ETV Bharat / state

जीवन जीने की कला सिखाते कबीर के दोहे - कबीर के दोहे

संत कबीर दास ने अनेक दोहे लिखे, उनके लिखे दोहों को अपनाकर हम अपना जीवन आसान बना सकते हैं. यहां कबीर के कुछ प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित प्रस्तुत कर रहे हैं, जिन दोहों के माध्यम से कबीर दास जी ने जिंदगी जीने का तरीका और सलीका बताया है.

life lesson
जीने की कला
author img

By

Published : Oct 1, 2021, 8:03 PM IST

हैदराबाद। संत कबीर दास एक महान कवि और समाज सुधारक थे. भारतीय समाज में उन्हें बेहद सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. संत कबीर दास जी ने अपने दोहों के माध्यम से जीवन और संसार का सार समझाया है. उन का भक्ति आंदोलन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन की वाणी सिक्खों के धार्मिक ग्रंथ श्री गुरू ग्रंथ साहिब में भी दर्ज हैं.

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाही.

सब अंधियारा मिट गया, दीपक देखा माही.

जब मेरे अंदर अहंकार था, तब मेरे ह्रदय में ईश्वर का वास नहीं था और अब मेरे ह्रदय में ईश्वर का वास है तो अहंकार नहीं है. जब से मैंने गुरु रूपी दीपक को पाया है तब से मेरे अंदर का अंधकार खत्म हो गया है.

प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए.

राजा-प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए.

प्रेम खेत में नहीं उगता है और न ही बाजार में बिकता है. प्रेम ऐसा खजाना है जो किसी के मन को अच्छा लगे तो फिर भले ही वह व्यक्ति राजा हो या प्रजा, वो अपना सिर कटाकर भी उसे प्राप्त करने के लिए तैयार रहता है.

नहाये-धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए.

मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए.

अगर आपका मन साफ नहीं है तो नहाने और साफ कपड़े पहनने का क्या फायदा, जिस प्रकार मछली जीवन भर पानी में रहती है, फिर भी उससे तेज बदबू आती रहती है.

प्रेम पियाला जो पिए, सिस दक्षिणा देय.

लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय.

सच्चा प्रेमी और भक्त अपना सब कुछ सहर्ष त्याग देता है, जबकि लालची इंसान प्रेम पाने की उम्मीद रखता है और सिर्फ दिखावा करता है.

कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर.

जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर.

जो इंसान दूसरों की पीड़ा और दुःख को समझता है वही व्यक्ति सज्जन है और जो दूसरे की पीड़ा ही न समझ सके, उसे सज्जन व्यक्ति कहलाने का हक नहीं.

कबीरा ते नर अंध है, गुरु को कहते और.

हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर.

वे लोग अंधे और मूर्ख हैं, जो गुरु के महत्त्व को नहीं समझ पाते. अगर ईश्वर आपसे रूठ गया तो गुरु का सहारा है, लेकिन गुरु आपसे रूठ गया तो दुनिया में कोई आपका सहारा नहीं है.

नहीं शीतल है चंद्रमा, हिम नहीं शीतल होय.

कबीर शीतल संत जन, नाम सनेही होय.

चन्द्रमा और बर्फ से भी ज्यादा शीतलता सज्जन पुरुष में होती है, सज्जन पुरुष मन से शीतल होने के साथ ही, सभी से स्नेह करने वाले होते हैं.

शीलवंत सबसे बड़ा सब रतनन की खान.

तीन लोक की संपदा, रही शील में आन.

शांतचित्त और शीलता सबसे बड़ा गुण है और ये दुनिया के सभी रत्नों से महंगा रत्न है, जिसके पास विनम्रता है, उसके पास मानों तीनों लोक की संपत्ति है.

माखी गुड़ में गड़ी रहे, पंख रहे लिपटाए.

हाथ मले और सर धुनें, लालच बुरी बलाय.

मक्खी लालच के कारण बहुत समय तक गुड़ पर बैठी रहती है, जिस कारण उसका मुंह और पंख गुड़ से चिपक जाते हैं और वह उड़ नहीं पाती. इसलिए कभी भी किसी चीज की अति और लालच नहीं करना चाहिए.

ऊंचे कुल का जनमिया, करनी ऊंची न होय.

सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय.

ऊंचे कुल में जन्म लेना ही पार्यप्त नहीं, अगर कर्म अच्छे नहीं हैं तो सब व्यर्थ है. जैसे सोने के कलश में जहर भरा हो तो सभी लोग उससे घृणा ही करेंगे.

हैदराबाद। संत कबीर दास एक महान कवि और समाज सुधारक थे. भारतीय समाज में उन्हें बेहद सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. संत कबीर दास जी ने अपने दोहों के माध्यम से जीवन और संसार का सार समझाया है. उन का भक्ति आंदोलन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन की वाणी सिक्खों के धार्मिक ग्रंथ श्री गुरू ग्रंथ साहिब में भी दर्ज हैं.

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाही.

सब अंधियारा मिट गया, दीपक देखा माही.

जब मेरे अंदर अहंकार था, तब मेरे ह्रदय में ईश्वर का वास नहीं था और अब मेरे ह्रदय में ईश्वर का वास है तो अहंकार नहीं है. जब से मैंने गुरु रूपी दीपक को पाया है तब से मेरे अंदर का अंधकार खत्म हो गया है.

प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए.

राजा-प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए.

प्रेम खेत में नहीं उगता है और न ही बाजार में बिकता है. प्रेम ऐसा खजाना है जो किसी के मन को अच्छा लगे तो फिर भले ही वह व्यक्ति राजा हो या प्रजा, वो अपना सिर कटाकर भी उसे प्राप्त करने के लिए तैयार रहता है.

नहाये-धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए.

मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए.

अगर आपका मन साफ नहीं है तो नहाने और साफ कपड़े पहनने का क्या फायदा, जिस प्रकार मछली जीवन भर पानी में रहती है, फिर भी उससे तेज बदबू आती रहती है.

प्रेम पियाला जो पिए, सिस दक्षिणा देय.

लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय.

सच्चा प्रेमी और भक्त अपना सब कुछ सहर्ष त्याग देता है, जबकि लालची इंसान प्रेम पाने की उम्मीद रखता है और सिर्फ दिखावा करता है.

कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर.

जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर.

जो इंसान दूसरों की पीड़ा और दुःख को समझता है वही व्यक्ति सज्जन है और जो दूसरे की पीड़ा ही न समझ सके, उसे सज्जन व्यक्ति कहलाने का हक नहीं.

कबीरा ते नर अंध है, गुरु को कहते और.

हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर.

वे लोग अंधे और मूर्ख हैं, जो गुरु के महत्त्व को नहीं समझ पाते. अगर ईश्वर आपसे रूठ गया तो गुरु का सहारा है, लेकिन गुरु आपसे रूठ गया तो दुनिया में कोई आपका सहारा नहीं है.

नहीं शीतल है चंद्रमा, हिम नहीं शीतल होय.

कबीर शीतल संत जन, नाम सनेही होय.

चन्द्रमा और बर्फ से भी ज्यादा शीतलता सज्जन पुरुष में होती है, सज्जन पुरुष मन से शीतल होने के साथ ही, सभी से स्नेह करने वाले होते हैं.

शीलवंत सबसे बड़ा सब रतनन की खान.

तीन लोक की संपदा, रही शील में आन.

शांतचित्त और शीलता सबसे बड़ा गुण है और ये दुनिया के सभी रत्नों से महंगा रत्न है, जिसके पास विनम्रता है, उसके पास मानों तीनों लोक की संपत्ति है.

माखी गुड़ में गड़ी रहे, पंख रहे लिपटाए.

हाथ मले और सर धुनें, लालच बुरी बलाय.

मक्खी लालच के कारण बहुत समय तक गुड़ पर बैठी रहती है, जिस कारण उसका मुंह और पंख गुड़ से चिपक जाते हैं और वह उड़ नहीं पाती. इसलिए कभी भी किसी चीज की अति और लालच नहीं करना चाहिए.

ऊंचे कुल का जनमिया, करनी ऊंची न होय.

सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय.

ऊंचे कुल में जन्म लेना ही पार्यप्त नहीं, अगर कर्म अच्छे नहीं हैं तो सब व्यर्थ है. जैसे सोने के कलश में जहर भरा हो तो सभी लोग उससे घृणा ही करेंगे.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.