भोपाल। मध्य प्रदेश में पिछले कुछ सालों में लिंगानुपात लगातार बढ़ा रहा है. प्रदेश में 2011 की जनगणना के मुताबिक 1000 बालक में 918 बालिकाएं ही है. इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि लोग अब भी अपनी पुरानी सोच के कारण बेटियों की जगह बेटों को प्राथमिकता दे रहे हैं. कई मामलों में बच्चे के जन्म से पहले ही भ्रूण का लिंग परिक्षण कर गर्भवती का गर्भपात भी करवा दिया जाता है, जो कि एक कानूनन जुर्म है. इस जुर्म को रोकने के लिए लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम लाया गया है. जिसके तहत यह प्रावधान किया गया है कि गर्भधारण और प्रसव के पहले लिंग परीक्षण में इस्तेमाल की जाने की अल्ट्रासाउंड मशीन और क्लिनिक्स का निरीक्षण समय-समय पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया जाए.
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों को पत्र लिखकर यह निर्देश दिए हैं कि वह अपने जिले की ऐसी सभी क्लीनिक्स, चिकित्सालय, नर्सिंग होम जहां अल्ट्रासाउंड मशीन है और मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी की सुविधा है. उनकी सूची एक सप्ताह में पीसीपीएनडीटी शाखा में जमा करवाएं. पत्र में इस बात का जिक्र किया गया है कि प्रसव से पहले भ्रूण के लिंग की जांच करवा कर चिकित्सालयों/ क्लीनिक्स में अवैध तरीके से गर्भपात किये जाने की संभावना होती है. खासतौर पर उन स्थानों पर जहां अल्ट्रासाउंड मशीन से जांच की सुविधा और मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी की सुविधा उपलब्ध होती है, इसीलिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट के तहत मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को इन केंद्रों का पंजीयन किया जाना जरूरी है.
स्वास्थ्य विभाग के अपर संचालक ने यह भी निर्देश दिए हैं कि लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम के प्रावधान के मुताबिक उन परिसरों और चिकित्सालयों जहां मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी की सुविधा उपलब्ध है, वहां भी निरीक्षण किया जाए. अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई करने के बाद विभाग को सूचित किया जाए.