भोपाल। बीजेपी को एमपी में मिली बंपर जीत के बाद अब सवाल ये है कि इस जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा. बेशक ये मोदी मैजिक की जीत है, लेकिन बीजेपी के कैम्पेन में दरकिनार किए गए शिवराज की मेहनत से भी किनारा नहीं किया जा सकता. तो सवाल ये है कि पीएम मोदी की टीम 11 में जीते हुए किस चेहरे को सीएम का ताज मिलेगा या एमपी में फिर भाजपा और फिर शिवराज की ही कहानी रहेगी. बीजेपी में जिन दिग्गजों के नाम चल रहे हैं. सीएम पद की दौड़ में है...उनमें कितना है दम...और कहां कमजोर हैं.
शिवराज सिंह चौहान: एंटी इन्कमबेंसी के जिस दाग की वजह से बीजेपी ने शिवराज सिंह चौहान से किनारा किया था. उन्हीं शिवराज के चेहरे लाड़ली बहनों से की गई वोट की अपील गेम चेंजर साबित हो गई. एमपी में पीएम मोदी की सभाएं और शिवराज का मैराथन प्रचार एक पर एक ग्यारह का काम कर गया. तो शिवराज इस पद के सबसे मजबूत दावेदारों में से हैं. वजह ये है कि उन्होंने खुद को एक बार फिर साबित कर दिया है. वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागर कहते हैं शिवराज पार्टी सर्वमान्य चेहरा है. लोकसभा चुनाव सामने है, इस लिहाज से देखिए तो मुझे नहीं लगता कि पीएम मोदी के बाद जिस नेता की वजह से पार्टी को इतनी बंम्पर जीत मिली है, उन्हें हिलाने का फैसला पार्टी नहीं लेगी. राजनीतिक जानकार कहते हैं शिवराज की माइनस मार्किंग सिर्फ इसमें है कि वे पांचवी पारी के मुख्यमंत्री होंगे, जो पार्टी में अपनी तरह का एक रिकार्ड हो जाएगा. जाहिर है पार्टी के भीतर भी उनका कद इसके बाद बढे़गा.
ज्योतिरादित्य सिंधिया: शिवराज के बाद दूसरा नाम ज्योतिरादित्य सिंधिया का आता है. केन्द्रीय मंत्री के तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया का काम सराहनीय है. पिछले दिनों में उन्होंने बीजेपी के ही भीतर खामोश रहकर अपना अलग वजूद बनाए रखने की कोशिश की है. उन्होंने बीजेपी की रीति नीति के साथ खुद को ढाला है. ववादों में उलझे बगैर सियासत की है. सिंधिया की दबी ख्वाहिश है सीएम बनना ये किसी से छिपा नहीं.
कांग्रेस से अलगाव की बड़ी मजबूत वजह भी यही रही है, लेकिन क्या बीजेपी में ये राइट टाइम है. बेशक सिंधिया पानी में शक्कर की तरह बीजेपी में घुल मिल गए...लेकिन गुटबाजी की कोई लकीर बाकी नहीं रही, ये दावा कर सकते हैं. सिंधिया की सीएम पद की दावेदारी में सबसे बड़ा हर्डल यही है. उनके साथ एक पूरी बीजेपी चलती है और उन्हें आगे बढ़ाने का मतलब उस बीजेपी को मान्यता देना भी तो होगा.
नरेन्द्र सिंह तोमर: इसमें दो राय नहीं कि इस चुनाव से पहले तक मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के बाद नरेन्द्र सिंह तोमर सबसे सही चुनाव थे. एमपी के चुनाव में जीत के कर्णधारों में वे हमेशा से शामिल रहे. कम बोलने वाले ऐसे नेता जिन्होंने हमेशा पार्टी के फैसले को सिर माथे बैठाया. अनुशासन के भीतर रहे हमेशा और अब तक एक भी विवादित बयान नहीं दिया, लेकिन उनके बेटे के भ्रष्टाचार को लेकर उठी आंच ने एन चुनाव के बीच तोमर की छवि को आहत किया है और फिलहाल यही उनका सबसे बड़ा ड्रा बैक है.
प्रहलाद पटेल: सीएम पद की दौड़ में पिछड़ा वर्ग का होने की वजह से प्रहलाद पटेल भी मजबूत दावेदारी रखते हैं. गैर विवादित होने के साथ प्रहलाद पटेल राजनीतिक तजुर्बे से भी मजबूत दावेदार माने जा सकते हैं. जब सांसदों और केन्द्रीय मंत्रियों को चुनाव मैदान में उतारा गया तो उनमें मजबूत जीत केवल प्रहलाद पटेल की ही दिखाई दे रही थी. प्रहलाद पटेल सीएम पद के इच्छुक भी हैं. लेकिन सवाल ये है क्या वे बीजेपी हाईकमान की पहली च्वाईस बन पाएंगे.
कैलाश विजयवर्गीय: कैलाश विजयवर्गीय की काबिलियत सिर्फ ये नहीं कि वे पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री हैं. वे अमित शाह के करीबी दोस्त हैं. इंदौर एक नंबर से चुनाव लड़ने के दौरान उन्होंने शुरुआती प्रचार के दौरान ही ये बयान दिया था कि पार्टी ने उन्हें विधानसभा का चुनाव लड़ने नहीं भेजा है. पार्टी ने उनके लिए कुछ बड़ा सोच रखा है और मीडिया में इसका अनुवाद ये लगाया गया कि कैलाश विजयवर्गीय सीएम पद के मजबूत दावेदार हैं. बीजेपी की बंपर जीत का पूरा श्रेय कैलाश विजयवर्गीय पीएम मोदी को दे रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भटनागर कहते हैं कैलाश विजयवर्गीय तजुर्बे के लिहाज से पार्टी मे सीएम पद के दमदार दावेदार हो सकते हैं, लेकिन सामने खड़े लोकसभा चुनाव के मद्देनजर देखिए तो कैलाश विजयवर्गीय जननेता नहीं है. ऐसे नेता नही कि जिनके चेहरे पर पूरे एमपी में चुनाव लड़ा जा सके.
वीडी शर्मा: एमपी में बीजेपी की बंपर जीत में प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते वीडी शर्मा की भी हिस्सेदारी मानी जा सकती है, लेकिन ये पहला चुनाव है जब एमपी के आदर्श कहे जाने वाले संगठन का चुनाव केन्द्रीय से आए टीम ने संभाला. केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव से लेकर अश्विनी वैष्णव तक पूरे चुनाव की कमान संभाले रहे. सीएम पद के दावेदारो में एक नाम वीडी शर्मा का भी है. राजनीतिक जानकार कहते हैं वीडी शर्मा के सामने भी बड़ी चुनौती जननायक बनने की है स्वीकार्यता चाहिए पार्टी मे भी पार्टी के भीतर भी.