भोपाल। कोरोना वायरस का खतरा ऐसे लोगों को सबसे ज्यादा है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है या फिर जिन्हें पहले से किसी न किसी बीमारी की शिकायत है. इसके साथ ही बच्चे, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाओं को भी कोरोना वायरस सबसे पहले प्रभावित करता है. ऐसे में ये जरूरी हो जाता है कि प्रसव के दौरान महिलाओं की सुरक्षा का खास ध्यान रखा जाए. इसके लिए संस्थागत प्रसव सबसे कारगर उपाय है.
क्या है संस्थागत प्रसव
संस्थागत प्रसव यानी गर्भवती महिलाओं की डिलेवरी हॉस्पिटल में हो. जिससे उनकी बेहतर तरीके से देख-रेख हो सके. ताकि मातृ मत्यु दर और शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सके.
लॉकडाउन के दौरान संस्थागत प्रसव
मध्यप्रदेश में मातृ मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर और संस्थागत प्रसव तीनों के आंकड़े हमेशा से चिंता का विषय रहे हैं. लॉकडाउन के दौरान अप्रैल से जून महीने में संस्थागत प्रसव की संख्या में गिरावट देखी गई थी. हालांकि राष्ट्रीय मिशन की डायरेक्टर छवि भारद्वाज का दावा है कि अब संस्थागत प्रसव की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है. वर्तमान में करीब 90 से 95 हजार संस्थागत प्रसव हर महीने कराए जा रहे हैं.
प्रसव के दौरान इन बातों का रखा जाता है ध्यान
डायरेक्टर छवि भारद्वाज ने बताया कि अस्पताल में जब भी गर्भवती महिला अपना इलाज कराने आती हैं, तो प्रसव के पहले दो बातों का खासतौर पर ध्यान रखा जाता है. पहला कि गर्भवती महिला में कोरोना वायरस के लक्षण तो नहीं है और दूसरा, गर्भवती महिला किसी कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में तो नहीं आई है. यदि यह दोनों स्थिति में से कुछ भी होता है तो हम सबसे पहले महिला का कोविड टेस्ट करवाते हैं. हालांकि अब हमने प्रोटोकॉल तय कर लिया है कि प्रसव के पूर्व हर गर्भवती महिला का कोविड 19 टेस्ट कराया जाना जरूरी है.
कोरोना संक्रमित महिला का सुरक्षित प्रसव
उन्होंने बताया कि हाल ही में उमरिया में एक कोरोना संक्रमित गर्भवती महिला का प्रसव कराया गया था. जिसमें जच्चा और बच्चा दोनों ही सामान्य स्थिति में हैं. साथ ही महिला के आइसोलेशन की भी व्यवस्था की गई है.
चिंता का विषय
राजधानी भोपाल में भी अब ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां गर्भवती महिलाओं को कोविड-19 का संक्रमण हुआ है. इनमें से अब तक 2 महिलाओं और उनके बच्चों की मौत भी हो गई है. हालांकि प्रसूति वार्ड और स्टाफ को लेकर अस्पताल स्तर पर काफी सावधानियां बरती जा रहीं हैं.
ये आंकड़े चौंकाने वाले
- हाल की कुछ रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य सेवाओं में एमपी 21 बड़े राज्यों में 19वें पायदान पर है.
- शिशु मृत्यु दर में एमपी पहले नंबर पर है. यहां जन्म लेने वाले प्रति एक हजार शिशुओं में से 47 असमय ही मौत के मुंह में समा जाते हैं.
- डिंडौरी, मंडला, सीधी तथा बड़वानी सरीखे जिलों में संस्थागत प्रसव 30 प्रतिशत से भी कम है. डिंडौरी जिले में संस्थागत प्रसव महज 13.1 प्रतिशत है, वहीं सीधी में 23.5 प्रतिशत, मंडला में 28.5 प्रतिशत और बड़वानी में 29.5 प्रतिशत है. ये सभी जिले मुख्य रूप से अनुसूचित जनजाति बहुल हैं.
संस्थागत प्रसव कम होने के कारण
संस्थागत प्रसव के लिए दी जाने वाली 14 सौ रूपए की राशि मौजूदा समय में काफी कम है. इससे आर्थिक रूप से कमजोर परिवार अस्पताल में जाने से कतराते हैं. जिसका परिणाम जच्चा और बच्चा को भुगतना पड़ता है.
संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए जननी सुरक्षा योजना अंतर्गत आर्थिक सहायता देकर प्रोत्साहित करती है लेकिन प्रसव के लिए संस्थाओं तक सुरक्षित परिवहन की सुविधाओं के अभाव में सुरक्षित प्रसव आज भी चुनौती ही बने हुए हैं. हालात ये हैं कि दूरदराज के गांवों में आज भी स्थितियां विषम होने पर लोग ट्रैक्टर या सार्वजनिक परिवहन की बसों में सफर तय करते हैं, इससे प्रसूता को बेहद विषम स्थिति का सामना करना पड़ता है.