खेती के पारंपरिक तरीके को छोड़ आधुनिक तकनीक से आप भी मोटी कमाई कर सकते हैं और एक एकड़ में पपीते की खेती करके आप एक सीजन में दो से तीन लाख रुपए आसानी से कमा (Benefits of Papaya Farming) सकते हैं. पपीता का वैज्ञानिक नाम केरिका पपाया (Carica Papaya) है, यह उष्ण जलवायु का पौधा है, इसके लिए 10-40 डिग्री सेल्शियस तापमान उपयुक्त रहता है, उत्तम जल निकास युक्त दोमट मिट्टी पपीते की खेती (Papaya Farming) के लिये सर्वोत्तम होती है. भूमि की गहराई 45 सेमी से कम नहीं होनी चाहिए. मृदा का PH मान 6.5-7.5 अतिउत्तम माना जाता है.
जैविक खेती ने बदला आदिवासी किसानों का जीवन, अच्छी सेहत के साथ हो रही बंपर कमाई
पपीता की उन्नत किस्में
1- फल उत्पादक किस्में: ताइवान, रेड लेडी-786, हानिड्यू (मधु बिंदु), कुर्ग हनिड्यू, वाशिंगटन, कोयंबटूर-1, CO-3, CO-4, CO-6, पंजाब स्वीट, पूसा डिलीशियस, पूसा जाइंट, पूसा ड्वार्फ, पूसा नन्हा, सूर्या, पंत आदि किस्मे हैं, जोकि भरपूर उत्पादन के लिए जानी जाती हैं.
2. पपेन उत्पादक किस्मे: पूसा मैजेस्टी, CO.-5, CO.-2 आदि हैं.
3. उभयलिंगी किस्में: पूसा डिलीशियस, पूसा मैजेस्टी, सूर्या, रेड लेडी, कुर्ग हनिड्यू आदि हैं
4. गमलों में लगाने हेतु: पूसा नन्हा, पूसा ड्वार्फ आदि को आप गमले में भी उगा सकते हैं.
1- रेड लेडी: यह अत्यधिक लोकप्रिय किस्म है, इसके फल का वजन 1.5-2 किलोग्राम तक होता है, यह अत्यधिक स्वदिष्ट भी होता है, इसमें 13% सर्करा पाई जाती है, यह रिंग स्पॉट वायरस के प्रति सहनशील है.
2- पूसा मैजेस्टी: यह किस्म पपेन देने वाली है, यह सूत्र कृमि के प्रति सहनशील है.
3- पूसा डेलिशियस: यह पपीता की एक गाइनोडायोशियस किस्म है, इसके पौधे मध्यम ऊंचाई और अच्छी उपज देने वाले होते हैं. यह अच्छे स्वाद, सुगन्ध एवं गहरे नारंगी रंग का फल देने वाली किस्म है, जिसकी औसत उपज 58 से 61 किलोग्राम प्रति पौधे तक होती है. इसमें कुल घुलनशील ठोस 10 से 12 ब्रिक्स होता है. इस किस्म के फल का औसत वजन 1.0 से 2.0 किलोग्राम होता है. पौधों में फल जमीन की सतह से 70 से 80 सेंटीमीटर की ऊंचाई से लगना प्रारम्भ कर देते हैं, पौधे लगाने के 260 से 290 दिनों बाद इस किस्म में फल लगना प्रारम्भ हो जाते हैं.
4- पूसा ड्वार्फ: यह पपीता की डायोशियस किस्म है, इसके पौधे छोटे होते हैं और फल का उत्पादन अधिक (Benefits of Papaya Farming) देते है. फल अण्डाकार 1.0 से 2.0 किलोग्राम औसत वजन के होते हैं. पौधे में फल जमीन की सतह से 25 से 30 सेंटीमीटर ऊपर से लगना प्रारम्भ हो जाते हैं. सघन बागवानी के लिए यह प्रजाति अत्यन्त उपयुक्त है. इसकी पैदावार 40 से 50 किलोग्राम प्रति पौधा होती है. फल के पकने पर गूदे का रंग पीला होता है.
5- पूसा जायन्ट: इस पपीता किस्म का पौधा मजबूत, अच्छी बढ़वार वाला और तेज हवा सहने की क्षमता वाला होता है, यह भी एक डायोशियस किस्म है, फल बड़े आकार के 2.5 से 3.0 किलोग्राम औसत वजन के होते हैं, जो कैनिंग उद्योग के लिए उपयुक्त हैं. प्रति पौधा औसत उपज 30 से 35 किलोग्राम तक होती है. यह किस्म पेठा और सब्जी बनाने के लिये भी काफी उपयुक्त है.
6- पूसा नन्हा: यह पपीता की एक अत्यन्त बौनी किस्म है, जिसमें 15 से 20 सेंटीमीटर जमीन की सतह से ऊपर फल लगना प्रारम्भ हो जाते हैं, गृह वाटिका व गमलों में छत पर भी यह पौधा लगाया जा सकता है, यह डायोशियस प्रकार की किस्स है, जो तीन वर्षों तक फल दे सकती है, इसमें कुल घुलनशील ठोस 10 से 12 ब्रिक्स होता है, इस किस्म से प्रति पौधा 25 किलोग्राम फल प्राप्त होता है.
7- अर्का सूर्या: यह पपीता की गाइनोडायोशियस किस्म है, जिसका औसत वजन 500 से 700 ग्राम तक होता है, इसमें कुल घुलनशील ठोस 10 से 12 ब्रिक्स तक होता है. यह सोलो और पिंक फ्लेश स्वीट द्वारा विकसित संकर किस्म है. इस किस्म में प्रति पौधा औसत पैदावार 55 से 56 किलोग्राम तक होती है और फल की भंडारण क्षमता भी काफी अच्छी है.
पपीते की बुवाई: पपीते की खेती (Papaya Farming) उन्नत बीजों द्वारा किया जाता है, इसके सफल उत्पादन के लिए यह जरूरी है कि बीज अच्छी क्वालिटी का हो, बीज के मामले में निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए.
1- बीज बोने का समय जुलाई से सितम्बर और फरवरी-मार्च होता है.
2- बीज अच्छी किस्म के अच्छे व स्वस्थ फलों से लेने चाहिए, चूंकि यह नई किस्म संकर प्रजाति की है, लिहाजा हर बार इसका नया बीज ही बोना चाहिए.
3- बीजों को क्यारियों, लकड़ी के बक्सों, मिट्टी के गमलों व पॉलिथीन की थैलियों में बोया जा सकता है.
4- क्यारियां जमीन की सतह से 15 सेंटीमीटर ऊंची व एक मीटर चौड़ी होनी चाहिए.
5- क्यारियों में गोबर की खाद, कंपोस्ट या वर्मी कंपोस्ट काफी मात्रा में मिलाना चाहिए, पौधे को पद विगलन रोग से बचाने के लिए क्यारियों को फार्मलीन के 1:40 के घोल से उपचारित कर लेना चाहिए और बीजों को 0.1 फीसदी कॉपर आक्सीक्लोराइड के घोल से उपचारित करके बोना चाहिए.
6- जब पौधे 8-10 सेंटीमीटर लंबे हो जाएं तो उन्हें क्यारी से पॉलिथीन में स्थानांतरित कर देते हैं.
7- जब पौधे 15 सेंटीमीटर ऊंचे हो जाएं, तब 0.3 फीसदी फफूंदीनाशक घोल का छिड़काव कर देना चाहिए.
बीज एवं बीजोपचार: एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए 500-600 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है, बोवनी से पूर्व बीज को तीन ग्राम केप्टान से प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर लेना चाहिए.
पौधारोपण: 45 X 45 X 45 सेंटीमीटर आकर के गड्ढे 1.5 X 1.5 या 2 X 2 मीटर की दूरी पर तैयार करें. प्रति गड्ढे में 10 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद, 500 ग्राम जिप्सम, 50 ग्राम क्यूनालफास 1.5% चूर्ण भर देना चाहिए.
प्लास्टिक थैलियों में बीज रोपण: इसके लिए 200 गेज और 20 x 15 सेमी आकर की थैलियों की जरुरत होती है, जिनको किसी कील से नीचे और साइड में छेड़ कर देते हैं तथा 1:1:1:1 पत्ती की खाद, रेत, गोबर और मिट्टी का मिश्रण बनाकर थैलियों में भर देते हैं. प्रत्येक थैली में दो या तीन बीज बो देते हैं, उचित ऊंचाई होने पर पौधों को खेत में प्रतिरोपित कर देते हैं. प्रतिरोपण करते समय थाली के नीचे का भाग फाड़ देना चाहिए.
सिंचाई: पौधा लगाने के तुरन्त बाद सिंचाई करें, ध्यान रहे पौधे के तने के पास पानी न भरने पाए. गर्मियों में 5-7 दिन के अंतराल पर एवं सर्दियों में 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें.
तुड़ाई एवं उपज: पौधे लगाने के 10 से 13 माह बाद फल तोड़ने लायक हो जाते हैं, फलों का रंग गहरा हरे रंग से बदलकर हल्का पीला होने लगता है तथा फलों पर नाखून लगने से दूध की जगह पानी तथा तरल निकलता हो तो समझना चाहिए कि फल पक गया है. एक पौधे से औसतन 150-200 ग्राम पपेन प्राप्त हो जाती है, प्रति पौधा 40-70 किलो प्रति पौधा उपज प्राप्त हो जाती है.
कीट एवं बीमारी की रोकथाम: प्रमुख रूप से किसी कीड़े से नुकसान नहीं होता है, पर वायरस रोग फैलाने में सहायक होते हैं, इसमें निम्न रोग लगते हैं.
1- तने तथा जड़ के गलने की बीमारी: इसमें भूमि के तल के पास तने का ऊपरी छिलका पीला होकर गलने लगता है और जड़ भी गलने लगती है. पत्तियां सूख जाती हैं और पौधा मर जाता है. इसके उपचार के लिए जल निकास में सुधार और ग्रसित पौधों को तुंरत उखाड़कर फेंक देना चाहिए. पौधों पर एक प्रतिशत बोर्डेक्स मिश्रण या कॉपर आक्सीक्लोराइड को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करने से काफी रोकथाम होती है.
2- डेम्पिगऑफ: इसमें नर्सरी में ही छोटे पौधे नीचे से गलकर मर जाते हैं, इससे बचने के लिए बीज बोने से पहले सेरेसान एग्रोसन जी.एन. से उपचारित करना चाहिए तथा सीड बेड को 2.5% फार्मेल्डिहाइड घोल से उपचारित करना चाहिए.
3- मौजेक (पत्तियों का मुड़ना): इससे प्रभावित पत्तियों का रंग पीला हो जाता है व डंठल छोटा और आकर में सिकुड़ जाता है, इसके लिए 250 मिली इमिडकलोरपीड 17.5 एसएल को 4 मिलीलीटर प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें या एसिफेट 250 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करना काफी फायदेमंद होता है.
4-चैंपा: इस कीट के बच्चे व जवान दोनों पौधे के तमाम हिस्सों का रस चूसते हैं और विषाणु रोग फैलाते हैं. इसकी रोकथाम के लिए डायमेथोएट 30 ईसी 1.5 मिलीलीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
5-लाल मकड़ी: इस कीट का हमला पत्तियों व फलों की सतहों पर होता है, इसके प्रकोप के कारण पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और बाद में लाल भूरे रंग की हो जाती हैं. इसकी रोकथाम के लिए थायमेथोएट 30 ईसी 1.5 मिलीलीटर को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
6- पद विगलन: यह रोग पीथियम फ्रयूजेरियम नामक फफूंदी के कारण होता है, रोगी पौधे की बढ़वार रूक जाती है, पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और पौध सड़कर गिरने लगते हैं. इसकी रोकथाम के लिए रोग वाले हिस्से को खुरचकर उस पर कार्बेंदाजीम 2 ग्राम को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
7- श्याम वर्ण: इस रोग का असर पत्तियों व फलों पर होता है, जिससे इसकी वृद्धि रूक जाती है, इससे फलों के ऊपर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं, इसकी रोकथाम के लिए ब्लाइटाक्स 2 ग्राम को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए.
ऐसे समझे पपीते की खेती का लाभ:
पपीते के पौधे से पौधे और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 1.5 X 1.5 या 2 X 2 मीटर रखते हैं, एक हेक्टेयर में कुल 10,000 वर्ग मीटर होता है. एक बीघा में 2,500 वर्ग मीटर होते हैं तो एक बीघा में कितने पौधे लगेंगे. कुल क्षेत्रफल मीटर में, पौधे से पौधे की दूरी मीटर में, पंक्ति से पंक्ति की दूरी भी मीटर में ही रखा गया है. एक बीघा यानि 2500 वर्ग मीटर में कुल 625 पौधे लगेंगे यदि 2X2 मीटर का फासला रखेंगे, जबकि यही यदि 1.5 X 1.5 मीटर के फासले पर पौधे लगाते हैं तो कुल 1111 पौधे लगते हैं. अब एक पौधे पर औसतन 40-50 किलो फल लगते हैं, अब आप सोचो यदि 625X50= 31,250 किलो/बीघा उत्पाद अनुमानित है, जबकि यही दूसरे फॉर्मूले से बोवनी होती है तो 1,111 X 50= 55,550 किलो/बीघा उत्पाद होने की प्रबल संभावना रहती है.
अब यदि सामान्य दर से थोक भाव 7-8 रुपये प्रति किलो रहा तो 31,250 X 8= 2,50,000 रुपये, जबकि 55,550 X 8= 4,44,400 रुपये की आमदनी हो सकती है, यदि इसमें से कुल खर्च एक बीघा में औसतन 50-70 हजार रुपये अधिकतम होता है, इससे अधिक खर्च नही आता है, 2X2 मीटर की दूरी पर पौधे लगाने पर 2,50,000-70,000= 1,80,000 रुपए शुद्ध आय. यदि और भी कोई समस्या आ जाये या रेट कम मिले तब भी 1,50000 रुपये का लाभ मिल (Benefits of Papaya Farming) जाता है, जो कोई भी परम्परागत फसल नहीं दे सकती है. वहीं 1.5 X 1.5 मीटर की दूरी पर पौधे लगाने पर थोड़ी सघनता बढ़ जाती है और देखरेख अधिक करनी पड़ती है 4,44,400-70,000= 3,34400 रुपए शुद्ध आय होगी. यदि और कोई समस्या आ जाये या रेट कम मिले तब भी हमे 3,00,000 रुपये का लाभ मिल जाता है. अधिक जानकारी के लिए नजदीकी कृषि कार्यलय में सम्पर्क करें. कृषि विशेषज्ञ पिंटू लाल मीणा से पपीते की खेती के बारे में जानकारी दी है.