भोपाल। देश में आरक्षण केवल उन्हीं लोगों को मिलना चाहिए जिनकों उसकी जरूरत है. जो लोग पहले ही आरक्षण का लाभ ले चुके हैं उनको खुद से आरक्षण से हटना चाहिए. यह मानना है मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष गिरीश गौतम का. गौतम ने कहा कि विंध्य प्रदेश बने ये सभी चाहते हैं लेकिन इसकी मांग करने वालों के तरीके से उनकी असहमति है. विधानसभा अध्यक्ष अपने विधानसभा क्षेत्र देवतालाब में 24 अक्टूबर से साइकिल यात्रा पर निकल रहे हैं. इस दौरान वे चौापाल लगाकर ऑन स्पॉट लोगों की समस्याओं का निराकरण करेंगे.
विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम से खास बातचीत की ब्यूरो चीफ विनोद तिवारी ने
सवाल: आप पर बहुत सी जिम्मेदारियां है, सबसे बड़ी जिम्मेदारी विधायी संस्था के प्रमुख की है, वर्तमान में क्या स्थिति बन रही है?
जवाब: सबसे बड़ी जिम्मेदारी हमारे विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं की है जिनके द्वारा मैं चुनकर विधानसभा में आया और उन्हीं के कारण विधानसभा स्पीकर का पद मिला है. सबसे बड़ी पहली जिम्मेदारी और पहला अधिकार क्षेत्र की जनता का है. विधानसभा के अध्यक्ष को मैं एक जिम्मेदारी समझता हूं. इसके लिए जिम्मेदारी का निर्वहन कैसे कर सकूं कि वो कानून कायदे के भीतर हो, परंपरा से विपरीत न जाने पाए और जिस कुर्सी पर मुझे बैठाया गया उसमें आज तक जितने लोग बैठे होंगे, उनको यह न देखना न पड़े कि हमारे बाद बैठने वाला कहीं कोई त्रुटि कर दी, जिससे कि उस कुर्सी का अपमान हो तो उसको भी बचाने का प्रयास करता हूं.
सवाल: आपने जब विधानसभा अध्यक्ष का पद संभाला तब से कोरोना काल रहा तो जैसे सदन चलना चाहिए था वह चल नहीं पाया. आपकी प्रतिभा के प्रदर्शन को लोग देख नहीं पाए, लेकिन पहले जो लोग थे उनके बारे में ये बातें आईं कि उन्होंने सत्तापक्ष का पक्ष लिया तो आप किस तरह से सदन को चलाएंगे जब आगे ऐसी स्थिति बनेगी?
जवाब: मैंने भी 20 से 26 दिन सदन चलाया है और असहज स्थितियां हुईं है उनको निराकरण करने का प्रयास मैनें किया है. ये जरूरी नहीं है कि किसी को भी पांच साल मिले. क्षमता प्रदर्शन करना है तो कम समय में भी किया जा सकता है. परीक्षा में भी उत्तर लिखने के लिए तीन घंटे का ही समय मिलता है. तीन घंटे में ही उत्तीर्ण होना है इसके लिए साल भर का समय जरूरी नहीं है. मैंने इस बात का प्रयास किया है कि सामंजस्य कैसे हो, विधानसभा कैसे चले, विधानसभा में कैसे अच्छी बहस हो सके, कटुता का अभाव हो, सदभाव के साथ संवादों के माध्यम से रिजल्ट निकले, जिससे जनता का फायदा हो. हमारा फोकस यही है. जिस आसंदी पर बैठा हूं, उस पर लांछन न लगे तो जिम्मेदारी ज्यादा है. जिस पार्टी से मैं चुनकर आया हूं उसी पार्टी की सरकार है. स्वाभाविक है कि सरकार को संकट में डालने के लिए थोड़ी बैठा हूं कि सरकार संकट में आए और इसलिए भी नहीं बैठा हूं कि सरकार प्रतिपक्ष की बात न सुने. प्रतिपक्ष के माननीय सदस्यों के सम्मान को और उनकी प्रतिष्ठा को आंच न आए, इसका ध्यान रखना मेरी जिम्मेदारी है.
सवाल: माननीयों के सम्मान और उनके वचनों का संरक्षण करना आपकी जिम्मेदारी है?
जवाब: सभी माननीय सदस्यों के संरक्षण की जिम्मेदारी मेरी है. विधानसभा के अंदर उनके अधिकारों के संरक्षण की. वाक स्वांत्र्य का अधिकार, प्रश्न पूछने का अधिकार, ध्यानाकर्षन लाने का अधिकार सभी अधिकारों के उपयोग की सुविधा मिले इसके पूरे प्रयास करता हूं.
सवाल: अधिकारों के बीच में एक बड़ा सवाल ये है कि माननीयों ने अभी तक अपनी संपत्तियों का ब्यौरा नहीं दिया है. ये बड़ी गंभीर बात है?
जवाब: इसको उस तरह से मत लीजिए, गंभीर कहना उचित नहीं होगा. हम संस्था में आए हैं जिसमें एक संकल्प पारित हुआ, सबने तय किया कि हमें अपनी संपत्ति का ब्यौरा देना है पर हमने कानून नहीं बनाया है. नैतिकता के आधार पर देना है. हम इसे गंभीर इसलिए नहीं मानते कि हर विधायक अपना इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करता है तो संपत्तियों का विवरण देता है. आजकल सारा इनकम टैक्स रिटर्न पब्लिक डोमेन में है. कोई भी जानकारी तत्काल मिल रही है, पता चल जाता है कि किसकी कितनी संपत्ति है.
सवाल: सदन तो परम्पराओं से चलता है, बहुत सारी चीजें नहीं है लेकिन एक परम्परा बनी हुई है तो माननीयों को इसका निर्वहन करना चाहिए कि नहीं?
जवाब: बिल्कुल करना चाहिए क्योंकि हमने ही तय किया है. आखिरकार सत्र के दौरान विधानसभा में ये प्रस्ताव पास हुआ है. सबकी सहमति से पास हुआ है लेकिन कानून हमने नहीं बनाया है, करना चाहिए इसमें दो राय नहीं है लेकिन कई बार ऐसा लगता होगा कि हमने इनकम टैक्स भर दिया है तो वहां से आप निकाल लीजिए लेकिन हमें तो विधानसभा के पटल पर जानकारी चस्पा करना होती है. इसमें कोई बुराई नहीं है, इसमें अपना ही नाम होता है.
सवाल: माननीयों की आड़ में अफसरशाही के लोग भी अपनी संपत्ति का ब्यौरा नहीं देते हैं, काफी अफसर है जिन्होंने सरकार को अपनी संपत्ति का ब्यौरा नहीं दिया है. वो कहते हैं कि जब माननीय नहीं दे रहे हैं तो हम क्यों दे, इससे गलत संदेश जा रहा है?
जवाब: कानून बनाने का प्रतिष्ठान तो हम ही हैं, कानून बनाने वाले लोग ही कानून का पालन नहीं करेंगे तो बतौर उदाहरण हमारी अच्छाई का नहीं दिया जाएगा लेकिन बुराई का उदाहरण तो देगा ही.
सवाल: जिस पार्टी से आप हैं, उसके बड़े विधायक काफी लंबे समय से विंध्य प्रदेश की मांग कर रहे हैं. विंध्य प्रदेश बनना चाहिए कि नहीं बनना चाहिए, उसको लेकर आपके क्या विचार हैं?
जवाब: विंध्य प्रदेश का विरोधी कौन हो सकता है, यदि माननीय अटलजी ने छोटे प्रदेशों का कांसेप्ट देकर ये कहा कि छोटे प्रदेशों से विकास ज्यादा होता है तो इसमें बुराई क्या है. हम तो केवल तरीके से असहमत हैं. तरीका जिनका आप इशारा कर रहे हैं, वे कहते हैं अब हम विंध्य प्रदेश बना रहे हैं. ऐसा प्रदर्शन हो रहा कि उनके अलावा बाकी सब जीरो हैं जो करेंगे वो करेंगे. मैं यहीं पर असहमत हूं. विंध्य प्रदेश को बनाने वाले लोग इस धरती पर नहीं है जिन्होंने विंध्य प्रदेश के मर्जर के खिलाफ आंदोलन किया था, हमने तो अपनी विधायकी तक नहीं छोड़ी अपनी वार्ड मेंबरी तक नहीं छोड़ी, उन्होंने तो अपना जीवन छोड़ दिया था, गंगा चेताली तो इसी बात को लेकर शहीद हो गए थे कि विंध्य प्रदेश टूटने न पाए, हम उनको एक भी मंच पर याद तक नहीं करते हैं और उनका चित्र तक नहीं लगाते हैं. हम अपने उस इतिहास को नहीं देखेंगे तो वर्तमान में हमारी लड़ाई ठीक नहीं होगी. जब विंध्य प्रदेश टूट रहा था तो जिन लोगों ने इसका विरोध किया तो मैं कहता हूं कि हमें विंध्य प्रदेश बचाओ को भी याद रखना होगा. हमको शुरुआत 56 से करना चाहिए. मुझे लगता है कि तरीका ठीक नहीं है.
सवाल: विंध्य प्रदेश की एक और खामी दिख रही है कि प्राकृतिक रूप से संपन्न होने के बावजूद रोजगार के मामले में पिछड़ा है, जैसे मालवा की तरक्की हुई है वैसी विंध्य की नहीं हुई.
जवाब: इंडस्ट्री का जो आधुनिकीकरण हुआ है, मेनपावर नहीं है, मशीन पावर है, इसलिए नौजवानों को रोजगार नहीं मिलता है. मनोवृत्ति का फर्क है. मालवा में मनोवृत्ति अलग है और विंध्य में मनोवृत्ति अलग. मालवा में ये है कि लोगों को रोजगार मिले ये जरूरी नहीं कि सरकारी नौकरी मिले. हमारी तरफ रोजगार मिले पर सरकारी नौकरी के जरिए. मनोवृत्ति का फर्क हो गया. प्राइवेट नौकरी में 25 हजार की नौकरी की जगह यदि 5 हजार की सरकारी नौकरी मिले तो उसका प्रिफर करता है. ये कल्चर है विंध्य की. मानसिक मनोवृत्ति है इसलिए हमारे यहां रोजगार का विकास उस तरह का नहीं हुआ है. नहीं तो तमाम तरह के लोग काम कर रहे हैं और पापुलरिटी भी पा रहे हैं और लोगों को रोजगार भी सृजन कर रहे हैं. दूसरी बात ये है कि विकास के क्षेत्र में जहां तक देखें तो मालवा की तुलना हम इसलिए नहीं कर सकते कि हमने जब विकास की शुरुआत की तब तक वो विकसित हो चुके थे. वो तो विकसित में अपने चार चांद लगा रहे हैं और हमें तो अभी विकसित होना है. इंफ्रास्ट्र्क्चर खड़ा कर पाए क्या, एयर कनेक्टिविटी है क्या, हम लाख अस्पताल बना दें हमारे पास डॉक्टर नहीं होंगे तो हम क्या कर सकते हैं, हमारे पास सुविधा ही नहीं है. हम डॉक्टर को रीवा नहीं बुला सकते हैं. कनेक्टिविटी के कारण हमें बहुत परेशान हो रही है. हमने नहरों में काम किया, सिंचाई में काम किया. बिजली में एशिया का सबसे बड़ा सोलर पावर हब हमसे बड़ा कोई नहीं है. ये भी डेवलपमेंट के भीतर है. सिंगरौली में हमसे बड़ा कोयला उत्पादक कोई नहीं है.
सरकार का दावा- खाद की कोई कमी नहीं, सच यह है कि किसानों को खाद की जगह मिल रही लाठियां
सवाल: ये सारी चीजे हैं इसके बाद भी विंध्य को जैसे आगे आना चाहिए था वो आगे नहीं आ पाया है?
जवाब: मैंने ये कारण बताया न, हमारे यहां रोजगार का कांसेप्ट अलग है.
सवाल: आपके इलाके में साइकिल यात्रा होने वाली है क्या उद्देश्य है इसका?
जवाब: मैं ही इस साइकिल यात्रा को कर रहा हूं. भाजपा विधानसभा क्षेत्र देवतालाब इसका आयोजन कर रहा है. मैं खुद चलाउंगा. मैं पहली बार ऐसा नहीं कर रहा हूं. पहले भी चलाया है. जनसंपर्क का माध्यम है मेरा. लोगों के बीच में जाना, उनकी बातें सुनना, चौपाल लगाना, अधिकारियों को बुलाना वहीं पर समस्यााओं निराकरण करने का प्रयास करना, ये हमेशा से आदत रही है. इसलिए स्पीकर बनने के बाद भी उस आदत को नहीं छोड़ना है. ऐसा करके देखना है.
सवाल: इस समय महंगाई एक राष्ट्रीय मुद्दा बना हुआ है. पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दामों के चलते आम आदमी परेशान है, खाद की किल्लत है, कैसे आम आदमी की समस्याएं दूर होगी. आप क्या सोचते हैं, सरकार को क्या करना चाहिए?
जवाब: इसमें दो-तीन तरह से देखा जाना चाहिए. क्रूड आयल क्या है, उसके रेट कैसे बढ़े. कंट्रोल पावर नहीं है. सरकारों ने कंट्रोल छोड़ दिया है. 35 डॉलर से बढ़कर अब यह 88 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है. स्वाभाविक है कि यह परिवर्तन होगा. उससे जनित चीजें महंगी होंगी. डीजल महंगा होगा तो ट्रक का भाड़ा महंगा होगा. किसी चीज का दाम बढ़े तो जनता को असुविधा तो होती ही है. एक बार हमारी आदत हो गई तो रेट बढ़ने में असुविधा तो होती है.
सवाल: जेब की आमदनी तो उतनी नहीं बढ़ी है.
जवाब: जेब की आमदनी क्यों नहीं बढ़ी मैं एक उदाहरण देता हूं. मेरे साथ काम करने वाले रिटायर्ड फौजी हैं. उनकी पेंशन 6700 रुपए थी मोदी जी आए तो वो अब 28 हजार रुपए पाते हैं. एक मास्टर जो 6 हजार रुपए पेंशन पाता था इस समय 32 से 35 हजार रुपए पेंशन पाते हैं. जो मास्टर 13-14 हजार रुपए वेतन पाते थे वो अब 75-80 हजार रुपए तक वेतन पाते हैं. दैनिक मजदूरी और प्राइवेट सेक्टर में काम करने वालों का नहीं बढ़ा है तो उनकी असुविधा होती है.
उपचुनाव से दिग्विजय की दूरी बनी चर्चा का विषय, प्रचार में भी नहीं आ रहे नजर, बीजेपी ने कसे तंज
सवाल: मध्य प्रदेश में चार सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, तीन विधानसभा के और एक लोकसभा का. आप एक राजनीतिक व्यक्ति भी है. क्या परिणाम संभावित हैं आपकी नजर में,क्या होना चाहिए?
जवाब: होना तो ये चाहिए कि भाजपा को ही जीतना चाहिए लेकिन उसके बारे में मेरी कोई ओपिनियन नहीं है. मैंने देखा भी नहीं है. क्या स्थितियां हैं उसके बारे में जानकारी नही हैं तो मैं कैसे आकलन कर सकता हूं. मेरा कोई व्यक्तिगत आकलन नहीं है और मुझे इस पर कुछ करना भी नहीं है.
सवाल: एक राजनीतिक विषय कल आया, उत्तरप्रदेश में प्रियंका गांधी ने 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने की बात कही है. मध्य प्रदेश में भी यही स्थिति बनेगी क्योंकि बीजेपी ने संकल्प में ये कहा था कि अपने संगठन में 33 फीसदी महिलाओं को पदाधिकारी बनाएंगे, विधानसभा में भी ऐसा नहीं हुआ.
जवाब: संगठन में महिलाओं को भागीदारी सुनिश्चित कर दी गई है. विधानसभा में पार्टी का संकल्प नहीं था. पार्टी के संकल्प के चलते संगठन और पंचायतों में महिलाओं को स्थान दिया गया है. प्रियंका जी ने जो कहा कि वह महिला होने के नाते कहा और दूसरा इसलिए कहा कि जब कुछ नहीं है किसी के पास तो कुछ भी बांट रहे हैं. उनको 160 उम्मीदवार तक नहीं मिलेगे. वो ये समझती है कि उनके ऐसा करने से महिलाओं को पूरा चंक उनकी तरफ आ जाएगा, ऐसा उनका सोचना होगा. ये सोच धरातल पर जब आएगी तो पूरी तरह से फेल हो जाएगी.
आदिवासियों को अपना बनाने आएंगे पीएम मोदी! 15 नवंबर को भोपाल में जनजातीय गौरव दिवस कार्यक्रम
सवाल: रिजर्वेशन का एक बड़ा इश्यू है, चाहे वो सरकारी नौकरी का मामला हो, चाहे विधायिका का मामला हो, चाहे पंचायत चुनाव का हो, चाहे नगर परिषद के चुनाव का मामला हो, सबमें रिजर्वेशन एक बड़ा मुद्दा बन गया है. प्रमोशन में भी एक मुद्दा है. आपकी नजर में रिजर्वेशन कैसा होना चाहिए क्योंकि परिस्थितियां बहुत बदली हैं?
जवाब: 70 साल पहले आरक्षण की जो व्यवस्था बनी, जिस समाज के लिए यह व्यवस्था बनी उस समाज का उत्थान हम 70 सालों में कर नहीं पाए. जब संविधान बना तो आरक्षण आजीवन के लिए तो नहीं था. अंबेडकर का उद्देश्य था कि ऐसा आरक्षण कर दो कि समाज बराबरी पर आ जाए, तो आगे आरक्षण की आवश्यकता न पड़े, पर वो हम नहीं कर पाए. कारण चाहे जो भी रहे हों, हम नहीं कर पाए, इसलिए आरक्षण की आज भी आवश्यकता है. आरक्षण होना चाहिए. आरक्षण कई मायनों में इस आधार पर देखेंगे नजरिए से कि गरीब वर्ग फिर कहां जाए. जिस वर्ग को आरक्षण दिया है तो आरक्षण का क्या हो रहा है, एक बार कोई आईएएस बन गया तो आरक्षण के नाम पर उसके लड़के को भी आईएएस बन गया तो बाकी उस वर्ग के लोगों का क्या हुआ. होना ये चाहिए कि जिसको एक बार मिल गया तो कम से कम उसे तो आरक्षण खुद त्याग देना चाहिए लेकिन क्या कोई मानने को तैयार है. उनकी तुलना गांव वाले बच्चों से तो हो नहीं सकती, कान्वेंट से पढ़कर आया फिर भी आरक्षण है उसको. मेरी व्यक्तिगत राय है कि ऐसे लोगों को स्वत आगे बढ़कर आरक्षण का लाभ नहीं लेना चाहिए.