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बच्चों की सुरक्षा के लिए पॉक्सो एक्ट, जानिए क्या कहता है कानून

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Published : Dec 20, 2019, 12:19 PM IST

Updated : Dec 20, 2019, 1:35 PM IST

मासूम बच्चों को शोषण से बचाने और उनकी सुरक्षा के लिए साल 2012 में 'बाल लैंगिक शोषण और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012' यानी पॉक्सो एक्ट लाया गया. पॉक्सो एक्ट के जरिए बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों पर शिकंजा कसने का काम किया जा रहा है.

KNOW ABOUT POCSO ACT
जाने पॉक्सो एक्ट के बारें में

भोपाल। देश में लगातार बढ़ रहे लैंगिक अपराध समाज पर एक सवाल बन गए हैं. खास तौर पर नाबालिगों के साथ ऐसे अपराध लागातार बढ़ते जा रहे हैं. ऐसा कहीं न कहीं इसलिए भी होता है कि घटना के पहले की सुरक्षा और घटना के बाद उठाए जाने वाले कदम की जानकारी लोगों को नहीं होती. न लोग कानूनी अधिकारों के बारे में जानते हैं और न ही सतर्कता के उपायों के बारे में, ऐसे में समाज के सभी लोगों के लिए जरूरी हो जाता है कि वह ऐसे कानूनों की जानकारी रखें.

बच्चों की सुरक्षा के लिए है पॉक्सो (POCSO) एक्ट
बच्चे मासूम और सरल होते हैं, इनकी इसी मासूमियत का फायदा उनके आसपास के आपराधिक मानसिकता के लोग उठाते हैं. बच्चों का शोषण न हो, इसके लिए बाल लैंगिक शोषण और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 यानी पॉक्सो एक्ट लागू किया गया. यह एक्ट 18 साल से कम उम्र के सभी बच्चों (चाहे लड़का हो या लड़की) जिनके साथ किसी भी तरह का लैंगिक शोषण हुआ हो या करने का प्रयास किया गया हो, को इस कानून के दायरे में रखता है.

प्रदेश में गठित नहीं हुई पॉक्सो अदालतें
बाल यौन शोषण के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष पॉक्सो अदालतें गठित करने में देरी के चलते सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार पर 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. कोर्ट ने आदेश दिया कि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से चर्चा कर सरकार मार्च 2020 के पहले सभी पॉक्सो कोर्ट गठित करे.

क्या है पॉक्सो एक्ट में -
● बच्चों को सेक्सुअल असॉल्ट, सेक्सुअल हैरेसमेंट और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से सुरक्षा प्रदान की गई है.
● दोनों ही स्थितियां जहां बच्चे के साथ लैंगिक शोषण की घटना हुई है या करने का प्रयास किया गया है, यह कानून कार्य करेगा.
● यह कानून लिंग निरपेक्ष/जेंडर न्यूट्रल है यानि बालक और बालिकाओं दोनों पर लागू होता है.
● इसके अंतर्गत आने वाले मामलों की सुनवाई विशेष न्यायालय में होती है.
● आरोपी को सिद्ध करना होता है कि उसने अपराध नहीं किया, पीड़ित को कुछ भी सिद्ध नहीं करना होता है.
● अधिनियम के अंतर्गत 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों पर होने वाले किसी प्रकार के लैंगिक अपराधों में कठोर कार्रवाई किए जाने का प्रावधान रखा गया है, जिसमें जुर्माने से लेकर आजीवन कारावास और मृत्युदंड तक की सजा का प्रावधान है.

यहां की जा सकती है शिकायत
इस तरह के अपराधों से बच्चों को बचाने के लिए शिकायत के लिए चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर 1098, टोल फ्री नंबर 1800115455 और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने POCSO e-box तैयार किया है. इन सभी पर बच्चे स्वयं या उनके अभिभावक आसानी से शिकायत कर सकते हैं, साथ ही लोगों को चाहिए कि संबंधित कानून के बारे में खुद जानें और सभी को बताएं भी, ताकि बच्चों को शोषण का शिकार होने से बचाया जा सके.

कुछ ऐसे करें बच्चों की सुरक्षा

अक्सर यह देखा गया है कि शोषण करने वाला बच्चे का परिचित या परिजन ही होता है. ऐसे में समाज जिम्मेदारी है कि बच्चे की बातों को ध्यान से सुनें और उस पर भरोसा करें. बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श के बीच अंतर करना सिखाएं. उसे उचित जानकारी देकर सशक्त बनाएं, ताकि वो ऐसे खतरों को पहचाने और इसकी तुरंत शिकायत कर सके. यदि बच्चा किसी व्यक्ति के पास जाने से डरता हो या घबरा रहा हो, तो इन बातों को नज़रअंदाज न करें.

भोपाल। देश में लगातार बढ़ रहे लैंगिक अपराध समाज पर एक सवाल बन गए हैं. खास तौर पर नाबालिगों के साथ ऐसे अपराध लागातार बढ़ते जा रहे हैं. ऐसा कहीं न कहीं इसलिए भी होता है कि घटना के पहले की सुरक्षा और घटना के बाद उठाए जाने वाले कदम की जानकारी लोगों को नहीं होती. न लोग कानूनी अधिकारों के बारे में जानते हैं और न ही सतर्कता के उपायों के बारे में, ऐसे में समाज के सभी लोगों के लिए जरूरी हो जाता है कि वह ऐसे कानूनों की जानकारी रखें.

बच्चों की सुरक्षा के लिए है पॉक्सो (POCSO) एक्ट
बच्चे मासूम और सरल होते हैं, इनकी इसी मासूमियत का फायदा उनके आसपास के आपराधिक मानसिकता के लोग उठाते हैं. बच्चों का शोषण न हो, इसके लिए बाल लैंगिक शोषण और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 यानी पॉक्सो एक्ट लागू किया गया. यह एक्ट 18 साल से कम उम्र के सभी बच्चों (चाहे लड़का हो या लड़की) जिनके साथ किसी भी तरह का लैंगिक शोषण हुआ हो या करने का प्रयास किया गया हो, को इस कानून के दायरे में रखता है.

प्रदेश में गठित नहीं हुई पॉक्सो अदालतें
बाल यौन शोषण के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष पॉक्सो अदालतें गठित करने में देरी के चलते सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार पर 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. कोर्ट ने आदेश दिया कि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से चर्चा कर सरकार मार्च 2020 के पहले सभी पॉक्सो कोर्ट गठित करे.

क्या है पॉक्सो एक्ट में -
● बच्चों को सेक्सुअल असॉल्ट, सेक्सुअल हैरेसमेंट और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से सुरक्षा प्रदान की गई है.
● दोनों ही स्थितियां जहां बच्चे के साथ लैंगिक शोषण की घटना हुई है या करने का प्रयास किया गया है, यह कानून कार्य करेगा.
● यह कानून लिंग निरपेक्ष/जेंडर न्यूट्रल है यानि बालक और बालिकाओं दोनों पर लागू होता है.
● इसके अंतर्गत आने वाले मामलों की सुनवाई विशेष न्यायालय में होती है.
● आरोपी को सिद्ध करना होता है कि उसने अपराध नहीं किया, पीड़ित को कुछ भी सिद्ध नहीं करना होता है.
● अधिनियम के अंतर्गत 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों पर होने वाले किसी प्रकार के लैंगिक अपराधों में कठोर कार्रवाई किए जाने का प्रावधान रखा गया है, जिसमें जुर्माने से लेकर आजीवन कारावास और मृत्युदंड तक की सजा का प्रावधान है.

यहां की जा सकती है शिकायत
इस तरह के अपराधों से बच्चों को बचाने के लिए शिकायत के लिए चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर 1098, टोल फ्री नंबर 1800115455 और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने POCSO e-box तैयार किया है. इन सभी पर बच्चे स्वयं या उनके अभिभावक आसानी से शिकायत कर सकते हैं, साथ ही लोगों को चाहिए कि संबंधित कानून के बारे में खुद जानें और सभी को बताएं भी, ताकि बच्चों को शोषण का शिकार होने से बचाया जा सके.

कुछ ऐसे करें बच्चों की सुरक्षा

अक्सर यह देखा गया है कि शोषण करने वाला बच्चे का परिचित या परिजन ही होता है. ऐसे में समाज जिम्मेदारी है कि बच्चे की बातों को ध्यान से सुनें और उस पर भरोसा करें. बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श के बीच अंतर करना सिखाएं. उसे उचित जानकारी देकर सशक्त बनाएं, ताकि वो ऐसे खतरों को पहचाने और इसकी तुरंत शिकायत कर सके. यदि बच्चा किसी व्यक्ति के पास जाने से डरता हो या घबरा रहा हो, तो इन बातों को नज़रअंदाज न करें.

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भोपाल: बाल यौन शोषण के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष पॉक्सो अदालतें गठित करने में देरी के चलते सुप्रीम कोर्ट ने मध्य सरकार पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. कोर्ट ने आदेश दिया कि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से चर्चा कर सरकार मार्च 2020 के पहले सभी पॉक्सो कोर्ट गठित करे. 





बच्चे मासूम और सरल होते हैं, इनकी इसी मासूमियत का फायदा उनके आस पास के लोग उठा लेते हैं और बच्चे शोषण का शिकार हो जाते हैं. इसीलिए सरकार को बच्चों की सुरक्षा के लिए बाल लैंगिक शोषण और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 यानी पॉक्सो एक्ट लाना पड़ा. यह एक्ट 18 साल से कम उम्र के सभी बच्चों (चाहे लड़का हो या लड़की) जिनके साथ किसी भी तरह का लैंगिक शोषण हुआ हो या करने का प्रयास किया गया हो, को इस कानून के दायरे में रखता है. 



इस कानून में-

● बच्चों को सेक्सुअल असॉल्ट, सेक्सुअल हैरेसमेंट और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से सुरक्षा प्रदान की गई है।

● दोनों ही स्थितियां, जहाँ बच्चे के साथ लैंगिक शोषण की घटना हुई है या करने का प्रयास किया गया है, यह कानून कार्य करेगा।

● यह कानून लिंग निरपेक्ष/ जेंडर न्यूट्रल है यानि बालक और बालिकाओं दोनों पर लागू होता है।

● इसके अंतर्गत आने वाले मामलों की सुनवाई विशेष न्यायालय में होती है।

● आरोपी को सिद्ध करना होता है कि उसने अपराध नहीं किया, पीड़ित को कुछ भी सिद्ध नहीं करना होता है।

● अधिनियम अंतर्गत 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों पर होने वाले किसी प्रकार के लैंगिक अपराधों में कठोर कार्यवाही किये जाने का प्रावधान रखा गया है, जिसमें जुर्माने से लेकर आजीवन कारावास और मृत्युदंड तक की सजा का प्रावधान है।



हम सभी को यह समझना होगा कि कोई भी बच्चा इस तरह के शोषण का शिकार हो सकता है; चाहे वह किसी भी वर्ग, जाति,धर्म या समुदाय का हो। बच्चे का कोई भी शोषण कर सकता है । अक्सर देखा गया है कि ऐसा करने वाला बच्चे का परिचित या परिजन ही होता है। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी है कि हम बच्चे की बातों को ध्यान से सुने और उसपर भरोसा करें। हम बच्चे को अच्छे और बुरे स्पर्श के बीच अंतर करना सिखाएं। उसे उचित जानकारी देकर सशक्त बनाएं जिससे वो ऐसे खतरों को पहचानें एवं इसकी तुरंत शिकायत कर सके। बच्चे के व्यवहार में आये किसी भी प्रकार के परिवर्तन का कारण जानें। जैसे- यदि बच्चा किसी व्यक्ति के पास जाने से डरता हो या घबरा रहा हो तो इन बातों को नज़रअंदाज न करें।



पॉक्सो (POCSO) एक्ट बच्चों को यौन उत्पीड़न (sexual harassment) यौन हमला (sexual assault) और पोर्नोग्राफी (pornography) जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है। इस तरह के अपराधों से बच्चों को बचाने के लिए शिकायत हेतु Child line नंबर 1098, टोल फ्री नंबर1800115455 और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा POCSO e-box तैयार किया गया है. इन दोनों पर बच्चे स्वयं या उनके अभिभावक आसानी से शिकायत कर सकते हैं।



महिला एवं बाल विकास विभाग, मध्यप्रदेश के सभी नागरिकों से अनुरोध करता है कि बच्चों के साथ स्वयं भी पॉक्सो (POCSO) एक्ट के बारे में जागरूक हों और बच्चों को शोषण का शिकार होने से बचाएं। इस संदर्भ में अपने महत्वपूर्ण विचार हमसे साझा करें।

● लैंगिक शोषण और लैंगिक अपराधों से बच्चों के संरक्षण में माता-पिता,शिक्षक, स्कूल, समाज की क्या भूमिका हो?

● पॉक्सो एक्ट का ज्यादा से ज्यादा कैसे प्रचार हो?

● घर एवं बाहर थोड़ी सतर्कता एवं संवेदनशीलता से बच्चों को ऐसे शोषण से बचा सकते हैं?

● सजा का भय की जानकारी देकर अपराध होने से रोकें?


Conclusion:
Last Updated : Dec 20, 2019, 1:35 PM IST
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