भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का बार-बार दिल्ली जाना सियासी पंडितों को आसानी से हजम नहीं हो रहा है, इस चक्कर से विपक्ष का तो हाजमा ही खराब हो गया, जब विपक्ष ने ट्विटर वाली गोली गटकी, तब कहीं उसे आराम मिला, पर उसका आराम सत्ता पक्ष के लिए हराम हो गया. पिछले 40 दिनों में 5 बार एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दिल्ली की दौड़ लगा चुके हैं, बाहर तो ये बात उड़ी कि शिवराज सिंह प्रदेश की आर्थिक हालात सुधारने के लिए दिल्ली जा रहे हैं, लेकिन विपक्ष का दावा है कि शिवराज अपनी कुर्सी बचाने के लिए बड़े दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं और एक हफ्ते के अंदर ही मध्यप्रदेश को नया मुख्यमंत्री मिल जाएगा.
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मध्यप्रदेश में नये मुख्यमंत्री की आहट,
— MP Congress (@INCMP) September 21, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
—शपथ ग्रहण समारोह अगले सप्ताह संभव।
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अब एमपी की बारी! आखिर सीएम शिवराज के सामने ही शाह ने क्यों की इस नेता की तारीफ
विपक्ष के दावे से पहले 18 सितंबर को गोंडवाना साम्राज्य के अमर शहीद शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शामिल हुए थे, तब मंच से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह शाह की तारीफ में खूब कसीदे पढ़े थे, जब शाह जबलपुर सांसद राकेश सिंह के निवास पर दोपहर का भोजन करने पहुंचे थे, तब उस भीड़ में शिवराज सिंह किसी अजनबी की तरह नजर आए थे क्योंकि वहां पहुंचते ही राकेश सिंह वहां मौजूद विधायकों का शाह से परिचय कराने लगे. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सामने ही शाह ने शानदार आयोजन के लिए राकेश सिंह की खुले मन से तारीफ कर दी, बस यही बात शिवराज को खटक गई. इसके बाद मुख्यमंत्री प्रशासनिक घोड़ों की लगाम कसने लगे.
ऐसा नहीं है कि बीजेपी पहली बार मुख्यमंत्री बदल रही है, पहले भी मध्यप्रदेश में दो-दो बार कार्यकाल पूरा होने के पहले ही मुख्यमंत्री बदल चुकी है, साल 2003 में प्रचंड बहुमत हासिल कर कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने वाली उमा भारती को बीच में ही मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था, उमा भारती 8 दिसंबर 2003 से 23 अगस्त 2004 तक मुख्यमंत्री रहीं, उनके बाद बाबूलाल गौर को एमपी की कमान मिली, पर वह भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये. गौर 23 अगस्त 2004 से 29 नवंबर 2005 तक मुख्यमंत्री रहे, इसके बाद शिवराज सिंह को कमान मिली, कमान मिलते ही शिवराज सिंह कभी सियासी लगाम को ढीली ही नहीं पड़ने दिये.
तीन राज्यों में मुख्यमंत्री बदले जाने के बाद आगे तीन और राज्य मध्यप्रदेश, हरियाणा और त्रिपुरा में सीएम बदलने की चर्चा जोरों पर है. एमपी कांग्रेस ने तो एक हफ्ते में सीएम बदलने को लेकर ट्वीट तक कर दिया है. शिवराज का बार-बार दिल्ली जाना, अमित शाह का शिवराज के सामने राकेश सिंह की तारीफ करना और एमपी कांग्रेस का बार-बार ट्वीट करना. इन सब परिस्थितियों का आंकलन किया जाये तो कुछ हद तक ये अफवाह हकीकत सी लगती है, पर शिवराज भी सियासत के मझे हुए खिलाड़ी हैं, जो आसानी से बाजी हारने वालों में नहीं हैं.
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मप्र के मुख्यमंत्री भी राजभवन पहुँचे,
— MP Congress (@INCMP) September 19, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
—शिवराज के इस्तीफ़े की पटकथा लिखना शुरू।
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उत्तराखंड, कर्नाटक के बाद गुजरात में सीएम बदलने के बाद चर्चा है कि अब बीजेपी शासित दो राज्यों में बदलाव होगा, साथ ही कुछ राज्य भी इसी कतार में हैं. मौजूदा समय में बीजेपी की 16 राज्यों में खुद या गठबंधन की सरकार है. 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी नहीं चाहती कि जनता के बीच नेतृत्व के प्रति नाराजगी रहे. अभी तक बीजेपी के सभी मुख्यमंत्री केंद्रीय नेतृत्व यानी अमित शाह और नरेंद्र मोदी की पसंद के हिसाब से बनते रहे हैं. गुजरात के नए सीएम भूपेंद्र पटेल और कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई को भी अमित शाह के करीबी होने का फायदा मिला है. माना जा रहा है कि इस बदलाव के जरिये आलाकमान गुटबाजी पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रहा है.
गुजरात में भी पूर्व सीएम विजय रूपाणी और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल के बीच अनबन चल रही थी. कर्नाटक में भी पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा और पार्टी के संगठन महासचिव बीएल संतोष के बीच खींचतान जगजाहिर हो चुकी थी. उत्तराखंड में कांग्रेस से भाजपा में आए नेता भी हमेशा असंतोष के स्वर बुलंद करते रहते हैं. अभी पार्टी के संगठन महासचिव बी एल संतोष हैं. बीजेपी में संगठन महासचिव अध्यक्ष के बाद दूसरा सबसे ताकतवर पद है. चर्चा यह है कि बीएल संतोष उन सभी राज्यों में नेतृत्व बदलने की वकालत करते हैं, जहां सीएम के कारण पार्टी की छवि कमजोर होती है या सीएम सरकार पर नियंत्रण नहीं रखते हैं.
बीजेपी में भी हाई कमान कल्चर शुरू हो गया है, नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय स्वीकार्यता के कारण बीजेपी में हाईकमान की पसंद और नापसंद मायने रखती है. बताया यह जा रहा है कि इनके चुनाव में जातीय समीकरण और केंद्रीय नेतृत्व का करीबी होना एक अहम फैक्टर हैं, मगर नए सीएम को कुर्सी पर बैठाने से पहले पार्टी टास्क दे रही है. आलाकमान साफ तौर से बता रही है कि उन्हें या तो एंटी कंबेंसी से निपटने के लिए सारे उपाय करने होंगे या फिर पद छोड़ने के लिए तैयार रहना होगा. इसके अलावा उन्हें विवादित बयान और फैसलों से भी दूर रहना होगा.