हैदराबाद। ज्येष्ठ गौरी पूजा (Jyeshtha Gauri Puja 2021) मां पार्वती को समर्पित है. गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2021) के दौरान भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन इस त्योहार को मनाया जाता है. ज्येष्ठ गौरी पूजा की स्थापना गणेश चतुर्थी के दो दिन बाद की जाती है, जिसे ज्येष्ठ गौरी आवाहन (Jyeshtha Gauri Ahavana) कहा जाता है. इस साल 12 सितंबर यानी रविवार को ज्येष्ठ गौरी की स्थापना हो चुकी है. यह त्योहार तीन दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें मां गौरी (Maa Gauri Puja) की पूजा की जाती है. अब 14 सितंबर यानी मंगलवार को ज्येष्ठ गौरी पूजा समाप्त हो जाएगी. इस दिन इस त्योहार को ज्येष्ठ गौरी विसर्जन (Jyeshtha Gauri Visarjan) कहा जाता है. हिंदू धर्म में इस त्योहार का बहुत अधिक महत्व है.
मराठी समुदाय का है महत्वपूर्ण त्योहार
ज्येष्ठ गौरी पूजा मराठी समुदाय (Marathi Community) के समबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है. इस दिन मराठी समुदाय भगवान गणेश की और माता गौरी (Lord Ganesh And Maa Gauri) की पूजा करते हैं. विवाहित महिलाएं अपने परिवार और बच्चों की बेहतरी का आशीर्वाद लेने के लिए तीन दिनों तक एक दिन का उपवास रखती हैं. मराठी मान्यता के अनुसार, अविवाहित महिलाएं भी आदर्श पति के लिए व्रत रख सकती हैं.
ज्येष्ठ गौरी आवाहन शुभ मुहूर्त (Jyeshtha Gauri Ahavana Shubh Muhurta)
- आवाहनः रविवार, 12 सितंबर 2021
- अनुराधा नक्षत्र प्रारंभः 09:50 सुबह
- अनुराधा नक्षत्र समाप्तः 08:24 सुबह
ज्येष्ठ गौरी पूजा शुभ मुहूर्त (Jyeshtha Gauri Puja Shubha Muhurta)
- पूजा: सोमवार, 13 सितंबर 2021
- ज्येष्ठ नक्षत्र प्रारंभः 08:24 सुबह, 13 सितंबर
- ज्येष्ठ नक्षत्र समाप्तः 07:05 सुबह, 14 सितंबर
ज्येष्ठ गौरी विसर्जन शुभ मुहूर्त (Jyeshtha Gauri Visarjan Shubh Muhurta)
- विसर्जनः मंगलवार, 14 सितंबर 2021
- मूल नक्षत्र प्रारंभः 07:05 सुबह, 14 सितंबर
- मूल नक्षत्र समाप्तः 05:55 सुबह, 15 सितंबर
ऐसे करें मां गौरी की पूजा (Maa Gauri ki Puja kaise Karen)
- परंपरा के अनुसार, ज्येष्ठ गौरी की प्रतिमाओं को साड़ी से सजाया जाता है.
- मां गौरी को सजाने के बाद शुभ मुहूर्त में मां गौरी की स्थापना की जाती है.
- दूसरे दिन नैवेद्य को 16 सब्जियां, 16 सलाद, 16 चटनी, 16 व्यंजन माता गौरी को चढ़ाए जाते हैं.
- इसके बाद 16 दीपक के साथ मां की आरती करने की मान्यता है.
- अष्टमी पर गौरी विसर्जन किया जाता है.
ऐसी हैं मान्यताएं
पौराणिक कथाओं की मानें तो राक्षसों के अत्याचार से तंग आकर और अपने सौभाग्य की रक्षा के लिए महिलाओं ने मां गौरी का आहावन किया. उनके आहावन पर मां गौरी ने भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को राक्षसों का वध कर पृथ्वी के प्राणियों के दुखों का अंत किया. ऐसे में महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को ज्येष्ठ गौरी का व्रत करती हैं.
इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि गणेश चतुर्थी के दो दिन बाद कैलाश पर्वत से माता पार्वती धरती पर अवतरित हुईं थीं. इसके अलावा, गौरी पूजा को कुछ क्षेत्रों में देवी लक्ष्मी की उपासना के रूप में माना जाता है. भगवान गणेश की तरह, माता गौरी की मूर्ति को बड़े धूमधाम और उत्साह के साथ घर लाया जाता है. तीन दिन के बाद भक्त विसर्जन करते हैं, यानी माता को अलविदा कहते हैं. महाराष्ट्र और कर्नाटक में इस पर्व का विशेष महत्व है.