भोपाल। 18 सितंबर को अमर क्रांतिकारी राजा शंकर शाह (raja shankar shah) और कुंवर रघुनाथ शाह का बलिदान दिवस (sacrifice day) है. इस मौके पर गृहमंत्री अमित शाह (home minister amit shah) उन्हें श्रद्धांजलि देने जबलपुर (jabalpur) आ रहे हैं. इस बीच सीएम शिवराज सिंह चौहान (Cm shivraj singh chouhan) ने ट्वीट कर राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है.
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मलेच्छों का मर्दन करो, कालिका माई।
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) September 18, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
मूंद मुख डंडिन को, चुगली को चबाई खाई,
खूंद डार दुष्टन को, शत्रु संहारिका।।
मातृभूमि की स्वतंत्रता और गौरव के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर देने वाले राजा शंकर शाह जी और रघुनाथ शाह जी के बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि! pic.twitter.com/JDNqBekDAR
">मलेच्छों का मर्दन करो, कालिका माई।
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) September 18, 2021
मूंद मुख डंडिन को, चुगली को चबाई खाई,
खूंद डार दुष्टन को, शत्रु संहारिका।।
मातृभूमि की स्वतंत्रता और गौरव के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर देने वाले राजा शंकर शाह जी और रघुनाथ शाह जी के बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि! pic.twitter.com/JDNqBekDARमलेच्छों का मर्दन करो, कालिका माई।
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) September 18, 2021
मूंद मुख डंडिन को, चुगली को चबाई खाई,
खूंद डार दुष्टन को, शत्रु संहारिका।।
मातृभूमि की स्वतंत्रता और गौरव के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर देने वाले राजा शंकर शाह जी और रघुनाथ शाह जी के बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि! pic.twitter.com/JDNqBekDAR
सीएम ने दी श्रद्धांजलि
सीएम ने ट्वीट कर लिखा, 'मातृभूमि की स्वतंत्रता और गौरव के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर देने वाले राजा शंकर शाह जी और रघुनाथ शाह जी के बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि!'
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अमर हुतात्मा शंकर शाह एवं रघुनाथ शाह ने वनवासी क्रांति का सूत्रपात कर अंग्रेजी शासन को हिला दिया था। 1857 की क्रांति में दोनों क्रांतिवीरों का अहम योगदान था जो 15 अगस्त 1947 को आजाद भारत के रूप में फलित हुआ।
— VD Sharma (@vdsharmabjp) September 18, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
आज उनके बलिदान दिवस पर उन्हें कोटि कोटि नमन। #MP_JanjatiyaGaurav pic.twitter.com/k93dXtuQQQ
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— VD Sharma (@vdsharmabjp) September 18, 2021
आज उनके बलिदान दिवस पर उन्हें कोटि कोटि नमन। #MP_JanjatiyaGaurav pic.twitter.com/k93dXtuQQQअमर हुतात्मा शंकर शाह एवं रघुनाथ शाह ने वनवासी क्रांति का सूत्रपात कर अंग्रेजी शासन को हिला दिया था। 1857 की क्रांति में दोनों क्रांतिवीरों का अहम योगदान था जो 15 अगस्त 1947 को आजाद भारत के रूप में फलित हुआ।
— VD Sharma (@vdsharmabjp) September 18, 2021
आज उनके बलिदान दिवस पर उन्हें कोटि कोटि नमन। #MP_JanjatiyaGaurav pic.twitter.com/k93dXtuQQQ
वीडी शर्मा ने किया नमन
वहीं भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा (VD sharma) ने ट्वीट कर लिखा, अमर हुतात्मा शंकर शाह एवं रघुनाथ शाह ने वनवासी क्रांति का सूत्रपात कर अंग्रेजी शासन को हिला दिया था. 1857 की क्रांति में दोनों क्रांतिवीरों का अहम योगदान था जो 15 अगस्त 1947 को आजाद भारत के रूप में फलित हुआ. आज उनके बलिदान दिवस पर उन्हें कोटि कोटि नमन.
कौन थे अमर क्रांतिकारी शंकर शाह और कुंवर शाह
आइए इस मौके पर जानते हैं कि कौन थे अमर क्रांतिकारी राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह, और क्या थी उनकी कहानी. दरअसल, इतिहासकारों के मुताबिक, गोंड राजवंशों का उत्थान काल 1292 से माना जाता है. एक लंबे समय तक स्वतंत्र राज्य के रूप में अपनी पहचान कायम कर चुके गोंड राज्य में एक समय ऐसा भी आया जब सत्ता के लिए संघर्ष शुरू होने लगा.
जब राजा को मराठों ने बना लिया बंदी
यह दौर था 1789 का जब, राजा सुमेर शाह की रानी ने शंकर शाह को जन्म दिया. उस समय राजा सुमेर सिंह को मराठों ने बंदी बना लिया था, और उन्हें सागर के किले में कैद कर रखा था. एक लंबे समय तक राजा के आने का इंतजार करने के बाद रानी अपने बेटे शंकर शाह के साथ राजधानी गढ़ा पुरवा में आकर रहने लगी थीं.
गोरिल्ला युद्ध में निपुण थे शंकर शाह
शंकर शाह जैसे-जैसे बड़े हो रहे थे, वैसे-वैसे उनकी रुचि धनुष बाण की ओर बढ़ने लगी. लगातार अभ्यास के बाद एक दिन ऐसा आया जब धनुष बाण की कला में निपुण हो गए. शाह ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक मंडली तैयार की, जिसका नाम गोंटिया दल रखा. वहीं दूसरी ओर मराठों ने सुमेर शाह को कैद से मुक्त कर दिया. सुमेर शाह के पहुंचने के बाद शंकर शाह को युवराज घोषित कर दिया गया.
पिंडारी सरदारों से मिला धोखा
राजा सुमेर सिंह के गुजर जाने के बाद शंकर शाह को राजा नियुक्त किया गया. इसके बाद शंकर शाह का विवाह हुआ, विवाह के दो साल बाद कुंवर रघुनाथ शाह का जन्म हुआ. राजा शंकर शाह ने अब मराठों से अपना राज्य पाने का मन बना लिया था. इसके लिए उन्होंने पिंडारी सरदार अमीर खां से मदद मांगी, पर पिंडारियों ने उनके साथ मिलकर दगाबाजी की.
जब अंग्रेजों ने छीन लिया था जबलपुर
एक समय ऐसा आया जब 20 दिसंबर 1817 को अंग्रेजों ने भोंसले से जबलपुर को छीन लिया. शंकर शाह ने ब्रिगेडियर जनरल हार्डीमेन से मुलाकात कर राज्य पर अपना दावा पेश किया, अंग्रेजों ने उनकी मांग को सिरे से खारिज कर दिया. अब यहां से राजा शाह का संघर्ष मराठों से न होकर अंग्रेजों के साथ शुरू हो गया.
हमले में शाह के हजारों सैनिक मारे गए
यहीं से शंकर शाह ने बिना सामने आए अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया. 1857 आते-आते देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की ज्वाला भड़क चुकी थी. इसमें राजा शंकर शाह भी बेटे रघुनाथ शाह के साथ शामिल थे. हालांकि किसी तरह गुरिल्ला युद्ध के बारे में अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर ले. क्लार्क को भनक लग गई. क्लार्क ने सेना के साथ शाह की सेना पर आक्रमण कर दिया. इस हमले में शंकर शाह के हजारों सैनिक मारे गए.
तोप के मुंह में बांधकर उड़ा देने की सजा
इसके बाद अंग्रेजों का आक्रोश शाह के खिलाफ लगातार बढ़ता चला गया, क्योंकि थोड़ा बहुत ही सही इस युद्ध में अंग्रेजों का भी नुकसान हुआ, जो उन्हें बर्दाश्त नहीं था. अंग्रेज एक दिन अचानक राजा के घर जा पहुंचे, जहां से उन्होंने राजा शंकर शाह, उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह समेत अन्य सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया. अंग्रेजी सरकार राजा को देशद्रोही साबित करते हुए उन्हें तोप के मुंह में बांधकर उड़ा देने की सजा सुनाई.
तोप से बंधे राजा ने लगाया भारत मां का जयकारा
फिर 18 सितंबर की वो काली रात भी आई, जब उन्हें तोप के मुंह पर बांधा गया. तोप के मुंह से बांधे जाने के बाद भी शंकर शाह की आंखों में पहले वाली चमक बरकार थी, भय मानों उनसे कोसों दूर हो. राजा ने तोप से बांधने वाले अंग्रेजी सैनिक से कहा कि कसकर बांधो, कहीं कसर न रह जाए. इसके बाद उन्होंने अपनी बुलंद आवाज में भारत मां का जयकार लगाया, और फिर राजा वीरगति को प्राप्त हो गए. वहीं दूसरी ओर मौत करीब होने के बाद भी गिरफ्तारी कुंवर रघुनाथ शाह ने बिना डरे अंग्रेजों से लगातार सिर उठाकर बात की. पिता-पुत्र के बलिदान के बाद रानी फूलकुंवरि ने अंग्रेजों से घिर जाने के बाद खुद ही कटार सीने में उतार ली.