भोपाल। मध्यप्रदेश में बीजेपी का सबसे मजबूत गढ़ माने जाने वाली भोपाल संसदीय सीट को बचाने के लिए बीजेपी अभेद रणनीति बनाने में जुट गई है. कांग्रेस ने बीजेपी के इस गढ़ को भेदने के लिए दिग्विजय सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है. इससे ये चुनाव ना सिर्फ दिग्विजय सिंह बल्कि बीजेपी के लिए करो या मरो की स्थिति वाला हो गया है.
बीजेपी का इस सीट पर किस कदर वर्चस्व रहा है यह इसी बात से समझा जा सकता है कि कांग्रेस ने यहां अपना आखिरी लोकसभा चुनाव 1984 में जीता था.
क्या है भोपाल लोकसभा सीट का इतिहास ?
भोपाल लोकसभा सीट भोपाल की 7 विधानसभा और सीहोर विधानसभा को मिलाकर बनी है.
1952 में पहले लोकसभा चुनाव में रायसेन और सीहोर नाम से 2 सीट थी. उस वक्त सीहोर लोकसभा सीट से कांग्रेस के सैयद अल्लाह राजमी ने उद्धव दास मेहता को हराया था.
वहीं रायसेन सीट से कांग्रेस के चतुर नारायण मालवीय ने निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह ठाकुर को शिकस्त देकर लोकसभा चुनाव जीता था.
1957 में इन दोनों लोकसभा सीटों को मिलाकर एक सीट बना दी गई थी जिसके बाद भोपाल लोकसभा सीट का गठन किया गया.
1957 में हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार मैमूना सुल्तान ने कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया और वह हिंदू महासभा के हरदयाल देवगांव को हराकर संसद भवन पहुंची.
1962 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने हिंदू महासभा के ओम प्रकाश को हराया.
1967 में भारतीय जन संघ ने अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे और पहली बार भोपाल सीट पर कब्जा जमाने में सफल रहे. यह अलग बात है कि जीत का सिलसिला भारतीय जनसंघ कायम नहीं रख पाई और 1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेता और देश के पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने शानदार जीत दर्ज की.
1977 के लोकसभा चुनाव में भारतीय लोक दल के नेता आरिफ बेग ने शंकर दयाल शर्मा को हरा दिया. लेकिन, 1980 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर शंकर दयाल शर्मा आरिफ बेग को शिकस्त देकर फिर से इस सीट पर काबिज हो गए.
1984 में हुए लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने सीट पर अपना कब्जा बनाए रखा और कांग्रेस के उम्मीदवार के एन प्रधान ने बीजेपी उम्मीदवार को हराकर कांग्रेस का दबदबा बनाए रखा.
रिटायर्ड IAS के सामने कांग्रेस ने टेके घुटने
कांग्रेस के दबदबे वाली भोपाल लोकसभा सीट पर 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को रिटायर्ड IAS के सामने घुटने टेकने पड़े. पूर्व मुख्य सचिव सुशील चंद्र वर्मा ने कांग्रेस के दबदबे वाली लोकसभा सीट को पहली बार बीजेपी की झोली में डाल दिया, जिसके बाद से कांग्रेस फिर कभी इस सीट पर कब्जा नहीं जमा पाई.
सुशील चंद्र वर्मा इस सीट से लगातार चार बार यानी 1989, 1991, 1996 और 1998 में सांसद चुने गए. इसके बाद 1999 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर फायर ब्रांड नेता उमा भारती चुनाव मैदान में उतरी और उन्होंने कांग्रेस के सुरेश पचौरी को करीब सवा लाख वोटों से हरा दिया. 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी सांसद रहे.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी संगठन से जुड़े रहे आलोक संजर ने मोदी लहर में कांग्रेस के पी सी शर्मा को साढ़े तीन लाख से ज्यादा वोटों से हराने में कामयाबी हासिल की.
1984 - केएन प्रधान (कांग्रेस)
1989 से 1999 - सुशील चंद्र वर्मा (बीजेपी)
1999- उमा भारती (बीजेपी)
2004 से 2014- कैलाश जोशी (बीजेपी)
2014 - आलोक संजर (बीजेपी)
भोपाल लोकसभा का सामाजिक तानाबाना
भोपाल की पहचान राजा भोज की नगरी के रूप में होती है. 2011 की जनगणना के मुताबिक भोपाल की जनसंख्या 26 लाख 79 हजार 574 है. यहां की 23.71 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र में रहती है, जबकि 76.29 फीसदी आबादी शहरी इलाके में रहती है. भोपाल की 15.38 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जनजाति की है और 2.79 फीसदी अनुसूचित जाति की है. मध्य प्रदेश की राजधानी होने की वजह से भोपाल में कर्मचारियों का बड़ा वर्ग है. वहीं करीब 5 लाख मतदाता मुस्लिम है. भोपाल लोकसभा सीट पर मौजूदा स्थिति में कुल मतदाताओं की संख्या 21 लाख 8031 हो गई है.