 वर्ष पहले इस स्थान की खोज संत परंपरा के एक महंत धर्मगिरी दास जी ने की थी. देश का एकमात्र स्थान है, जहां शिव का अभिषेक बरगद के वृक्ष से निकलने वाले जल से होता है. यह दृश्य देखकर भक्त ईश्वरीय वरदान कहते हैं. रातापानी जंगल के बीच स्थित इस महादेव मंदिर के बारे में जब ईटीवी भारत को जानकारी मिली तो शिवरात्रि के एक दिन पहले टीम मौके के लिए रवाना हुई. भोपाल से मंडीदीप और फिर वहां से दाहोद हाेते हुए हम जावरा गांव पहुंचे. यहां पर्वतों की कंदराओं से निकलकर और पेड़ों की जटाओं से बहकर मां नर्मदा शिवलिंग का अभिषेक करती हैं. इस घने जंगल में भगवान शिव की आराधना करने वाले महंत का दावा है कि, मां नर्मदा का ही यह जल है. इस स्थान पर जाने के लिए वन विभाग ने प्रतिबंध लगा दिया है.

ऊबड़-खाबड़ सीढ़ियां: यहां वन विभाग की चौकी थी, जिसके पार बिना अनुमति के जाना मना था. इस जगह से महादेव मंदिर की दूरी करीब 4.5 किमी दूर थी, तो पैदल ही उस स्थान के लिए निकल गए. रास्ते में एक बाइक मिली. उसी पर सवार होकर हम दोपहर करीब 1 बजे मंदिर के पास पास पहुंचे. मंदिर तक सीधे वाहन नहीं जाता है. यहां तक पहुंचने के दो रास्ते हैं. कुछ भक्तों ने प्रतिबंध लगने के पहले सीढ़ियां बनाई थी, जो अब ऊबड़ खाबड़ हो गई हैं.

पर्वत की कंदराओं के बीच से बहता है जल: दूसरा रास्ता नीचे की तरफ से आता है. यहां से कुछ गांव के लोग आते हैं. हम ऊपर के रास्ते से होते हुए पहांड़ियो के बीच स्थित इस मंदिर तक पहुंचे. दूर से हम पानी गिरने की आवाज आने लगी थी. महादेव मंदिर के पहले ही पार्वती धारा नामक स्थान मिला. इस स्थान पर पर्वत की कंदराओं के बीच से जल बहकर आ रहा था. इसके बाद भैरों का स्थान है. इससे नीचे ही पेड़ की जड़ से पानी गिरता हुआ हमें दिखाई दिया. पानी की तेज धारा अनवरत यहां बह रही थी. गिरने के बाद एक कुंड में पानी जमा हो रहा था, लेकिन फिर जमीन में ही समा जाता. ऐसा लगता, जैसे सिर्फ शिव अभिषेक के लिए ही नर्मदा जी यहां प्रकट हुई हैं.

300 वर्ष पहले हुई थी खोज: यहां देखरेख करने वाले महंत हरि गिरी दास जी महाराज से बात की तो उन्होंने बताया कि उनकी उम्र 70 वर्ष है. वे बीते 30 वर्ष से इस स्थान पर भगवान महादेव का पूजन कर रहे हैं. उनके पहले महंत रामगिरी दास जी बाबा और उनके पहले धर्म गिरी दास जी बाबा यहां रहते थे. उन दोनों ही संतों की समाधि मंदिर स्थल से ऊपर की तरफ से स्थानीय ग्रामीणों ने बनाई हुई है. हरि गिरी दास बाबा ने बताया कि इस स्थान की खोज धर्म गिरी दास जी ने की थी. उन्हें स्वप्न में यह स्थान दिखाई दिया और वे यहां आ गए. तब यह जंगल एकदम बियाबान था. आजादी मिलने तक यह नवाब की रियासत थी. फिर जमीदारी में चली गई. करीब 50 साल पहले यहां भक्तों के आने का सिलसिला शुरू हुआ. जिसे अब वन विभाग ने रोक दिया है.

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नर्मदा ही है, यह दावा क्यों? जब हरि गिरी दास जी से पूछा कि, यह जलधारा नर्मदा की है, ऐसा दावा वे क्यों कर रहे हैं तो उन्होंने बताया कि उनके गुरू ने उन्हे यह बात बताई थी. शिवलिंग के ऊपर लगातार जल गिरता है. इसके बाद यहां एक मंदिर बनाया गया है. जिसमें नाग के साथ वाली मूर्ति स्थापित की गई है. वे बताते हैं कि अब भगवान शिव के साथ नर्मदा आरती भी करते हैं. उन्होंने अपने दावे की पुष्टि करने के लिए कहा कि एकमात्र मां नर्मदा है, जो पूर्व से पश्चिम की ओर बह रही है तो वे ही भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए उत्तर में बहकर आई हैं. उन्होंने बताया कि इस स्थान से करीब 14-15 किमी दूर तक कोई डेम या नदी नहीं है. इसके बाद जो डैम हैं वे नीचे की तरफ हैं.

केले की बनी है श्रृंखला: जंगलों में केले कम उगते हैं, लेकिन इस मंदिर के पास अच्छी खासी संख्या में केले के पेड़ उग आए हैं. पूरा का पूरा जंगल लगता है.यहां केले और आम के पेड़ हैं. इनको लेकर बाबा कहते हैं कि, यह जंगली केले हैं. इन्हें बीज डालकर उगाया नहीं जा सकता है. वे बताते हैं कि इन केलों से तैयार किए गए प्रसाद से और भगवान शिव से की गई प्रार्थना से लोगों को संतान प्राप्ति का सुख मिलता है.

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दर्शन के लिए खर्च करने पड़ते हैं 4000: कुछ साल पहले तक आम लोगों को नाम मात्र के शुल्क पर यहां दर्शन करने के लिए आने दिया जाता था, लेकिन अब यहां रिजर्व फॉरेस्ट है और सफारी का संचालन फॉरेस्ट डिपार्टमेंट द्वारा किया जाता है. अब 4000 रुपए खर्च करने के बाद ही यहां प्रवेश संभव है. इस रिजर्व फॉरेस्ट में बसे हुए दो गांव मल्खार और जावरा के लोगों को पास दिए गए हैं. वे इन पास को दिखाकर भीतर से आ जा सकते हैं. बाकी कोई भी आता है तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाती है.

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साल में दो बार लगता है मेला: इस महादेव मंदिर में वन विभाग के प्रतिबंध के बाद अब साल में केवल दो बार मेला लगता है. एक शिवरात्रि पर, जब हजारों की तादाद में जनता यहां दर्शन करने आती है और दूसरा मेला भूतड़ी अमावस्या पर लगता है. पास के गांव में रहने वाले कंचन नागर बताते हैं कि, इस मंदिर में पहले श्रावण सोमवार को भी लोग दर्शन करने जाते थे, लेकिन अब बंद कर दिया है.

एमपी में शिव का दुर्लभ मंदिर, नर्मदा कराती हैं महादेव का अभिषेक

भोपाल। करीब 300 वर्ष पहले इस स्थान की खोज संत परंपरा के एक महंत धर्मगिरी दास जी ने की थी. देश का एकमात्र स्थान है, जहां शिव का अभिषेक बरगद के वृक्ष से निकलने वाले जल से होता है. यह दृश्य देखकर भक्त ईश्वरीय वरदान कहते हैं. रातापानी जंगल के बीच स्थित इस महादेव मंदिर के बारे में जब ईटीवी भारत को जानकारी मिली तो शिवरात्रि के एक दिन पहले टीम मौके के लिए रवाना हुई. भोपाल से मंडीदीप और फिर वहां से दाहोद हाेते हुए हम जावरा गांव पहुंचे. यहां पर्वतों की कंदराओं से निकलकर और पेड़ों की जटाओं से बहकर मां नर्मदा शिवलिंग का अभिषेक करती हैं. इस घने जंगल में भगवान शिव की आराधना करने वाले महंत का दावा है कि, मां नर्मदा का ही यह जल है. इस स्थान पर जाने के लिए वन विभाग ने प्रतिबंध लगा दिया है.

ऊबड़-खाबड़ सीढ़ियां: यहां वन विभाग की चौकी थी, जिसके पार बिना अनुमति के जाना मना था. इस जगह से महादेव मंदिर की दूरी करीब 4.5 किमी दूर थी, तो पैदल ही उस स्थान के लिए निकल गए. रास्ते में एक बाइक मिली. उसी पर सवार होकर हम दोपहर करीब 1 बजे मंदिर के पास पास पहुंचे. मंदिर तक सीधे वाहन नहीं जाता है. यहां तक पहुंचने के दो रास्ते हैं. कुछ भक्तों ने प्रतिबंध लगने के पहले सीढ़ियां बनाई थी, जो अब ऊबड़ खाबड़ हो गई हैं.

पर्वत की कंदराओं के बीच से बहता है जल: दूसरा रास्ता नीचे की तरफ से आता है. यहां से कुछ गांव के लोग आते हैं. हम ऊपर के रास्ते से होते हुए पहांड़ियो के बीच स्थित इस मंदिर तक पहुंचे. दूर से हम पानी गिरने की आवाज आने लगी थी. महादेव मंदिर के पहले ही पार्वती धारा नामक स्थान मिला. इस स्थान पर पर्वत की कंदराओं के बीच से जल बहकर आ रहा था. इसके बाद भैरों का स्थान है. इससे नीचे ही पेड़ की जड़ से पानी गिरता हुआ हमें दिखाई दिया. पानी की तेज धारा अनवरत यहां बह रही थी. गिरने के बाद एक कुंड में पानी जमा हो रहा था, लेकिन फिर जमीन में ही समा जाता. ऐसा लगता, जैसे सिर्फ शिव अभिषेक के लिए ही नर्मदा जी यहां प्रकट हुई हैं.

300 वर्ष पहले हुई थी खोज: यहां देखरेख करने वाले महंत हरि गिरी दास जी महाराज से बात की तो उन्होंने बताया कि उनकी उम्र 70 वर्ष है. वे बीते 30 वर्ष से इस स्थान पर भगवान महादेव का पूजन कर रहे हैं. उनके पहले महंत रामगिरी दास जी बाबा और उनके पहले धर्म गिरी दास जी बाबा यहां रहते थे. उन दोनों ही संतों की समाधि मंदिर स्थल से ऊपर की तरफ से स्थानीय ग्रामीणों ने बनाई हुई है. हरि गिरी दास बाबा ने बताया कि इस स्थान की खोज धर्म गिरी दास जी ने की थी. उन्हें स्वप्न में यह स्थान दिखाई दिया और वे यहां आ गए. तब यह जंगल एकदम बियाबान था. आजादी मिलने तक यह नवाब की रियासत थी. फिर जमीदारी में चली गई. करीब 50 साल पहले यहां भक्तों के आने का सिलसिला शुरू हुआ. जिसे अब वन विभाग ने रोक दिया है.

महाशिवरात्रि 2023 : प्रसाद के नाम पर न करें भांग-गांजे का सेवन, विशेषज्ञों की सलाह- खतरनाक हैं नशीले पदार्थ, सेहत को हो सकता है नुकसान

नर्मदा ही है, यह दावा क्यों? जब हरि गिरी दास जी से पूछा कि, यह जलधारा नर्मदा की है, ऐसा दावा वे क्यों कर रहे हैं तो उन्होंने बताया कि उनके गुरू ने उन्हे यह बात बताई थी. शिवलिंग के ऊपर लगातार जल गिरता है. इसके बाद यहां एक मंदिर बनाया गया है. जिसमें नाग के साथ वाली मूर्ति स्थापित की गई है. वे बताते हैं कि अब भगवान शिव के साथ नर्मदा आरती भी करते हैं. उन्होंने अपने दावे की पुष्टि करने के लिए कहा कि एकमात्र मां नर्मदा है, जो पूर्व से पश्चिम की ओर बह रही है तो वे ही भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए उत्तर में बहकर आई हैं. उन्होंने बताया कि इस स्थान से करीब 14-15 किमी दूर तक कोई डेम या नदी नहीं है. इसके बाद जो डैम हैं वे नीचे की तरफ हैं.

केले की बनी है श्रृंखला: जंगलों में केले कम उगते हैं, लेकिन इस मंदिर के पास अच्छी खासी संख्या में केले के पेड़ उग आए हैं. पूरा का पूरा जंगल लगता है.यहां केले और आम के पेड़ हैं. इनको लेकर बाबा कहते हैं कि, यह जंगली केले हैं. इन्हें बीज डालकर उगाया नहीं जा सकता है. वे बताते हैं कि इन केलों से तैयार किए गए प्रसाद से और भगवान शिव से की गई प्रार्थना से लोगों को संतान प्राप्ति का सुख मिलता है.

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दर्शन के लिए खर्च करने पड़ते हैं 4000: कुछ साल पहले तक आम लोगों को नाम मात्र के शुल्क पर यहां दर्शन करने के लिए आने दिया जाता था, लेकिन अब यहां रिजर्व फॉरेस्ट है और सफारी का संचालन फॉरेस्ट डिपार्टमेंट द्वारा किया जाता है. अब 4000 रुपए खर्च करने के बाद ही यहां प्रवेश संभव है. इस रिजर्व फॉरेस्ट में बसे हुए दो गांव मल्खार और जावरा के लोगों को पास दिए गए हैं. वे इन पास को दिखाकर भीतर से आ जा सकते हैं. बाकी कोई भी आता है तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाती है.

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साल में दो बार लगता है मेला: इस महादेव मंदिर में वन विभाग के प्रतिबंध के बाद अब साल में केवल दो बार मेला लगता है. एक शिवरात्रि पर, जब हजारों की तादाद में जनता यहां दर्शन करने आती है और दूसरा मेला भूतड़ी अमावस्या पर लगता है. पास के गांव में रहने वाले कंचन नागर बताते हैं कि, इस मंदिर में पहले श्रावण सोमवार को भी लोग दर्शन करने जाते थे, लेकिन अब बंद कर दिया है.

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