भोपाल। मप्र में एमबीबीएस, नर्सिंग और पैरामेडिकल कॉलेज की निगरानी व एग्जाम कराने का जिम्मा एमपी मेडिकल यूनिवर्सिटी जबलपुर का है (Medical University Jabalpur). इसी यूनिवर्सिटी की 20 जनवरी यानी शुक्रवार को कार्यपरिषद की बैठक थी. बैठक में बेहद हास्यास्पद और आश्चर्यजनक निर्णय पर सहमति की गई. यह निर्णय था कि मप्र के जिन कॉलेजों की साल 2020-21 की मान्यता निरस्त कर दी गई थी, उसे शपथ पत्र लेकर बहाल किया जाएगा. यानी अब किसी कॉलेज में जमीन पर सुविधा भले ही न हो, लेकिन उसने शपथ पत्र पर जो लिखकर दे दिया, उसे मान लिया जाएगा. तर्क दिया जा रहा है कि यह निर्णय इसलिए लिया गया जिससे बच्चों का भविष्य खराब न हो. अब सवाल यह है कि जिन बच्चों के भविष्य की बात की जा रही है, वे तो बीते तीन साल से एग्जाम का इंतजार ही कर रहे हैं. इस बात पर कार्यपरिषद के सदस्य सुनील राठौर ने घोर आपत्ति भी ली है. उन्होंने राजभवन से लेकर सरकार के सभी अफसरों को मेल करके शिकायत की है कि माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों के खिलाफ जाकर यह संबंद्धता दी जा रही है, उन्होंने इसका विरोध भी किया है और वे जल्द राज्यपाल से मिलकर भी शिकायत करेंगे.
क्या है मामला: बीते 2 से 3 साल में 200 से अधिक नर्सिंग और पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता संसाधन की कमी बताकर खत्म की गई थी. करीब 140 की मान्यता बहाल कर दी गई और 60 कॉलेजों की अब करने की तैयारी है. जैसे कॉलेज का भवन, फेकल्टी, इंफ्रास्ट्रक्चर आदि. अब इन सभी चीजों की तस्दीक दो तरह से की जाएगी. पहली यह कि इसके लिए कॉलेज संचालक से शपथ पत्र लिया जाएगा और दूसरा वीडियो कॉलिंग के जरिए रिव्यू किया जाएगा. अब यूनिवर्सिटी का कहना है कि हम गलत ढंग से शपथ पत्र देने वाले के खिलाफ पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाएंगे और आगामी तीन सत्र के लिए संबद्धता समाप्त कर दी जाएगी, गलत जानकारी दी तो एफआईआर भी कराई जाएगी.
कब शुरू हुई गड़बड़ियां: प्रदेश में वर्ष 2011 में मेडिकल यूनिवर्सिटी की शुरूआत जबलपुर में की गई, वर्ष 2015 में पहली बार परीक्षा ली गई. इसमें एमबीबीएस, डेंटल, नर्सिंग, आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपैथी, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, सिद्ध, पैरामेडिकल और अन्य मेडिकल डिग्री व डिप्लोमा संचालित करने वाले कॉलेजों की परीक्षा कराई जाती थी. एग्जाम की शुरूआत के दो साल बाद ही विभाग को शिकायत मिलने लगी कि यहां गड़बड़ियां हो रही हैं.
तीन साल से अटकी हैं परीक्षाएं: जिन कॉलेजों की मान्यता का मामला अब तूल पकड़ रहा है, उनका मामला तीन साल से अटका हुआ है. साल 2020-21, 2021-22 और अब 2022-23 हो गया है. ऐसे करीब 15 हजार छात्र-छात्राएं हैं, जिनका न तो रजिस्ट्रेशन हुए हैं और न ही नामांकन हो पाए हैं.
वीसी बोले-हमने छात्रों के हित में लिया फैसला: जब इस मामले में यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. अशोक खंडेलवाल से बात की तो जवाब मिला कि यह सही है कि शपथ पत्र ले रहे हैं, लेकिन साथ में जांच कमेटी भी बना रहे हैं, पूरा रिव्यु करेंगे और झूठा पाए जाने पर सख्त कार्रवाई होगी. यह फैसला छात्रों के हित को देखते हुए लिया गया है.
इसलिए व्यापमं जैसी गड़बड़ियां कही जाती हैं:
- हाईकोर्ट के आदेश पर 14 अक्टूबर 2021 को पांच सदस्याें वाली कमेटी का गठन किया गया. इसमें पूर्व न्यायाधीश केके त्रिवेदी, एडीजीपी सायबर क्राइम योगेश देशमुख, आरजीपीवी के वीसी प्रोफेसर सुनील कुमार गुप्ता, सीनियर कंसल्टेंट विरल त्रिपाठी और इंजीनियर प्रियांक सोनी को शामिल किया. इस कमेटी ने अपनी जांच पूरी करके रिपोर्ट हाईकोर्ट को सौंप दी है.
- तत्कालीन कुलपति डॉ. टीएन दुबे और इंचार्ज रजिस्ट्रार डॉ. जेके गुप्ता के कार्यकाल में तत्कालीन एग्जाम कंट्रोलर डॉ. वृंदा सक्सेना को 12 रोल नंबर लिखकर दिए गए थे कि इन्हें पास करना है. ऐसा वीसी ने खुद की हैंड राइटिंग में लिखकर दिए थे. इनके अलावा एमबीबीएस, बीडीएस और एमडीएस के 13 स्टूडेंट को स्पेशल रीवेल्युशन का फायदा देकर पास कर दिया गया. जबकि यूनिवर्सिटी के अध्यादेश में रीवेल का नियम ही नहीं है. यह वे स्टूडेंट थे जो रीवेल में भी दो बार फेल हो गए थे.
- रीवेल की कॉपियों की जांच की गई तो इसमें ओवर राइटिंग मिली, इसके अलावा 278 स्टूडेंट के नाम मैच नहीं हुए. यह ऐसे स्टूडेंट हैं, जिनका नामांकन दूसरे नाम से हुआ और एग्जाम अलग स्टूडेंट ने दिए, यानी एनरॉलमेंट अलग नाम से और एग्जाम देने वाला अलग स्टूडेंट. यूनिवर्सिटी के तत्कालीन एग्जाम कंट्रोलर डॉ. वृंदा सक्सेना पर आरोप है कि उन्होंने अवकाश पर रहते हुए सरकारी ईमेल की बजाय जीमेल का उपयोग करके कॉलेजों में प्रैक्टिकल के नंबर दिए. इतना ही नहीं स्टूडेंट को जमकर थ्याैरी और प्रैक्टिकल में ग्रेस दिए गए, जबकि एक भी सब्जेक्ट ग्रेस का नियम नहीं है.
- मेडिकल यूनिवर्सिटी ने जीएमसी के 5 और इंदौर 3 एमबीबीएस स्टूडेंट को लिमिट से अधिक नंबर दे दिए, वायवा के पेपर में 20 की बजाय दिए 30 नंबर.
- बीएमएमएस फर्स्ट ईयर के पदार्थ विज्ञान एवं आयुर्वेद इतिहास में कुल 100 नंबर के क्वेश्चन थे, एग्जाम पैटर्न के हिसाब से 75 नंबर के पदार्थ विज्ञान और 25 नंबर इतिहास के होने थे, लेकिन पेपर में क्वेश्चन नंबर 14, 18, 19 और 20 आउट ऑफ सिलेबस आ गया.
- बीएएमएस (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन सर्जरी) फर्स्ट ईयर का अनाटोमी (रचना शरीर) का पेपर एक सेंटर पर देरी से आयोजित किया गया. इस पेपर में एक प्रश्न भी रिपीट किया गया.
- एमबीबीएस फर्स्ट ईयर के पेपर माइक्रोबायोलॉजी में 20 मार्क्स के क्वेश्चन आउट ऑफ सिलेबस आए. कम्पलेंट की, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई. इसी प्रकार जुलाई में जारी परिणाम में तय नंबर से अधिक दे दिए गए.