भोपाल। अक्टूबर आते ही त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है. इन्हीं त्योहारों में से एक धनतेरस है, जो कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है. धनतेरस को धनत्रयोदशी भी कहते हैं. इस वर्ष धनतेरस दो नवंबर को है. इस दिन सोना, चांदी, आभूषण, पीतल या कांसे के बर्तन आदि की खरीदारी के अलावा लोग घर, वाहन, प्लॉट आदि भी खरीदते हैं. धनतेरस पर विशेष कर पीतल के बर्तन (brass utensils on Dhanteras) या फिर लक्ष्मी और गणेश अंकित चांदी के सिक्के खरीदने की परंपरा है. आइये जानते हैं धनतेरस पर चांदी और पीतल के बर्तन क्यों खरीदते हैं ?
पीतल के बर्तन खरीदने का कारण
पौराणिक कथा के अनुसार, सागर मंथन के समय समुद्र से भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. भगवान धन्वंतरि (Lord Dhanvantari ) को देवताओं का वैद्य भी कहा जाता है. उनकी कृपा से व्यक्ति रोगों से मुक्त होकर स्वस्थ रहता है. भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के आचार्य और माता लक्ष्मी के भाई भी हैं क्योंकि माता लक्ष्मी भी समुद्र मंथन से निकली थीं. भगवान धन्वंतरि जब प्रकट हुए थे, तो उनके हाथ में कलश था. भगवान धन्वंतरि को पीतल धातु प्रिय है, इसलिए धनतेरस पर पीतल के बर्तन या पूजा की वस्तुएं खरीदी जाती हैं.
घर में पीतल के बर्तन होते हैं लाभकारी
पीतल खरीदने से घर में आरोग्य, सौभाग्य और स्वास्थ्य की दृष्टि से शुभता आती है. चांदी कुबेर की धातु है. इस दिन चांदी खरीदने से घर में यश, कीर्ति, ऐश्वर्य और संपदा में वृद्धि होती है. पीतल गुरु की धातु है. यह बहुत ही शुभ है. बृहस्पति ग्रह की शांति करनी हो तो पीतल का इस्तेमाल किया जाता है. किचन में जितना अधिक पीतल होगा उतना शुभ माना जाता है. आप जिस धातु के बर्तन में खाना खाते हैं उसके गुण भोजन में स्वत: ही आ जाते हैं. आयुर्वेद में पीतल के बर्तन में भोजन करना, तांबे के बर्तन में पानी पीना और लोहे या मिट्टी के बर्तन में खाना पकाना अत्यंत ही लाभकारी होता है.
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि धनतेरस पर इन वस्तुओं की खरीदारी करने से शुभता बढ़ती और व्यक्ति की आर्थिक उन्नति होती है. भगवान धन्वंतरि को धन, स्वास्थ्य और आयु का देवता माना जाता है. उनको चंद्रमा के समान भी माना जाता है. चंद्रमा को शीतलता का प्रतीक मानते हैं. धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से संतोष, मानसिक शांति और सौम्यता प्राप्त होती है.