भोपाल। देश में कुपोषण या अल्प पोषण एक गंभीर समस्या है. देश के दिल मध्यप्रदेश में भी कुपोषण का असर साफ देखा जा सकता है. मध्य प्रदेश के महिला एवं बाल विकास विभाग के 2016 से जनवरी 2018 के बीच के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में करीब 57000 बच्चों ने कुपोषण के चलते दम तोड़ दिया था, यदि वर्तमान स्थिति की बात करें तो कुपोषण की श्रेणी में मध्य प्रदेश का भारत में तीसरा स्थान है.
मध्यप्रदेश में कुपोषित बच्चों की स्थिति के बारे में ईटीवी भारत ने महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव अनुपम राजन से बात की तो उन्होंने बताया कि प्रदेश में 0 से लेकर 5 साल के करीब 72 लाख के आसपास बच्चे आंगनवाड़ी केंद्रों में रजिस्टर्ड हैं. जिन्हें योजनाओं के तहत पोषण आहार दिया जाता है और वहीं बच्चे का वजन कर यह तय किया जाता है कि बच्चा किस श्रेणी में कुपोषित है.
यदि कुपोषण की बात करें तो अति कम वजन वाले बच्चों की संख्या एक लाख 30 हजार के आसपास है. कुपोषण की श्रेणी में मध्य प्रदेश का भारत में तीसरा स्थान है. वहीं प्रदेश में श्योपुर, मंडला, शिवपुरी जैसे 12 जिले हैं, जिन्हें कुपोषण के दायरे में रखा गया है.
प्रमुख सचिव कुपोषण के कारणों के बारे में बताते हैं कि बच्चों में कुपोषण के कई कारण हैं-
- माता-पिता की कम उम्र में शादी हो जाना.
- परिवार में बच्चों की संख्या ज्यादा होना.
- शुद्ध पेयजल उपलब्ध ना होना.
- स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव.
- परिवार का गरीब होना.
माता-पिता में जागरूकता की कमी के कारण, बच्चों के लिए स्वस्थ आहार की जानकारी नहीं होना भी इसका एक कारण है. इन सभी कारणों से बच्चा कम वजन, ठिगनापन जैसे कुपोषण का शिकार हो जाता है. इस समस्या से निपटने के लिए बड़े स्तर पर अभियान चलाने की जरूरत है.