ETV Bharat / state

'महाराज' की अग्निपरीक्षा: सिंधिया बनेंगे 'किंगमेकर' या गंवा देंगे अपनी प्रतिष्ठा - Jyotiraditya Scindia became MP in 2002

28 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में 16 सीटें ग्वालियर चंबल से आती हैं, जो ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ मानी जाती हैं. ऐसे में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए सिंधिया की प्रतिष्ठा तो दांव पर लगी है. उनके सामने अपना गढ़ बचाने की भी चुनौती है. सिंधिया का पूरा राजनीति भविष्य उपचुनाव के परिणाम तय करेंगे.

Jyotiraditya Scindia
ज्योतिरादित्य सिंधिया
author img

By

Published : Nov 3, 2020, 6:04 PM IST

Updated : Nov 10, 2020, 6:20 AM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव बेहद अहम माने जा रहे हैं, राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ कई दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है. 10 नवंबर को नतीजें आने के बाद यह तय होगा कि मध्यप्रदेश में शिवराज कि सरकार सत्ता में रहेगी या फिर एक बार सत्ता परिवर्तन होगा और कमलनाथ की वापसी होगी, जिन 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है, उनमें से 16 सीटें ग्वालियर चंबल संभाग से आती हैं, ये इलाका ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ माना जाता है. ऐसे में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए सिंधिया के सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती है, इसके साथ ही इन उपचुनावों पर उनकी प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है.

ज्योतिरादित्य सिंधिया

ग्वालियर चंबल की सीटें सत्ता की चाबी मानी जाती हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में इस इलाके की 34 में से 27 सीटें कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के दम पर जीती थी. अब जब सिंधिया बीजेपी में शामिल हो गए हैं, तो उनके साथ आए समर्थकों के लिए इन सीटों को जीतना और भी महत्वपूर्ण हो गया है. ऐसे में बीजेपी सिंधिया का चेहरा आगे रखकर ही ग्वालियर चंबल की 16 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. फिलहाल ये तो 10 नवंबर को नतीजें आने पर ही पता चलेगा कि सिंधिया अपनी प्रतिष्ठा बचाने के साथ ही अपने साथ दलबदल कर आए नेताओं को फिर से विधानसभा पहुंचा पाते हैं या नहीं.

ज्योतिरादित्य सिंधिया का राजनीतिक सफर

  • ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 1993 में हावर्ड यूनिवर्सिटी से इकोनमी में डिग्री ली.
  • पढ़ाई खत्म करने के बाद सिंधिया ने अमेर‍िका में लगभग साढ़े चार साल काम किया.
  • 12 दिसंबर 1994 में ज्योतिरादित्य की प्रियदर्शनी राजे से शादी हुई थी.
  • प्रियदर्शनी बड़ौदा के गायकवाड़ घराने की राजकुमारी हैं. वो दुन‍िया की 50 सबसे खूबसूरत महिलाओं में शुमार की जा चुकी हैं.

ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति में एंट्री

  • मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया घराने की अहम भूमिका रही है. ज्योतिरादित्य सिंधिया तीसरी पीढ़ी के नेता हैं. सिंधिया परिवार में राजनीति की शुरुआत उनकी दादी विजयाराजे सिंधिया से हुई थी. फिर पिता माधवराव सिंधिया, बुआ यशोधरा राजे सिंधिया, वसुंधरा राजे सिंधिया भी राजनीति में अहम पद हासिल कर चुकी हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति में एंट्री उनके पिता के निधन के बाद हुई.
  • ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया का देहांत 25 जनवरी 2001 को हुआ था. इसके 8 महीने बाद ही 30 सितम्बर 2001 को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया की मृत्यु हो गई थी.
  • 2001 में पिता माधवराव सिंधिया की मौत के बाद गुना की सीट खाली हुई थी. तब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस में पिता की जगह ली.
  • 2002 में जब गुना सीट पर उपचुनाव हुए, तो ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद चुने गए.
  • मई 2004 में 14वीं लोकसभा चुनाव हुआ और ज्योतिरादित्य सिंधिया फिर से गुना से सांसद चुने गए.
  • इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया को 2007 में केंद्रीय मंत्री (केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री) का पद मिला.
  • 2009 में 15वीं लोकसभा में लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना से फिर से चुने गए. जिसके बाद सरकार में वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री बने. सिंधिया को नवंबर 2012 में ऊर्जा राज्य मंत्री का पद दिया गया.
  • लोकसभा चुनाव 2014 में सिंधिया फिर से गुना से सांसद बने, लेकिन 2019 में सिंधिया केपी यादव से 1,25,549 वोट से चुनाव हार गए.

ज्योतिरादित्य संधिया और कमलनाथ के बीच कैसे शुरू हुई तकरार

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के दम पर 15 सालों का वनवास खत्म करके प्रदेश की सत्ता में वापसी की और कमलनाथ ने मुख्यमंत्री की शपथ ली, इसके साथ ही कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने रहे. यहीं से सिंधिया और कमलनाथ के बीच मनमुटाव शुरू हो गया.

विधानसभा चुनाव के छह महीने बाद ही लोकसभा चुनाव में मिली हार सिंधिया के लिए दूसरा बड़ा झटका साबित हुआ. इसके बाद सिंधिया अपनी ही पार्टी में साइड लाइन महसूस करने लगे, राज्यसभा चुनाव के दौरान कमलनाथ और सिंधिया में मनमुटाव बढ़ गया और सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ने का फैसला कर लिया.

ज्योतिरादित्या सिंधिया बीजेपी में शामिल

सिंधिया ने कमलनाथ सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरने की धमकी दी थी. तब कमलनाथ ने कहा था की, 'सिंधिया को सड़कों पर उतरना है, तो उतर जाएं. इसके बाद नवंबर 2019 में सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी के सभी पदों को छोड़कर दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन उनकी ये कोशिश भी नाकाम रही. जिसके बाद सिंधिया लगातार पार्टी विरोधी भाषण देने लगे और 11 मार्च को उन्होंने भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन कर ली. उनके साथ ही उनके समर्थक और 22 विधायकों ने भी पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था. मध्यप्रदेश में उपचुनाव की स्थिति बनी है. सिंधिया की बगावत के बाद मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार गिरी और फिर से शिवराज सिंह सत्ता में वापस आ गए. शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनते ही बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा भेज दिया.

भोपाल। मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव बेहद अहम माने जा रहे हैं, राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ कई दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है. 10 नवंबर को नतीजें आने के बाद यह तय होगा कि मध्यप्रदेश में शिवराज कि सरकार सत्ता में रहेगी या फिर एक बार सत्ता परिवर्तन होगा और कमलनाथ की वापसी होगी, जिन 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है, उनमें से 16 सीटें ग्वालियर चंबल संभाग से आती हैं, ये इलाका ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ माना जाता है. ऐसे में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए सिंधिया के सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती है, इसके साथ ही इन उपचुनावों पर उनकी प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है.

ज्योतिरादित्य सिंधिया

ग्वालियर चंबल की सीटें सत्ता की चाबी मानी जाती हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में इस इलाके की 34 में से 27 सीटें कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के दम पर जीती थी. अब जब सिंधिया बीजेपी में शामिल हो गए हैं, तो उनके साथ आए समर्थकों के लिए इन सीटों को जीतना और भी महत्वपूर्ण हो गया है. ऐसे में बीजेपी सिंधिया का चेहरा आगे रखकर ही ग्वालियर चंबल की 16 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. फिलहाल ये तो 10 नवंबर को नतीजें आने पर ही पता चलेगा कि सिंधिया अपनी प्रतिष्ठा बचाने के साथ ही अपने साथ दलबदल कर आए नेताओं को फिर से विधानसभा पहुंचा पाते हैं या नहीं.

ज्योतिरादित्य सिंधिया का राजनीतिक सफर

  • ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 1993 में हावर्ड यूनिवर्सिटी से इकोनमी में डिग्री ली.
  • पढ़ाई खत्म करने के बाद सिंधिया ने अमेर‍िका में लगभग साढ़े चार साल काम किया.
  • 12 दिसंबर 1994 में ज्योतिरादित्य की प्रियदर्शनी राजे से शादी हुई थी.
  • प्रियदर्शनी बड़ौदा के गायकवाड़ घराने की राजकुमारी हैं. वो दुन‍िया की 50 सबसे खूबसूरत महिलाओं में शुमार की जा चुकी हैं.

ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति में एंट्री

  • मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया घराने की अहम भूमिका रही है. ज्योतिरादित्य सिंधिया तीसरी पीढ़ी के नेता हैं. सिंधिया परिवार में राजनीति की शुरुआत उनकी दादी विजयाराजे सिंधिया से हुई थी. फिर पिता माधवराव सिंधिया, बुआ यशोधरा राजे सिंधिया, वसुंधरा राजे सिंधिया भी राजनीति में अहम पद हासिल कर चुकी हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति में एंट्री उनके पिता के निधन के बाद हुई.
  • ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया का देहांत 25 जनवरी 2001 को हुआ था. इसके 8 महीने बाद ही 30 सितम्बर 2001 को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया की मृत्यु हो गई थी.
  • 2001 में पिता माधवराव सिंधिया की मौत के बाद गुना की सीट खाली हुई थी. तब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस में पिता की जगह ली.
  • 2002 में जब गुना सीट पर उपचुनाव हुए, तो ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद चुने गए.
  • मई 2004 में 14वीं लोकसभा चुनाव हुआ और ज्योतिरादित्य सिंधिया फिर से गुना से सांसद चुने गए.
  • इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया को 2007 में केंद्रीय मंत्री (केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री) का पद मिला.
  • 2009 में 15वीं लोकसभा में लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना से फिर से चुने गए. जिसके बाद सरकार में वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री बने. सिंधिया को नवंबर 2012 में ऊर्जा राज्य मंत्री का पद दिया गया.
  • लोकसभा चुनाव 2014 में सिंधिया फिर से गुना से सांसद बने, लेकिन 2019 में सिंधिया केपी यादव से 1,25,549 वोट से चुनाव हार गए.

ज्योतिरादित्य संधिया और कमलनाथ के बीच कैसे शुरू हुई तकरार

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के दम पर 15 सालों का वनवास खत्म करके प्रदेश की सत्ता में वापसी की और कमलनाथ ने मुख्यमंत्री की शपथ ली, इसके साथ ही कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने रहे. यहीं से सिंधिया और कमलनाथ के बीच मनमुटाव शुरू हो गया.

विधानसभा चुनाव के छह महीने बाद ही लोकसभा चुनाव में मिली हार सिंधिया के लिए दूसरा बड़ा झटका साबित हुआ. इसके बाद सिंधिया अपनी ही पार्टी में साइड लाइन महसूस करने लगे, राज्यसभा चुनाव के दौरान कमलनाथ और सिंधिया में मनमुटाव बढ़ गया और सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ने का फैसला कर लिया.

ज्योतिरादित्या सिंधिया बीजेपी में शामिल

सिंधिया ने कमलनाथ सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरने की धमकी दी थी. तब कमलनाथ ने कहा था की, 'सिंधिया को सड़कों पर उतरना है, तो उतर जाएं. इसके बाद नवंबर 2019 में सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी के सभी पदों को छोड़कर दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन उनकी ये कोशिश भी नाकाम रही. जिसके बाद सिंधिया लगातार पार्टी विरोधी भाषण देने लगे और 11 मार्च को उन्होंने भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन कर ली. उनके साथ ही उनके समर्थक और 22 विधायकों ने भी पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था. मध्यप्रदेश में उपचुनाव की स्थिति बनी है. सिंधिया की बगावत के बाद मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार गिरी और फिर से शिवराज सिंह सत्ता में वापस आ गए. शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनते ही बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा भेज दिया.

Last Updated : Nov 10, 2020, 6:20 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.