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बीएसपी और एसपी के साथ निर्दलीय बिगाड़ सकते हैं कांग्रेस बीजेपी के समीकरण

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Published : May 11, 2019, 8:05 AM IST

लोकसभा चुनाव 2019 में मध्यप्रदेश का सियासी समीकरण सपा, बसपा के साथ ही निर्दलीय प्रत्याशी भी बिगाड़ सकते हैं. ये सभी बीजेपी और कांग्रेस के लिए चुनौती बने हुए हैं.

कांग्रेस और बीजेपी

भोपाल। लोकसभा चुनाव में ज्यादातर सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है. वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों के होने से मुकाबला बिगड़ने की आशंका से दोनों ही दल अलर्ट हैं. दोनों ही प्रमुख दलों की कोशिश है कि निर्दलीय उम्मीदवारों को किसी भी तरह अपने पक्ष में लाया जाए.


अगर साल 2014 की बात करें, तो इस चुनाव में 12.49 लाख वोट निर्दलियों को मिले थे. प्रदेश में दूसरे और तीसरे चरण के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी को निर्दलियों को मनाने में कुछ हद तक सफलता मिली है. हालांकि बीजेपी और कांग्रेस बीएसपी और एसपी के साथ ही निर्दलियों के चुनाव में सक्रिय भागीदारी से चिंतित नहीं है. दोनों ही राजनीतिक दलों का मानना है कि मध्यप्रदेश में कभी भी तीसरे दल को ज्यादा वोट नहीं मिले हैं.
लिहाजा यहां सीधा मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच में ही होता आया है. कुछ हद तक निर्दलियों को मनाने में सफलता हाथ लगी है. जिसमें खरगोन से सुखलाल परमार, बुरहानपुर से निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा की पत्नी जयश्री, सागर से मुकेश ढाना जैसे कई प्रत्याशियों ने अपना नाम वापस लिया है. वहीं मालवा-निमाड़ में तीसरी शक्ति के रूप में उभर रहा जयस भी ताल ठोंक रहा है. धार, झाबुआ, रतलाम, बड़वानी और खरगोन के आदिवासी इलाकों में इसका अच्छा खासा प्रभाव देखा गया है.

निर्दलीय प्रत्याशी बिगाड़ सकते हैं खेल


139 प्रत्याशियों में से केवल 58 निर्दलीय
वहीं सपाक्स ने भी अपने 15 प्रत्याशी प्रदेश में मैदान में उतारे हैं, जो इन प्रमुख दलों के वोट बैंक पर सेंधमारी कर सकते हैं. मध्यप्रदेश में तीसरे चरण में भिंड, मुरैना, ग्वालियर, गुना, सागर, विदिशा, भोपाल और राजगढ़ में मतदान 12 मई को होना है. यहां 139 प्रत्याशियों में से 58 केवल निर्दलीय प्रत्याशी हैं.


भोपाल में सबसे ज्यादा निर्दलीय प्रत्याशी
सबसे ज्यादा 30 प्रत्याशी भोपाल में हैं, जबकि निर्दलीय प्रत्याशी मुरैना लोकसभा में हैं. अगर प्रदेश में पिछले तीन दशक में हुए लोकसभा चुनाव की बात करें, तो साल 1996 में तीन निर्दलीय प्रत्याशी लोकसभा पहुंचने में सफल रहे थे. इसके बाद के चुनाव में कोई भी निर्दलीय चुनाव नहीं जीत सका है. हालांकि उन्होंने अन्य प्रत्याशियों के वोट बैंक में जरूर नुकसान पहुंचाया है. इस मामले पर बीजेपी प्रवक्ता महेश शर्मा का कहना है कि प्रदेश की राजनीति में केवल दो ही दलीय प्रणाली रही है. हमेशा दो ही दलों के बीच चुनाव होता आया है. हालांकि उत्तर प्रदेश से सटे हुए कुछ ऐसे क्षेत्र है जहां पर विधानसभा चुनाव के दौरान बीएसपी और एसपी एवं कुछ निर्दलीय के पास प्रभाव छोड़ने का मौका रहता है.


कांग्रेस और बीजेपी में है सीधा मुकाबला
कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि इस तरह की बातें विधानसभा चुनाव के दौरान भी कही जा रही थी. अगर कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी नहीं जुड़ती है, तो कांग्रेस को भारी नुकसान होगा. उन्होंने कहा कि जब विधानसभा चुनाव के परिणाम आए, तो छोटे दलों के वोट शेयर कट गए और कांग्रेस के वोट शेयर बढ़ गए.

भोपाल। लोकसभा चुनाव में ज्यादातर सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है. वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों के होने से मुकाबला बिगड़ने की आशंका से दोनों ही दल अलर्ट हैं. दोनों ही प्रमुख दलों की कोशिश है कि निर्दलीय उम्मीदवारों को किसी भी तरह अपने पक्ष में लाया जाए.


अगर साल 2014 की बात करें, तो इस चुनाव में 12.49 लाख वोट निर्दलियों को मिले थे. प्रदेश में दूसरे और तीसरे चरण के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी को निर्दलियों को मनाने में कुछ हद तक सफलता मिली है. हालांकि बीजेपी और कांग्रेस बीएसपी और एसपी के साथ ही निर्दलियों के चुनाव में सक्रिय भागीदारी से चिंतित नहीं है. दोनों ही राजनीतिक दलों का मानना है कि मध्यप्रदेश में कभी भी तीसरे दल को ज्यादा वोट नहीं मिले हैं.
लिहाजा यहां सीधा मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच में ही होता आया है. कुछ हद तक निर्दलियों को मनाने में सफलता हाथ लगी है. जिसमें खरगोन से सुखलाल परमार, बुरहानपुर से निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा की पत्नी जयश्री, सागर से मुकेश ढाना जैसे कई प्रत्याशियों ने अपना नाम वापस लिया है. वहीं मालवा-निमाड़ में तीसरी शक्ति के रूप में उभर रहा जयस भी ताल ठोंक रहा है. धार, झाबुआ, रतलाम, बड़वानी और खरगोन के आदिवासी इलाकों में इसका अच्छा खासा प्रभाव देखा गया है.

निर्दलीय प्रत्याशी बिगाड़ सकते हैं खेल


139 प्रत्याशियों में से केवल 58 निर्दलीय
वहीं सपाक्स ने भी अपने 15 प्रत्याशी प्रदेश में मैदान में उतारे हैं, जो इन प्रमुख दलों के वोट बैंक पर सेंधमारी कर सकते हैं. मध्यप्रदेश में तीसरे चरण में भिंड, मुरैना, ग्वालियर, गुना, सागर, विदिशा, भोपाल और राजगढ़ में मतदान 12 मई को होना है. यहां 139 प्रत्याशियों में से 58 केवल निर्दलीय प्रत्याशी हैं.


भोपाल में सबसे ज्यादा निर्दलीय प्रत्याशी
सबसे ज्यादा 30 प्रत्याशी भोपाल में हैं, जबकि निर्दलीय प्रत्याशी मुरैना लोकसभा में हैं. अगर प्रदेश में पिछले तीन दशक में हुए लोकसभा चुनाव की बात करें, तो साल 1996 में तीन निर्दलीय प्रत्याशी लोकसभा पहुंचने में सफल रहे थे. इसके बाद के चुनाव में कोई भी निर्दलीय चुनाव नहीं जीत सका है. हालांकि उन्होंने अन्य प्रत्याशियों के वोट बैंक में जरूर नुकसान पहुंचाया है. इस मामले पर बीजेपी प्रवक्ता महेश शर्मा का कहना है कि प्रदेश की राजनीति में केवल दो ही दलीय प्रणाली रही है. हमेशा दो ही दलों के बीच चुनाव होता आया है. हालांकि उत्तर प्रदेश से सटे हुए कुछ ऐसे क्षेत्र है जहां पर विधानसभा चुनाव के दौरान बीएसपी और एसपी एवं कुछ निर्दलीय के पास प्रभाव छोड़ने का मौका रहता है.


कांग्रेस और बीजेपी में है सीधा मुकाबला
कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि इस तरह की बातें विधानसभा चुनाव के दौरान भी कही जा रही थी. अगर कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी नहीं जुड़ती है, तो कांग्रेस को भारी नुकसान होगा. उन्होंने कहा कि जब विधानसभा चुनाव के परिणाम आए, तो छोटे दलों के वोट शेयर कट गए और कांग्रेस के वोट शेयर बढ़ गए.

Intro: (स्पेशल स्टोरी . इलेक्शन )

बीएसपी और एसपी के साथ निर्दलीय बिगाड़ सकते हैं कांग्रेस बीजेपी के समीकरण


भोपाल | लोकसभा चुनाव में ज्यादातर सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है लेकिन निर्मली उम्मीदवार के मुकाबला बिगड़ने की आशंका से दोनों ही दल अलर्ट है दोनों प्रमुख दलों का प्रयास है कि निर्दलीय उम्मीदवारों को किसी भी तरह अपने पक्ष में लाया जाए वर्ष 2014 की बात की जाए तो इस चुनाव में 12. 49 लाख बोट निर्दलीयों को मिले थे प्रदेश में दूसरे और तीसरे चरण के लोकसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस और बीजेपी को निर्दलीयों को मनाने में कुछ हद तक सफलता मिली है इनमें इन दलों के असंतुष्ट शामिल है .

हालांकि बीजेपी और कांग्रेस बीएसपी और एसपी के साथ ही निर्दलीयों के चुनाव में सक्रिय भागीदारी से चिंतित नहीं है दोनों ही राजनीतिक दलों का मानना है कि मध्य प्रदेश में कभी भी तीसरे दल को ज्यादा वोट नहीं मिले हैं और यहां सीधा मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच में ही होता आया है .


Body:हालांकि मध्य प्रदेश की लोकसभा चुनाव में निर्दलीयों को मनाने में प्रमुख राजनीतिक दलों को सफलता भी हाथ लगी है जिसमें खरगोन से सुखलाल परमार बुरहानपुर से निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा की पत्नी जय श्री सागर से मुकेश जैन ढाना जैसे निर्दलीय प्रत्याशी नाम वापस ले चुके हैं मालवा निमाड़ में तीसरी शक्ति के रूप में उभर रहे जयस भी अपनी ताल ठोक रहा है .


धार , झाबुआ , रतलाम , बड़वानी और खरगोन के आदिवासी इलाकों में इसका अच्छा खासा प्रभाव देखा गया है धार लोकसभा से चुनाव मैदान में आए जयस प्रत्याशी महेंद्र कन्नौज भी नाम वापस ले चुके हैं गुना से बीएसपी प्रत्याशी लोकेंद्र कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं इसके बाद भी कई निर्दलीय कभी भी बीजेपी कांग्रेस के लिए चुनौती बने हुए हैं वहीं सपाक्स ने भी अपने 15 प्रत्याशी प्रदेश में मैदान में उतारे हैं जो इन प्रमुख दलों के वोट बैंक पर सेंधमारी कर सकते हैं .


मध्यप्रदेश में तीसरे चरण में भिंड , मुरैना , ग्वालियर , गुना , सागर, विदिशा, भोपाल और राजगढ़ में मतदान 12 मई को होना है . यहां 139 प्रत्याशियों में से 58 केवल निर्दलीय प्रत्याशी है . सबसे ज्यादा 30 प्रत्याशी भोपाल में है जबकि निर्दलीय प्रत्याशी मुरैना लोकसभा में अधिक है . यदि मध्य प्रदेश में पिछले तीन दशक में हुए लोकसभा चुनाव की बात करें तो वर्ष 1996 में तीन निर्दलीय प्रत्याशी लोकसभा पहुंचने में सफल रहे थे . इसके बाद के चुनाव में कोई भी निर्दलीय चुनाव नहीं जीत सका है . हालांकि उन्होंने अन्य प्रत्याशियों के वोट बैंक में जरूर नुकसान पहुंचाया है .


Conclusion:इस मामले पर बीजेपी प्रवक्ता महेश शर्मा का कहना है कि मूड का मध्य प्रदेश की राजनीति में केवल दो ही दलीय प्रणाली रही है और हमेशा दो ही दलों के बीच चुनाव होता आया है हालांकि उत्तर प्रदेश से सटे हुए कुछ ऐसे क्षेत्र है जहां पर विधानसभा चुनाव के दौरान बीएसपी और एसपी एवं कुछ निर्दलीय के पास प्रभाव छोड़ने का मौका रहता है इस दौरान इन्हें काफी वोट भी प्राप्त हो जाते हैं लेकिन यह लोकसभा चुनाव है और इसे एक बड़ी चुनाव के रूप में देखा जाता है यदि मध्यप्रदेश में एकाद सीट पर भी दिन छोटे दलों का प्रभाव रहता है तो इससे कुछ ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं है इसलिए सीधा मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच में ही है .

वहीं कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि इस तरह की आशंकाएं विधानसभा चुनाव के दौरान भी लगाई जा रही थी यदि कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी नहीं जुड़ती है तो कांग्रेस को भारी नुकसान होगा लेकिन जब विधानसभा चुनाव के परिणाम आए तो नतीजे इसके उलट से इन छोटे दलों के वोट शेयर कट गए और कांग्रेस के वोट शेयर बढ़ गए जब मुकाबला सीधे आमने सामने होता है और जनता के लिए लक्ष्य सीधा रहता है कि हमें किस मुद्दे पर वोट डालना है तब इस तरह के जो वोट कटुआ प्रयास हैं जो किसी एक पार्टी को लाभ पहुंचाने की कोशिश में होते हैं यह सभी चीजें नाकाम हो जाती है .

कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि हर छोटा राजनीतिक दल भी चुनाव लड़ने की ललक रखता है और हर व्यक्ति की आकांक्षा होती है कि उसे भी लोग पहचाने इस तरह की से छोटे-छोटे राजनीतिक दलों के चुनाव लड़ने से यही बात सामने आती है कि वे लोग अपनी एक पहचान बनाते हैं वे लोग इस माध्यम से लड़ाई लड़कर अपने समाज को एक प्रतिनिधित्व देने की कोशिश करते हैं उनकी महत्वाकांक्षाए गलत नहीं है . लेकिन वह क्या परिणाम सामने लाएंगे यह इतने बड़े समर में महत्व हीन हो जाती है. उन्होंने कहा कि 23 मई को जो फैसले आएंगे वह बीजेपी और कांग्रेस के बीच में ही आएंगे और इस तरह की छोटी पार्टियां या निर्दलीयों के लिए बहुत कम ही मतदान सामने आएगा .
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